पदावली : संत मीरा बाई (भाग-5)

Padavali : Sant Meera Bai (Part-5)

1. पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे

पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥
विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥

पाठांतर
पग बाँध घुघरयाँ णाच्यारी।।टेक।।
लोग कह्याँ मीराँ बाबरी, सासु कह्याँ कुलनासाँ री।
विष रो प्यालो राणा भेज्याँ, पीवाँ मीराँ हाँसाँ री।
तण मण वार्यां हरि चरणमां दरसण अमरित प्यास्याँ री।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, यारी सरणाँ आस्याँ री।।

(णाच्या=नाचना, हाँसां=हंसी-हंसी में, चरणमां=
चरणों पर, अमरित=अमृत)

2. पतियाँने कूण पतीजै

पतियाँने कूण पतीजै, आणि खबर हरि लीजै।।टेक।।
झूठी पतियाँ लिख-लिख भेजे, क्या जीजै क्या बीजै।
ऐसा है कोई बाँच सुणावै मैं बाँचू तो भीजै।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी चरण कमल चित दीजै।।

(पतियाँ=पत्र, पतीजै=विश्वास करे, बांच सुणावै=
पढ़कर सुना दे)

3. पतियाँ मै कैसे लिखूँ

पतियाँ मै कैसे लिखूँ, लिख्योरी न जाय।।टेक।।
कलम धरत मेरो कर कँपत है नैन रहे झड़ लाय।
बात कहुँ तो कहत न आवै, जीव रह्यो डरराय।
बिपत हमारी देख तुम चाले, कहिया हरिजी सूं जाय।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर चरण कमल रखाय ।।

पाठांतर
पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे॥टेक॥
कलम धरत मेरा कर कांपत। नयनमों रड छायो॥१॥
हमारी बीपत उद्धव देखी जात है। हरीसो कहूं वो जानत है॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल रहो छाये॥३॥

(पतियाँ=पत्र, कर=हाथ, झड़ लाय=मेंह बरस रहे हैं)

4. पपइया म्हारो कबह रो बैर चितारयाँ

पपइया म्हारो कबह रो बैर चितारयाँ।।टेक।।
म्हा सोवूं छी अपणे भवण माँ पियु पियु करताँ पुकारयाँ।
दाध्या ऊपर लूण लगायाँ, हिवड़ो करवत सारयाँ।
ऊभाँ बेठयाँ बिरछरी डाली, बोला कंठणा सारयाँ।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, हरि चरणां चित धारयाँ।।

(चितारयाँ=याद किया, सोवूँ छी=सोती थी, दाध्या=
जला हुआ, लूण=नमक, दाध्या ऊपर लूण लगायाँ=
जले पर नमक लगाना,वेदना को और अधिक
बढ़ाना, करवत=आरा, सारयाँ=चला दिया, कंठणा
सारयाँ=खूब चिल्लाता रहा, धारयाँ=लगा दिया)

5. पपइया रे, पिव की वाणि न बोल

पपइया रे, पिव की वाणि न बोल।
सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़॥
चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण।
पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥
थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज।
चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज॥
प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे, कागा तू ले जाय।
जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे, थांरि बिरहस धान न खाय॥
मीरा दासी व्याकुल रे, पिव पिव करत बिहाय।
बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम विन रह्यौ न जाय॥

पाठांतर
पपइया रे पिव की बाणि न बोल।।टेक।।
सुणि पावेली बिरहणी रे, थारो रालैली पाँख मरोड़।
चाँच कटाऊँ पपइया रे, ऊपरि कालर लूण।
पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहैसू कूण।
थारा सबद सुहावण रे, जो पिव मेला आज।
चाँच मढ़ाऊँ थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज।
प्रीतम कूँ पतियाँ लिखूँ, कउवा तूं ले जाइ।
जाइ प्रीतम जी सूँ यूँ कहै रे, थाँरी बिरहणि धान न खाइ।
मीराँ दासी व्याकुली रे, पिव पिव करत बिराइ।
बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी तुम बिनि रह्यो ही न जाइ।।

(पिव की=प्रियतम की, पावेली=पावेगी, कालर=काला,
मेला=मिल जाता, धान=धान्य,अन्न)

6. परम सनेही राम की नीति

परम सनेही राम की नीति ओलूँ री आवै।।टेक।।
राम हमारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै।
आवण कह गये अजहूँ न आये, जिवड़ो अति उकलावै।
तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिलावै।
चरण कवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै।
मीराँ कूँ प्रभु दरसण दीज्यौ आँणद बरण्यूँ न जावै।।

