Guru Angad Dev Ji
गुरू अंगद देव जी

गुरू अंगद देव जी (३१ मार्च १५०४ -१६ अप्रैल १५५२) सिक्खों के दूसरे गुरू थे। उनका जन्म पंजाब के मुक्तसर जिले के सराए नाग़ा गाँव में हुआ। उनका बचपन का नाम लहना रखा गया। उन के पिता फेरू मल्ल जी व्यापारी थे और उनकी माता जी का नाम सभरायी जी था। १५३८ ई: में गुरू नानक देव जी ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़ कर उनको अपना उतराधिकारी नियुक्त किया और उन का नाम भी अंगद रख दिया। गुरू अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि बनाई। उन्हों ने लंगर की प्रथा जारी रखी और इस में विस्तार किया। उन्होंने ६३ सलोकों की रचना की जो गुरू ग्रंथ साहब में दर्ज हैं।