सावन-गीत खड़ी बोली

Sawan Geet Khari Boli

1. बीरा जो आते मैं सुणै

बीरा जो आते मैं सुणैं, जी रुत सावण की
कोई लिल्ली घोड़ी असवार, आई जी रुत सावण की।
लिल्ली नै छोड्यो रे बीरा लील मैं
कोई जीन धर्यो छटसाल, आई जी रुत सावण की।
-कोई कहै ओब्बो चलणे की बात, आई जी रुत सावण की।
-मैं क्या जाणू रे भोले बीरा रुत सावण की
कोई मौसा अपणे नै पूछ लो, रुत सावण की ।
होक्का पीवता जो अपणा मौसा जी पूछा
कोई कहो मौसा भेजणे की बात, रुत सावण की ।
मैं क्या जाणूँ मेरे भोले समढेट्टे
कोई मौसी नै लियो पूछ, आई जी रुत सावण की।
दूध बिलौती अपणी मौसी पूछी
मौसी नै दिया है जबाब, आई जी रुत सावण की।
जितना म्हारी कोठी बीच नाज, घणा आई जी रुत सावण की।
कोई सारा तो जइयो पीस, आई जी रुत सावण की।
जितना म्हारी गळियों बीच कीच घणा, आई जी रुत सावण की।
इतनी तो जइयो लपसी घोल
जितने अम्बर बीच तारे घणे
इतने जइयो दिवले बाल जी रुत सावण की।
जाओ रे बीरा घर आपणे,
कोई धोकी न दियो जबाब आई जी रुत सावण की।

(लील=हरी घास, ओब्बो=बहिन,
समढेट्टा=समधी का बेटा)

2. आम्बो तलै क्यूँ खड़ी

"आम्बों की ठाण्डळी छाँव
आम्बों तळै क्यूँ खड़ी ?
क्या तेरे पिया परदेश
क्या घर सास बुरी"
"चल-चल मूरख गँवार
तुझै मेरी क्या पड़ी
ना मेरे ओइया परदेश
ना घर सास बुरी।” आम्बो…
कोरी –सी कुल्हिया मँगाई दहिया जमावती
आया है कालड़ा काग, दही तो मेरी चाख गया,
उड़-उड़ काले काग तेरी चोंच बुरी।” आम्बो…
“नाक में सोन्ने की नथ, गूँठे में तेरे आरसी
है कोई चतुर सुजान जो पूछै तेरी पारसी।” आम्बो…
“ सासू का जाया है पूत, नणदिया का बीर
वो ही है चतुर सुजान, पूछैगा मेरी पारसी । आम्बो…
“आया है जो सावण मास थाम गड़ावती
जो घर होते म्हारे श्याम, मैं झूला झूलती । आम्बो…

(यह बारहमासा गीत है। क्रमश: सभी महीनों एवं
उनकी विशेषताओं का वर्णन किया जाता है।)

3. नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ

नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे
सावण का मेरा झूलणा
एक सुख देखा मैंने अम्मा के राज में
हाथों में गुड़िया रे, सखियों का मेरा खेलणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…

एक सुख देखा मैंने, भाभी के राज में
गोद में भतीजा रे गळियों का मेरा घूमणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…

एक सुख देखा मैंने बहना के राज में
हाथों में कसीदा रे फूलों का मेरा काढ़णा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…

एक दु:ख देखा मैंने सासू के राज में
धड़ी- धड़ी गेहूँ रे चक्की का मेरा पीसणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…

एक दुख देखा मैंने जिठाणी के राज में
धड़ी- धड़ी आट्टा रे चूल्हे का मेरा फूँकणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे
सावण का मेरा झूलणा

4. गलियों तो गलियों री बीबी

झूला-गीत
गळियों तो गळियों री बीबी मनरा फिरै
हेरी बीबी मनरा को लेओ न बुलाय।
चूड़ा तो मेरी जान ऽ ऽ
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
काळी रे जंगाळी मनरा ना पहरूँ
काळे म्हारे राजा जी के बाळ
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
हरी रे जंगाळी मनरा ना पहरूँ
हरे म्हारे राजा जी के बाग,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
धौळी जंगाळी रे मनरा ना पहरूँ
धौळा म्हारे राजा जी का घोड़ा,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
लाल जंगाळी रे मनरा ना पहरूँ
लाल म्हारे राजा जी के होंठ,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
सासू नै सुसरा सै कह दिया –
ऐजी थारी बहू बड़ी चकचाळ
मनरा सै ल्याली दोस्ती,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।