(नीति=व्यवहार, ओलूँ=याद, उकलावै=आकुल होना,
बरण्यूँ न जावै=वर्णन नहीं किया जा सकता)

7. प्रगट भयो भगवान

प्रगट भयो भगवान॥टेक॥
नंदजीके घर नौबद बाजे। टाळ मृदंग और तान॥१॥
सबही राजे मिलन आवे। छांड दिये अभिमान॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। निशिदिनीं धरिजे ध्यान॥३॥

8. प्रभु जी तुम दर्शन बिन मोय घड़ी चैन नहीं आवड़े

प्रभु जी तुम दर्शन बिन मोय घड़ी चैन नहीं आवड़े।।टेक।।
अन्न नहीं भावे नींद न आवे विरह सतावे मोय।
घायल ज्यूं घूमूं खड़ी रे म्हारो दर्द न जाने कोय।।१।।
दिन तो खाय गमायो री, रैन गमाई सोय।
प्राण गंवाया झूरता रे, नैन गंवाया दोनु रोय।।२।।
जो मैं ऐसा जानती रे, प्रीत कियाँ दुख होय।
नगर ढुंढेरौ पीटती रे, प्रीत न करियो कोय।।३।।
पन्थ निहारूँ डगर भुवारूँ, ऊभी मारग जोय।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, तुम मिलयां सुख होय।।४।।

9. प्रभुजी थें कहाँ गया, नेहड़ो लगाय

प्रभुजी थें कहाँ गया, नेहड़ो लगाय।
छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेम की बाती बलाय।।
बिरह समंद में छोड़ गया छो नेहकी नाव चलाय।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रह्यो न जाय।।

पाठांतर
प्रभुजी थें कहाँ गया नेहड़ा लगाय।।टेक।।
छोड़या म्हाँ विस्वास सँघाती, प्रेम री बाती जलाय।
बिरह समेद में छोड़ गया छो, नेह री नाव चलाय।
मीराँ रे प्रभु कबेर मिलोगे थे बिण रह्याँ ण जाय।।

(नेहड़ा=नेह,स्नेह, विश्वास सँघाती=विश्वासघात करने
वाला, समंद=समुद्र, नेह री=प्रेम की)

10. प्रभुजी मैं अरज करुँ छूं म्हारो बेड़ो लगाज्यो पार

प्रभुजी मैं अरज करुँ छूं म्हारो बेड़ो लगाज्यो पार।।
इण भव में मैं दुख बहु पायो संसा-सोग निवार।
अष्ट करम की तलब लगी है दूर करो दुख-भार।।
यों संसार सब बह्यो जात है लख चौरासी री धार।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर आवागमन निवार।।

11.

प्रभु तुम कैसे दीनदयाळ॥टेक॥
मथुरा नगरीमों राज करत है बैठे। नंदके लाल॥१॥
भक्तनके दुःख जानत नहीं। खेले गोपी गवाल॥२॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥

12. प्रभु बिनि ना सरै माई

प्रभु बिनि ना सरै माई।
मेरा प्राण निकस्या जात, हरी बिन ना सरै माई।।टेक।।
कमठ दादुर बसत जल में, जल से उपजाई।
मीन जल से बाहर कीना, तुरत मर जाई।
काठ लकरी बन परी, काठ घुन खाई।
ले अगन प्रभु डार आये, भसम हो जाई।
बन बन ढूँढत मैं फिरी, आली सुधि नहीं पाई।
एक बेर दरसण दीजै, सब कसर मिटि जाई।
पात ज्यूँ पीरी परी, अरू बिपत तन छाई।
दासी मीराँ लाल गिरधर, मिल्याँ सुख छाई।।

(सरे=सफल होना,काम चलाना, कमठ=कछुवा,
कसर=कमी, पात=पत्ता)

13. प्रभु सों मिलन कैसे होय

प्रभु सों मिलन कैसे होय।।टेक।।
पाँच पहर धन्धे में थीते, तीन पहर रहे सोय।
मानख जनम अमोलक पायो, सोतै सीतै डार्यो खोय।
मीराँ के प्रभु गिरधर भजीये होनी होय सो होय।।

(धन्धे=सांसारिक झगड़े, मानख=मनुष्य,
अमोलक=अमूल्य)

