हिंदी कविता कमलेश संजीदा
Hindi Poetry Kamlesh Sanjida

1. अब विश्वास जगाना है

चरागों को जलाकर के,
अब अंधेरों को मिटाना है
नफरत के इन बीजों को,
अब जड़ से उखाड़ना है ॥

कोई आकर हमसे ये पूछे,
हमको क्या करना है
मिटाकर नफ़रतें दिल से,
उजाला वहां पे भरना है ॥

जो रूठे हुए हैं अभी तक,
उन्हें अब मनाना है
नफरत की चढ़ी है धूल,
दिल से उसे हटाना है ॥

एक छोटी सी किरन को अब,
अंगारा बनाना है
धधकती आग है जो दिल में,
उसे और बढ़ाना है ॥

अपनी इस हिम्मत को,
हमें और बढ़ाना है
दुश्मन की हर चालों को,
हमें उलटा लौटाना है ॥

हमें दे दे वह शक्ति,
अब शक्ति बढ़ाना है
जगाकर विश्वास दिल में,
अब विश्वास जगाना है ॥

2. मजा बचपन का

शब्द नहीं जिनको मैं,
लफ़्ज़ों में कह सकता हूँ
बच्चों की नटखटता को,
आँखों में बसा सकता हूँ॥

इनको जब भी मैं देखूं,
बस स्तब्ध सा रह जाता हूँ
भूलकर बस सारी दुनिया,
बच्चों में खो जाता हूँ ॥

कोई मुझसे कुछ भी कहे,
कहाँ मैं किसी की सुनता हूँ
ऐसे पलों को फिर से जी,
बचपन में जा सकता हूँ ॥

अब फिर से मैं तो,
मन का धनी हो ही सकता हूँ
जाकर बचपन में फिर से,
मज़ा बचपन का ले सकता हूँ ॥

सारी चिंता और फिकर को,
बस चुटकी में उड़ा सकता हूँ
उनकी तरह मुस्कुरा न सकूँ,
तो भी उनके संग खेल सकता हूँ ॥

रात और दिन के अंतर को,
कभी भी भुला सकता हूँ
जीवन जीने की इस कला को,
बस बच्चों के संग कर सकता हूँ ॥

भूलकर सारी दुनियाँदारी,
अब फिर से मैं रह सकता हूँ
जगाकर इस पागलपन को,
मजा बचपन का ले सकता हूँ ॥