बाल कविताएँ श्रीधर पाठक
Baal Kavitayen Shridhar Pathak



उठो भई उठो

हुआ सवेरा जागो भैया, खड़ी पुकारे प्यारी मैया। हुआ उजाला छिप गए तारे, उठो मेरे नयनों के तारे। चिड़िया फुर-फुर फिरती डोलें, चोंच खोलकर चों-चों बोलें। मीठे बोल सुनावे मैना, छोड़ो नींद, खोल दो नैना। गंगाराम भगत यह तोता, जाग पड़ा है, अब नहीं सोता। राम-राम रट लगा रहा है, सोते जग को जगा रहा है। धूप आ गई, उठ तो प्यारे, उठ-उठ मेरे राजदुलारे! झटपट उठकर मुँह धुलवा लो, आँखों में काजल डलवा लो। कंघी से सिर को कढ़वा लो, औ’ उजली धोती बँधवा लो। सब बालक मिल साथ बैठकर, दूध पियो खाने का खा लो। हुआ सवेरा जागो भैया, प्यारी माता लेय बलैया। -रचना तिथि: 8.4.1906, श्रीप्रयाग; मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विकास, 16-17

कुक्कुटी

कुक्कुट इस पक्षी का नाम, जिसके माथे मुकुट ललाम। निकट कुक्कुटी इसकी नार, जिस पर इसका प्रेम अपार। इनका था कुटुम परिवार, किंतु कुक्कुटी पर सब भार। कुक्कुट जी कुछ करें न काम, चाहें बस अपना आराम। चिंता सिर्फ इसकी को एक, घर के धंधे करें अनेक। नित्य कई एक अंडे देय, रक्षित रक्खे उनको सेय। जब अंडे बच्चे बन जाएँ, पानी पीवें खाना खाएँ। तब उनके हित परम प्रसन्न, ढूंढे मृदु भोजन कण अन्न। ज्यों ज्यों बच्चा बढ़ता जाय, स्वच्छंदता सिखावे माय। माँ जब उसे सिखा सब देय, बच्चा सभी, आप कर लेय। -(रचना तिथि: 8.4.1906, श्रीप्रयाग;) मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विकास, 23

देल छे आए

बाबा आज देल छे आए, चिज्जी-पिज्जी कुछ ना लाए। बाबा, क्यों नहीं चिज्जी लाए, इतनी देली छे क्यों आए? काँ है मेला बला खिलौना, कलाकंद लड्डू का दोना चूँ-चूँ गाने वाली चिलिया, चीं-चीं करने वाली गुलिया। चावल खाने वाली चुइया, चुनिया, मुनिया, मुन्ना भइया। मेला मुन्ना, मेली गैया, कां मेले मुन्ना की मैया बाबा तुम औ काँ से आए, आँ-आँ चिज्जी क्यों ना लाए?

तीतर

लड़को, इस झाड़ी के भीतर, छिपा हुआ है जोड़ा तीतर। फिरते थे यह अभी यहीं पर, चारा चुगते हुए जमीं पर। एक तीतरी है इक तीतर, हमें देखकर भागे भीतर। आओ, इनको जरा डराकर, ढेला मार निकालें बाहर। यह देखो, वह दोनों भागे, खड़े रहो चुप, बढ़ो न आगे। अब सुन लो इनकी गिटकारी, एक अनोखे ढंग की प्यारी। तीइत्तड़-तीइत्तड़-तीइत्तड़-तीइत्तड़, नाम इसी से इनका तीतर।

बिल्ली के बच्चे

बिल्ली के ये दोनों बच्चे, कैसे प्यारे हैं, गोदी में गुदगुदे मुलमुले लगें हमारे हैं। भूरे-भूरे बाल मुलायम पंजे हैं पैने, मगर किसी को नहीं खौसते, दो बैठा रैने। पूँछ कड़ी है, मूँछ खड़ी है, आँखें चमकीली, पतले-पतले होंठ लाल हैं, पुतली है पीली। माँ इनकी कहाँ गई, ये उसके बड़े दुलारे हैं, म्याऊँ-म्याऊँ करते इनके गले बहुत दूखे, लाओ थोड़ा दूध पिला दें, हैं दोनों भूखे। जिसने हमको तुमको माँ का जनम दिलाया है, उसी बनाने वाले ने इनको भी बनाया है। इस्से इनको कभी न मारो बल्कि करो तुम प्यार, नहीं तो नाखुश हो जावेगा तुमसे वह करतार। -साभार: बालसखा, जून 1917, 171 -रचना तिथि: 8.4.1906, श्रीप्रयाग; -मनोविनोद:स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 19