14. प्रेमनी प्रेमनी प्रेमनी रे, मन

प्रेमनी प्रेमनी प्रेमनी रे, मने लागी कटारी प्रेमनी।।टेक।।
जल जुमनामां भरवा गयाँताँ हती नागर माथे हेमनी रे।
काचे तें तातणे हरिजीए बाँधी, जेम खेंचे तेम तेमनी रे।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, शामली सुरत शुभ गमनी रे।।

(प्रेमनी=प्रेम की, मने=मुझे,मेरे हृदय में, भरण गयाँताँ=
भरने गई थी, हती=थी, हेमनी=सोने की, काचेते तातणे=
कच्चे धागे से,प्रेम बन्धन द्वारा, जेम=जिस प्रकार जैसे,
तेम तेमनी=उसी प्रकार, शामली=साँवरी, शुभ=मनोहर,
गमनी=ऐसे ही है)

15. पलक न लागी मेरी स्याम बिना

पलक न लागी मेरी स्याम बिना ।।टेक।।
हरि बिनु मथुरा ऐसी लागै, शसि बिन रैन अँधेरी।
पात पात वृन्दावन ढूंढ्यो, कुँज कुँज ब्रज केरी।
ऊँचे खड़े मथुरा नगरी, तले बहै जमना गहरी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर हरि चरणन की चेरी।।

(पलक न लागै=नींद नहीं आती, शसि=शशि,
चन्द्रमा, ब्रज-केरी=ब्रज के, चेरी=दासी)

16. पानी में मीन प्यासी

पानी में मीन प्यासी।
मोहे सुन सुन आवत हांसी॥
आत्मज्ञानबिन नर भटकत है।
कहां मथुरा काशी॥१॥
भवसागर सब हार भरा है।
धुंडत फिरत उदासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर।
सहज मिळे अविनशी॥३॥

17. पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो

पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस गायो॥

(रतन=रत्न, अमोलक=अमूल्य,बहुमूल्य, खोवायो=
खो दिया, सत=सत्य, खेवटिया=खेनेवाला, हरख-हरख=
हर्ष-हर्ष करके, जस=यश)

18. पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस

पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस॥
ऐसो है कोई पिवकूं मिलावै, तन मन करूं सब पेस।
तेरे कारण बन बन डोलूं, कर जोगण को भेस॥
अवधि बदीती अजहूं न आए, पंडर हो गया केस।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, तज दियो नगर नरेस॥

19. पिया अब घर आज्यो मेरे

पिया अब घर आज्यो मेरे, तुम मोरे हूँ तोरे।।टेक।।
मैं जन तेरा पंथ निहारूँ, मारग चितवत तोर।
अवध बदीती अजहुँ न आये, दूतियन सूँ नेह जोरे।
मीराँ कहे प्रभु कबरे मिलोगे, दरसन बिन दिन दोरे।।

(चितवन=देखना, अवध=अवधि, बदीती=निश्चित
की थी, दुतियन सूं=दूसरों से, नेह=स्नेह, दोरे=कठिन)

20. पिया इतनी बिनती सुनो मोरी

पिया इतनी बिनती सुनो मोरी, कोई कहियो रे जाय ।।टेक।।
और सूं रस बतियाँ करत हो, हम से रहै चित्त चोरी।
तुम बिन मेरे और न कोई, में सरनागत तोरी।
आवन कह गए अजहूँ न आये, दिवस रहे अब थोरी।
मीराँ के प्रभु कब रे मिलोगे, अरज करूँ कर जोरी।।

(और सूं=अन्य स्त्रियों से, रस बत्तियाँ=आनन्द से
भरी बातें, कर जोरी=हाथ जोड़ कर)

21. पिया कूँ बता दे मेरे

पिया कूँ बता दे मेरे, तेरा गुण मानूँगी।।टेक।।
खान पान मोहि फीको सो लागै, नैन रहे दोय छाय।
बार बार मैं अरज करत हूँ, रैण दिन जाय।
मीराँ के प्रभु बेग मिलो रे, तरस-तरस, जिय जाय।।

(फीको=स्वादहीन, नैन रहे होय दोय=दोनों आँखे
आँसुओं से भरी हुई हैं, तरस-तरस जिय जाय=
तड़प-तड़प कर प्राण निकले जाते हैं)

