Naushad Ali
नौशाद अली

नौशाद अली/नौशाद लखनवी (25 दिसम्बर 1919-5 मई 2006) हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार थे। उन्होंने शायरी भी की । 64 साल में नौशाद ने केवल 67 फिल्मों में ही संगीत दिया। उनका का जन्म लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था। वह 17 साल की उम्र में ही अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई कूच कर गए थे। शुरुआती संघर्षपूर्ण दिनों में उन्हें उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां, उस्ताद झण्डे खां और पंडित खेम चन्द्र प्रकाश जैसे गुणी उस्तादों की सोहबत नसीब हुई। उनकी फिल्मों में अंदाज, मदर इंडिया, अनमोल घड़ी, बैजू बावरा, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा, कोहिनूर, उड़न खटोला, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, बाबुल, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी, शाहजहां, लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज आदि शामिल हैं । उनकी रचना 'आठवां सुर' के नाम से प्रकाशित हुई ।

नौशाद अली की रचनाएँ

ग़ज़लें नौशाद अली

  • अपनी तदबीर न तक़दीर पे रोना आया
  • अभी साज़-ए-दिल में तराने बहुत हैं
  • आग इक और लगा देंगे हमारे आँसू
  • आबादियों में दश्त का मंज़र भी आएगा
  • इक बे-क़रार दिल से मुलाक़ात कीजिए
  • उलझे तो सब नशेब-ओ-फ़राज़-ए-हयात में
  • क्यूँ मिली थी हयात याद करो
  • ख़ुद मिट के मोहब्बत की तस्वीर बनाई है
  • ख़ैर माँगी जो आशियाने की
  • जहाँ तक याद-ए-यार आती रहेगी
  • ज़ंजीर-ए-जुनूँ कुछ और खनक हम रक़्स-ए-तमन्ना देखेंगे
  • ठोकरें खाइए पत्थर भी उठाते चलिए
  • दुनिया कहीं जो बनती है मिटती ज़रूर है
  • दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले
  • न मंदिर में सनम होते न मस्जिद में ख़ुदा होता
  • पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से
  • बहुत ही दिल-नशीं आवाज़-ए-पा थी
  • मुझ को मुआफ़ कीजिए रिंद-ए-ख़राब जान के
  • ये बातें आज की कल जिस किताब में लिखना
  • सब कुछ सर-ए-बाज़ार जहाँ छोड़ गया है
  • हम दोस्तों के लुत्फ़-ओ-करम देखते रहे
  • हाए कैसी वो शाम होती है