तोते पढ़ो

पढ़ मेरे तोते सीता-राम, सीता-राम राधा-श्याम। राधा-श्याम, श्याम-श्याम, श्याम-श्याम, सीता-राम। हरि मुरारे गोविंदे, श्री मुकुन्द, परमानंदे। परम पुरुष माधव मायेश, नारायण त्रैलोक्य नरेश। अलख निरंजन निर्गुन नाम, अखिल लोक कृत पूरन काम। पढ़ मरे तोते सीता-राम, सीता-राम राधा-श्याम। हरा तेरा चटकीला रंग, भरा गठीला सुंदर अंग। गले बिराजे डोरा लाल, गोल चोंच, फिर बोल रसाल। बन पेड़ों में तेरा वास, भोजन फल विचरन आकाश। अब सुंदर पिंजड़े में बंद, ‘सब तज हर भज’ कर आनंद। देख तुझे और तेरा ढंग, मन में उपजे अजब उमंग। बोलो प्यारे सीता-राम, सीता-राम, राधा-श्याम। -रचना तिथि: 14.5.1910 -मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विकास, 17-18

मैना

सुन-सुन री प्यारी ओ मैना, जरा सुना तो मीठे बैना। काले पर, काले हैं डेना, पीली चोंच कंटीले नैना। काली कोयल तेरी मैना, यद्यपि तेरी तरह पढ़ै ना। पर्वत से तू पकड़ी आई, जगह बंद पिजड़े में पाई। बानी विविध भाँति की बोले, चंचल पग पिंजड़े में डोले। उड़ जाने की राह न पावै, अचरज में आकर घबरावै। -रचना तिथि: 26.7.1909, नैनीताल मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 20

चकोर

धन-धन सुगढ़ चकोर तू खग-कुल आगरिया, पाले नियम कठोर कि वंश उजागरिया। चंद तेरा चितचोर तू उस पर बावरिया, लख-लख उसकी ओर कि होय निछावरिया। चुगती अग्नि अंगार तू दृढ़ प्रण रावरिया, धन वन प्रेम अपार कि प्रेमिन नागरिया। -रचना तिथि: 26.7.1909, नैनीताल मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 21

मोर

अहो सलोने मोर, पंख अति सुंदर तेरे, रँगित चंदा लगे गोल अनमोल घनेरे। हरा, सुनहला, चटकीला, नीला रंग सोहे, रेशम के सम मृदुल बुनावट मन को मोहे। सिर पर सुघर किरीट नील कल-कंठ सुहावे, पंख उठाकर नाच, तेरा अति जी को भावे। ‘के का’ करके विदित श्रवण प्रिय तेरी बानी, जरा सुना तो सही वही हमको रस सानी। बादल जब दल बाँध गगन तल पर घिर आवै, स्याम घटा की छटा सकल थल पर छा जावे तब तू हो मदमत्त मेघ को नृत्य दिखावे अति प्रमोद मन आन हर्ष के अश्रु बहावे ऐसा अपना नाच दिखा हमको भी प्यारे जिसे देख रे मोर! मोद मन होय हमारे। -रचना तिथि: 12.8.1909, नैनीताल; संदर्भ मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 22

कोयल

कुहू-कुहू किलकार सुरीली कोयल कूक मचाती है, सिर और चोंच झुकाए डाल पर बैठी तान उड़ाती है। एक डाल पर बैठ एक पल झट हवाँ से उड़ जाती है, पेड़ों बीच फड़कती फिरती चंचल निपट सुहाती है। डाली-डाली पर मतवाली मीठे बोल सुनाती है, है कुरूप काली पर तो भी जग प्यारी कहलाती है। इससे हमें सीखना चाहिए सदा बोलना मधुर वचन, जिससे करै प्यार हमको सब जानें अपना बंधु स्वजन। -रचना तिथि: 16.7.1909, नैनीताल; मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 21

गुड्डी लोरी

सो जा, मेरी गोद में ऐ प्यारी गुड़िया, सो जा, गाऊँ गीत मैं वैसा ही बढ़िया। जैसा गाती है हवा, जब बच्ची चिड़िया। जैसा गाती है हवा, जब बच्ची चिड़िया, जाँय पेड़ की गोद में सोने की बिरियाँ। क्योंकि हवा भी तान से गाना है गाती, मीठे सुर से साँझ को धुन मंद सुनाती। और उस सुंदर देश का, संदेश बताती, जहाँ सब बच्चे-बच्चियाँ सोते में जाती। -प्रका.: बाल सखा, जुलाई 1918, 1919