22. पिया थारो नाम लुभाणी जी

पिया थारो नाम लुभाणी जी।।टेक।।
नाम लेतां तिरतां सुण्यां जग पाहण पाणी जी।
कीरत कांइ णा किया, घमआ करम कुमाणी जी।
गणका कीर पढ़ावतां, बैकुण्ठ बसाणी जी।
अधर नाम कुन्जर लयां, दुख अवध घटाणी जी।
गरुण छांड पग घाइयां, पसुजूबण पटाणीं जी।
अजांमेल अध ऊधरे, जम त्रास णसानी जी।
पुतनाम जम गाइयां, गज मारा जाणी जी।
सरणागत थे वर दिया, परतीत पिछाणी जी।
मीराँ दासी रावली, अपणी कर जाणी जी।।

(तिरतां=पार उतरता, पाहण=पाषाण,पत्थर,
कीरत=शुभ कार्य, कुमाणी=घृणित कार्य,
कीर=तोता, कुंजर=हाथी, अवध=अवधि,
पसुजूण=पशु-योनि, पटाणी=समाप्त हो
गई, अध=अघ,पाप, त्रास=दुःख, पुतनाम=
पुत्र का नाम, परतीत=प्रतीत,विश्वास)

23. पीया बिण रह्यां न जायां

पिया बिण रह्यां न जायां।।टेक।।
तन मण जीवण प्रीतम वारयां।
निस दिन जोवां बाट छब रूप लुभावां।
मीरां रे प्रभु आसा थारी दासी कंठ आवां।।

(पीया=प्रियतम, छब=शोभा, थारी=तुम्हारी,
कंठ=गला,मन)

24. पिया मोहिं दरसण दीजै, हो

पिया मोहिं दरसण दीजै, हो।
बेर बेर में टेरहूँ, अहे क्रिया कीजै, हो।।टेक।।
जेठ महीने जल बिना, पंछी दुख होई, हो।
मोर आसाढ़ा कुरलहे, धन चात्रग सोई, हो।
सावण में झड़ गालियो, सखि तीजाँ केलै, हो।
भादवै नदिया बहै, दूरी जिन मेलै, हो।
सीप स्वाति ही भेलती, आसोजाँ सोई, हो।
देव काती में पूजहे, मेरे तुम होई, हो।
मगसर ठंड बहोंती पड़ै, मोहि बेगि सम्हालो हो।
पोस मही पाल घणा, अबही तुम न्हालो हो।
महा महीं बसंत पंचमी, फागाँ सब गावै हो।
फागुण फागा खेल है, बणराइ जरावै हो।
चैत चित्त में ऊपजी, दरसण तुम दीजे हो।
बैसाख बणराइ फलवै, कोइल कुरलीजै, हो।
काग उडावन दिय गाय, बूनूँ पिडत जोसी हो।
मीराँ बिरहणि व्याकुली, दरसण कब होसी हो।।

(बेर बेर=बार-बार, अहे=अब, कुरलहे=करुण
शब्द करते हैं, सोई=उसी प्रकार का करुण
शब्द, आसोजां=क्यार मास, काती=कार्तिक,
मगसर=अगहन, न्हालो=आकर देख लो,
माह=माह,मास, फागाँ=होली के गीत.
बणराइ=बनरजा,वसन्त ऋतु, ऊपजी=इच्छा
उत्पन्न हुई, कुरलीजै=करुण शब्द करती है,
पिडत=पंडित, जोसी=ज्योतिषी)

25. पिया म्हाँरे नैणा आगां रहज्यो जी

पिया म्हाँरे नैणा आगां रहज्यो जी।।टेक।।
नैणाँ आगाँ रहज्यो, म्हाँणो भूल णो जाज्यो जी।
भौ सागर म्हाँ बूड्या चाहाँ, स्याम बेग सुब लीज्यो जी।
राणा भेज्या विष रो प्यालो, थें इमरत वर दीज्यो जी।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, मिल बछूडन मत कीज्यो जी।।

(जाज्यो=जाना, बूड्या=डूबना)

26. पिहु की बोलि न बोल

पिहु की बोलि न बोल पपैय्या॥टेक॥
तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥१॥
तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥२॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। कामनी करत कीलोल॥३॥

27. प्यारे दरसन दीज्यो आय

प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय।।

जल बिन कमल, चंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्याँ बिन सजनी।
आकुल व्याकुल फिरूँ रैन दिन, बिरह कालजो खाय।।

दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूं कथत न आवे बैना।
कहा कहूँ कछु कहत न आवै, मिलकर तपत बुझाय।।

क्यूँ तरसावो अन्तरजामी, आय मिलो किरपाकर स्वामी।
मीरा दासी जनम-जनम की, पड़ी तुम्हारे पाय।।

पाठांतर
प्यारे दरसण दीयो आय थें बिण रह्या णा जाय।।टेक।।
जल बिण कवल चंद बिण रजनी, थें बिण जीवण जाय।
आकुल व्याकुल रैण बिहावा, बिरह कलेजो खाय।
दिवस ना भूख न निदरा रैणा, मुखाँ सूं कह्या न जाय।
कोण सुणे कासूँ कहियारी, मिल पिव तपन बुझाय।
तक्यूँ तरसावाँ अन्तरजामी, आय मिलो दुख जाय।
मीरां दासी जनम जनम री, थारो नेह लगाय।।

(थें बिण=तुम्हारे बिना, कलेजो=हृदय, तपन=दुःख)

28. फरका फरका जो बाजी हरी की मुरलीया

फरका फरका जो बाजी हरी की मुरलीया, सुनोरे सखी मारा मन हरलीया॥टेक॥
गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी। और बाजी जाहा मथुरा नगरीया॥१॥
तुम तो बेटो नंदबावांके। हम बृषभान पुराके गुजरीया॥२॥
यहां मधुबनके कटा डारूं बांस। उपजे न बांस मुरलीया॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमलकी लेऊंगी बलय्या॥४॥

29. फागुन के दिन चार होली खेल मना रे

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥

30. फिर बाजे बरनै हरीकी मुरलीया

फिर बाजे बरनै हरीकी मुरलीया सुनोरे, सखी मेरो मन हरलीनो॥१॥
गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी। ज्याय बजी वो तो मथुरा नगरीया॥२॥
तूं तो बेटो नंद बाबाको। मैं बृषभानकी पुरानी गुजरियां॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरनकी मैं तो बलैया॥४॥

31. फूल मंगाऊं हार बनाऊं

फूल मंगाऊं हार बनाऊं। मालीन बनकर जाऊं॥१॥
कै गुन ले समजाऊं। राजधन कै गुन ले समजाऊं॥२॥
गला सैली हात सुमरनी। जपत जपत घर जाऊं॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। बैठत हरिगुन गाऊं॥४॥

32. बन जाऊं चरणकी दासी रे

बन जाऊं चरणकी दासी रे, दासी मैं भई उदासी॥टेक॥
और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥

33. बन्सी तूं कवन गुमान भरी

बन्सी तूं कवन गुमान भरी॥टेक॥
आपने तनपर छेदपरंये बालाते बिछरी॥१॥
जात पात हूं तोरी मय जानूं तूं बनकी लकरी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर राधासे झगरी बन्सी॥३॥

34. बरजी मैं काहूकी नाहिं रहूं

बरजी मैं काहूकी नाहिं रहूं।
सुणो री सखी तुम चेतन होयकै मनकी बात कहूं॥
साध संगति कर हरि सुख लेऊं जगसूं दूर रहूं।
तन धन मेरो सबही जावो भल मेरो सीस लहूं॥
मन मेरो लागो सुमरण सेती सबका मैं बोल सहूं।
मीरा के प्रभु हरि अविनासी सतगुर सरण गहूं॥

पाठांतर
बरजी री म्हां स्याम बिणा न रह्यां।।टेक।।
साधां संगत हरि सुख पास्यू जग सूं दूर रह्यां।
तम मण म्हारां जावाँ जास्यां, म्हारो सीस लह्यां।
मण म्हारो लाग्यां गिरधारी जगरा बोल सह्यां।
मीरां रे प्रभु हरि अबिनासी, थारी सरण गह्यां।।

(बरजी=रोकने पर, जावाँ जास्यां=चला जाता है)

35. बरसै बदरिया सावन की

बरसै बदरिया सावन की,
सावन की मनभावन की ।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा,
भनक सुनी हरि आवन की ॥
उमड घुमड चहुं दिस से आयो,
दामण दमके झर लावन की ।
नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै,
सीतल पवन सुहावन की ॥
मीरा के प्रभु गिरघर नागर,
आनन्द मंगल गावन की ॥

पाठांतर
बरसां री बादरिआ सावन री, सावन री मण भावन री।।टेक।।
सावन मां उमँग्यो मणरी, भणक सुण्या हरि आवन री।
उमड़ घुमड़ घण मेघां आयां, दामण घण झर लावण री।
बीजां बूँदां मेहां आयां बरसां सीतल पवण सुहावण री।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, बेला मंगल गावण री।।

(मण भावन=मनोहर, भणक=आवाज, मेघाँ=बादल,
दामण=दामिनी,बिजली, बेला=समय)

36. ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ

ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ, ब्रजबणताँ सुखरासी।
णाच्याँ गावाँ ताल बजावाँ, पावाँ आणद हाँसी।
णन्द जसोदा पुन्न रो प्रगटह्याँ, प्रभु अविनासी।
पीताम्बर कट उर बैजणताँ, कर सोहाँ री बाँसी।।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, दरसण दीज्यो दासी।।

(गोकल रो=गोकुल का, जण=जन,प्रत्येक व्यक्ति,
ब्रजबणताँ=ब्रज-वनिता,ब्रज की नारियाँ, सुखरासी=
अपार सुख, णन्द=नन्द,कृष्ण के पिता, कट=कटि,
बैजणताँ=बैजयन्ती माला, बाँसी=बाँसुरी, रे=के,
नागर=चतुर)

37. बसो मोरे नैनन में नंदलाल

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल।
अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल।।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।

38. बड़े घर ताली लागी रे

बड़े घर ताली लागी रे, म्हारां मन री उणारथ भागी रे॥
छालरिये म्हारो चित नहीं रे, डाबरिये कुण जाव।
गंगा जमना सूं काम नहीं रे, मैंतो जाय मिलूं दरियाव॥
हाल्यां मोल्यांसूं काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार।
कामदारासूं काम नहीं रे, मैं तो जाब करूं दरबार॥
काच कथीरसूं काम नहीं रे, लोहा चढ़े सिर भार।
सोना रूपासूं काम नहीं रे, म्हारे हीरांरो बौपार॥
भाग हमारो जागियो रे, भयो समंद सूं सीर।
अम्रित प्याला छांडिके, कुण पीवे कड़वो नीर॥
पीपाकूं प्रभु परचो दियो रे, दीन्हा खजाना पूर।
मीरा के प्रभु गिरघर नागर, धणी मिल्या छै हजूर॥

पाठांतर
बड़े घर तालो लागां री, पुरबला पुन्न जगावांरी।।टेक।।
झीलरयां री कामण म्हांरो, डबरां कुण जावांरी।
गंगा जमणा कामणा म्हारो, म्हां जावां दरियावांरी।
हेल्या मेल्या कामणा म्हारे, पेठ्या मिक सरदारां री।
कामदारां सूं कामण म्हारे, जावा जाव म्हा दरबारां री।
काथ कथीर सूं कामण म्हारे, चढ़स्यां घणरी सार्यांरी।
सोना रूपां सूं काम ण म्हारे, म्हांरे हीरां रो बौपारां री।
भाग हमारो जाग्यां रे, रतणकर म्हारी सीरयां री।
अमृत प्यालो छाड़यां रे, कुण पीवां कडवां नीरा री।
भगत गणां प्रभु परचां पांवां, गजामां जतां दूरबारी।
मीरां रे प्रभु गिरधर नागर, मणरथ करस्यां पूरयारी।।

(ताला लागाँ=सम्बन्ध हो गया,लगन लग गई,
पुरबला पुन्न=पूर्वजन्म का पुन्य, झीलर्यां=झील
जलाशय, डबरां=छोटा तालाब, दरियाव=समुद्र,
हेल्या-मेल्या=हेल-मेल दूर का सम्बन्ध, कामदारा=
प्रहरी,पहरेदार, काथ=काँच, कथीर=राँग, सारयाँ=
लोहा,रूपाँ, सीरयाँ=सम्बन्ध, नीरा=नीर,पानी,
मरणथ=मनोरथ,मन की इच्छा)

39. बंसीवारा आज्यो म्हारे देस

बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।

40. बागनमों नंदलाल चलोरी

बागनमों नंदलाल चलोरी॥ अहालिरी॥टेक॥
चंपा चमेली दवना मरवा। झूक आई टमडाल॥१॥
बागमों जाये दरसन पाये। बिच ठाडे मदन गोपाल॥२॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर। वांके नयन विसाल॥३॥

41. बादल देख डरी

बादल देख डरी हो, स्याम, मैं बादल देख डरी ।
श्याम मैं बादल देख डरी ।
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी ।
जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई सब भोम हरी ।
जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर कीजो प्रीत खरी ।
श्याम मैं बादल देख डरी ।

पाठांतर
बादल देखाँ झरी स्याम मैं बादल देखाँ झरी।।टेक।।
काला पीला घट्या उमड्या बरस्यौ चार धरी।
जित जोयाँ तित पाणी पाणी बप्यासा भूम हरी।
म्हारा पिया परदेसाँ बसताँ, भीज्यां बार खरी।
मीराँ रे प्रभु हरि अबिनासी, करस्यों प्रती खरी।।

(झरी=रो पड़ी, जोयाँ=देखा, पाणी पाणी=पानी
ही पानी, भूम=भूमि,पृथ्वी, बार=बाहर, खरी=
सच्ची)

42. बादला रे थें जल भर्या आज्यो

बादला रे थें जल भर्या आज्यो।।टेक।।
झर झर बूँदा बरसां आली कोयल सबद सुनाज्यो।
गाज्यां बाज्यां पवन मधुर्यो, अम्बर बदरां छाज्यो।
सेज सवांर्या पिय घर आस्यां सखायं मंगल गास्यो।
मीरां रे हरि अबिणासी, भाग भल्यां जिण पास्यो।।

(आली=सखी, बून्दाँ=बून्दें, मधुर्यो,मधुरियो=मन्द-मन्द,
सेझ=सेज,शैया, सवारयां=सजा दी, भाग=भाग्य)

43. बारी होके जाने बंदना

बारी होके जाने बंदना। पठीयो कछु नारी है॥टेक॥
बुटीसे बुडी भई साची तो भारी हो बिचारी रही।
तुम घर जावो बदना मेरो प्यारा भारी हो॥१॥
नारी होके द्वारकामें बाजे बासुरी। बासु मुस वारी हो।
वोही खूब लाला वणीर जोए। मारी सारी हो॥२॥
पान जैसी पिरी भई पर गोपवर रही।
मेरा गिरिधर पिया प्रभुजी मीरा वारी डारी हो॥३॥

44. बालपनमों बैरागन करी गयोरे

बालपनमों बैरागन करी गयोरे॥टेक॥
खांदा कमलीया तो हात लकरीया। जमुनाके पार उतारगयोरे॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत। बनसीकी टेक सुनागयोरे॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सावली सुरत दरशन दे गयोरे॥३॥

45. बाला मैं बैरागण हूंगी

बाला मैं बैरागण हूंगी।
जिन भेषां म्हारो साहिब रीझे, सोही भेष धरूंगी।

सील संतोष धरूँ घट भीतर, समता पकड़ रहूंगी।
जाको नाम निरंजन कहिये, ताको ध्यान धरूंगी।

गुरुके ग्यान रंगू तन कपड़ा, मन मुद्रा पैरूंगी।
प्रेम पीतसूँ हरिगुण गाऊँ, चरणन लिपट रहूंगी।

या तन की मैं करूँ कीगरी, रसना नाम कहूंगी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, साधां संग रहूंगी।

46. बासुरी सुनूंगी

बासुरी सुनूंगी। मै तो बासुरी सुनूंगी। बनसीवालेकूं जान न देऊंगी॥टेक॥
बनसीवाला एक कहेगा। एकेक लाख सुनाऊंगी॥१॥
ब्रिंदाबनके कुजगलनमों। भर भर फूल छिनाऊंगी॥२॥
ईत गोकुल उत मथुरा नगरी। बीचमें जाय अडाऊंगी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल लपटाऊंगी॥४॥

47. भई हों बाबरी सुनके बांसरी

भई हों बाबरी सुनके बांसरी, हरि बिनु कछु न सुहाये माई।।टेक।।
श्रवन सुनल मेरी सुध बुध बिसरी, लगी रहत तामें मन की गांसूँ री।
नैम धरम कोन कीनी मुरलिया, कोन तिहारे पासूँ, री।
मीरां के प्रभु बस कर लीने, सप्त ताननि की फाँसूँ री।।

(श्रवण=कान, गाँसु=फन्दा, नेम=नियम, कोन=कौन-सा,
सप्त ताननि की=सात स्वरों की (सात स्वर ये हैं-सा रे
गा मा पा धा नी)

48. भज मन शंकर भोलानाथ

भज मन शंकर भोलानाथ भज मन॥टेक॥
अंग विभूत सबही शोभा। ऊपर फुलनकी बास॥१॥
एकहि लोटाभर जल चावल। चाहत ऊपर बेलकी पात॥२॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। पूजा करले समजे आपहि आप॥३॥

49. भजु मन चरन कँवल अविनासी

भजु मन चरन कँवल अविनासी।
जेताइ दीसे धरण-गगन-बिच, तेताई सब उठि जासी।
कहा भयो तीरथ व्रत कीन्हे, कहा लिये करवत कासी।
इस देही का गरब न करना, माटी मैं मिल जासी।
यो संसार चहर की बाजी, साँझ पडयाँ उठ जासी।
कहा भयो है भगवा पहरयाँ, घर तज भए सन्यासी।
जोगी होय जुगति नहिं जाणी, उलटि जनम फिर जासी।
अरज करूँ अबला कर जोरें, स्याम तुम्हारी दासी।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, काटो जम की फाँसी।

पाठांतर
भज मण चरण कंवल अवणासी
जेतांई दीसां धरण गगण मां तेताई उठ जासी
तीरथ बरतां ग्याण कथन्तां कहा लयां करवत कासी
यो देही रो गरब णा करणा माटी मा मिलजासी
यो संसार चहर रो बाजी सांझ पडयां उठ जासी
कहाँ भया था भगवां पहर्यां घर तज भये सण्यासी
जोगी होयाँ जुगत णा जाणा उलट जणम रां फांसी
अरज करां अबला कर जोड़याँ स्याम दासी
मीरां रे प्रभु गिरधर नागर, काढयां म्हारी गांसी।

(अवणासी=अबिनाशी, जेताई=जितना, दीसाँ=
दिखाई देता है, तेताई=उतना ही,सब का सब,
उठ जासी=नष्ट हो जायेगा, चहर रो बाजी=
चिड़ियों का खेल है, जुगत=युक्ति, गाँसी=बन्धन)

50. भीजे म्हांरो दांवत चीर

भीजे म्हांरो दांवत चीर, सवाणियो लूम रह्यो रे।।टेक।।
आप तो जाय बिदेसां छाये, जिवड़ो धरेत न धीर।
लिख लिख पतियां सदेसा भेजूँ कब घर आवै म्हारो पीव।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर दरसन दो ने बलवीर।।

(दांवत चीर=पल्ले का कपड़ा, सावणियों=सावन
का महीना, लूम रह्यो=छाय रहा है, पतियाँ=पत्र,
पीव=प्रियतम, बलबीर=कृष्ण)

51. भीजो मोरी नवरंग चुनरी

भीजो मोरी नवरंग चुनरी। काना लागो तैरे नाव॥टेक॥
गोरस लेकर चली मधुरा। शिरपर घडा झोले खाव॥१॥
त्रिभंगी आसन गोवर्धन धरलीयो। छिनभर मुरली बजावे॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित लागो तोरे पाव॥३॥

52. भीड़ छाँडि बीर वैद मेरे

भीड़ छाँडि बीर वैद मेरे पीर न्यारी है।।टेक।।
करक कलेजे मारी ओखद न लागे थाँरी।
तुम घरि जावो बैद मेरे पीर भारी है।
विरहित बिरह बाढ्यो, ताते दुख भयो गाढ़ो।
बिरह के बान ले बिरहनि मारी है।
चित हो पिया की प्यारी नेकहूँ न होवे न्यारी।
मीराँ तो आजार बाँध बैद गिरधारी है।।

(पीर=पीड़ा, करक=कसक,चोट, ओखद=औषधि,
बिरहति=प्रियतम का विरह, चित=याद,आजार=दुःखी)

53. भुवण पति थें घरि आज्याँ जी

भुवण पति थें घरि आज्याँ जी
बिथा लगाँ तण जराँ जीवण, तपता बिरह बुझाज्याँ जी।।टेक।।
रोवत रोवत डोलताँ सब रैण बिहावाँ की।
भूख गयाँ निदरा गयाँ पापी जीव णा जावाँ जी।
दुखिया णा सुखिया करो, म्हाणो दरसण दीज्याँ जी।
मीराँ व्याकुल बिरहणी, अब बिलम णा कीज्याँ जी।।

(भुवणिपति=भुवनपति,संसार के स्वामी, घरि=घर,
बिथा=व्यथा, बिहावाँ=बिताना, निदरा=निद्रा,नींद,
बिलम=बिलम्ब देर)

54. भोलानाथ दिंगबर ये दुःख मेरा हरोरे

भोलानाथ दिंगबर ये दुःख मेरा हरोरे॥टेक॥
शीतल चंदन बेल पतरवा मस्तक गंगा धरीरे॥१॥
अर्धांगी गौरी पुत्र गजानन चंद्रकी रेख धरीरे॥२॥
शिव शंकरके तीन नेत्र है अद्‌भूत रूप धरोरे॥३॥
आसन मार सिंहासन बैठे शांत समाधी धरोरे॥४॥
मीरा कहे प्रभुका जस गांवत शिवजीके पैयां परोरे॥५॥

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