Satyanarayan Singh
सत्यनारायण सिंह

सत्यनारायण सिंह की कविताएँ

1. स्वतंत्रता दिवस पर

विघटन की आँधी आज जोर
हिल रहा देश का ओर छोर

है भड़क उठा फिर जातिवाद
कहीं भाषा कहीं प्रान्तवाद
गाँधी के सपने चूर - चूर
कर मंदिर मस्जिद का विवाद

खंडित है मानवता लाचार
गोधरा मे गूँजे आर्तनाद
इस लोकतंत्र के मंदिर पर
अब होता आतंकी प्रहार

मन सुन्न और विक्षुण्ण करे
कालुचक का वह नरसंहार
हा ! दानवता का हिंस्रनाद
भरता मेरे मन में विषाद

हो सावधान भारत के जन
करना है इन पर अतिक्रमण
रचना है ऐसा देश स्वजन
हो हर विपदा का उच्चाटन

स्वातंत्र्य दिवस तुम अति पावन
भर दो जन मन में नव चेतन
पुलकित हो सबका उर आनन
हो राम राज का अभिसेचन

2. आ गया पावन दशहरा

फिर हमें संदेश देने
आ गया पावन दशहरा

तम संकटों का हो घनेरा
हो न आकुल मन ये तेरा
संकटों के तम छटेंगें
होगा फिर सुंदर सवेरा
धैर्य का तू ले सहारा

द्वेष हो कितना भी गहरा
हो न कलुषित मन यह तेरा
फिर से टूटे दिल मिलेंगें
होगा जब प्रेमी चितेरा
बन शमी का पात प्यारा

सत्य हो कितना प्रताडित
पर न हो सकता पराजित
रूप उसका और निखरे
जानता है विश्व सारा
बन विजय स्वर्णिम सितारा

3. आओ ज्योति-पर्व मनाएँ

प्रेम दीप घट-घट में जगाकर जन मन तिमिर मिटाएँ
बाती बुझ गई जो आशा की फिर से उसे जगाएँ
बिछड़ी सजनी को हम उसके साजन संग मिलाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ

जगमग-जगमग दीप की माला ऐसा भाव जगाए
नभ मंडल के तारांगण ज्यों उतर धरा पर आए
भूला पथिक जो अपनी मंज़िल उसको राह दिखाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ

उच्च विचारों के रंगो से कुटिया महल रंगाएँ
सुंदर संस्कारों के तोरण मन का द्वार लुभाएँ
कृपा लहे लक्ष्मी की सबको धन कुबेर बरसाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ

शुभ रंगोली मधुर वचन की जग पावन कर जाए
कर्म ही पूजा और न दूजा सबको पाठ सिखाएँ
अपने शुभ संकल्पों से हम भारत स्वर्ग बनाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ

4. दीप का संदेश

दीप का संदेश है यह
प्रीत का अनुदेश है यह
दीपमाला अनगिनत हों
टिमटिमाता दीप न हो
हो प्रखर ज्योती निराली
यों मनाएँ हम दीवाली
दीप हम ऐसे जगाएँ
स्वप्न सोये जाग जाएँ
द्वेष तम मिट जाए जग से
इस धरा पर प्रेम सरसे

5. तेरा मेरा नाता

हर दीपक की ज्योति बताती
तेरा मेरा नाता

वह नाता जो सदा है पावन
ना कभी अपावन होता
आँधी से लडता है फिर भी
मात नहीं जो खाता

अमाँ का गहरा कालापन भी
जिसको नहीं डिगाता
तेजस्वी बन दीप शिखा सम
जग आलोकित करता
कितने अनुबंधों का साक्षी
दीप राग यह गाता

सत्य प्रेम के अनुबंधों में
पुण्य पुनीत है फलता
पर्व दिवाली नया खोलता
जहाँ प्रेम का खाता

6. दीप प्रकाश

बहुत साल पहले
गाँव में
घर-घर जाकर
वह
मिट्टी के रंग बिरंगे
दिये बेचा करता
अब वह
थक-सा गया है
कुछ नहीं करता
केवल घर में ही
बैठा रहता है
ऑखों में बुझी बाती रख
फिर भी गाँव के
हर घर से
जलते दियों का प्रकाश
कभी उसके बंद किवाड़ की
दराज से
तो कभी फूटे खपरैलों से
निर्विरोध रिसकर
उसके निर्विकार चेहरे को
प्रकाशित कर रहा है

7. दिवाली दोहे

पर्व दिवाली आ रहा खुशियाँ लिए अधीर।
कान गुदगुदी कर गया शीतल मंद समीर।।

वर्षा दे गई शरद को दीवाली सौग़ात।
शस्य श्यामला सज धरा फूली नहीं समात।।

चंचल मन ज्योती कहूँ सकुचत कहूँ लजात।
पनघट पर की दीपिका पवन छुए लहरात।।

तमसो मा ज्योतिर्गमय देत दीप संदेश ।
जग उजियारा करत है लेस नहीं अंदेश।।

वह लक्ष्मी पूजन सफल रहा दीप समुझाय।
हर मन की सदवृत्ति का कर पूजन मन लाय।।

खेत हाट खलिहान पथ घर आँगन चौपाल।
नगर गली नुक्कड सजे पहन दीप की माल।।

दीप जगे यादें जगी जगे सुनहले भाग।
पिय छबि नयनों में जगी हिया जगा अनुराग।।

दमक रोशनी में उठी अमाँ की काली रात।
प्रेम खुमारी के चढ़े निखरे स्यामल गात ।।

दीप प्रतीक ग्यान का दूर करे अंधियार ।
दीपक शुभ संकल्प तव नमन हज़ारों बार।।

दीप महोत्सव टेरता हर कवि मन का तार।
गोरी को जस छेड़ता अपने पिय का प्यार।।

8. होली की पूर्णिम संध्या पर

होली की पूर्णिम संध्या पर
आज मेरा एकाकी मन,
मुखरित हुआ है ऐसे जैसे
राधा ने पाया मोहन

सपनों में बसने वाले ने
धूम मचाई हैं नयनन,
बरसाने में खेली जैसे
राधा होली संग किशन

गाल गुलाल से लाल हुए हैं
सतरंगों में रंगी चुनर,
मन गलियारा चहका ऐसे
मधु पाकर जैसे मधुबन

फाग की आग लगी है जब से
निखरा तन मन बन कुंदन,
बरसों सोया भाग जगा यों
पा होली अवसर पावन

9. दीदी गौरैया

यह भोली भाली गौरैय्या
कितनी है ये प्यारी मैय्या

नित्य सुबह यह
हमें जगाती
निज चहकन में विहग सुनाती
इसे वाटिका नहीं है भाती
क्योंकि इसके
हम हैं साथी

तिनका तिनका
चुनकर लाती
घर ही में घोंसला बनाती
जब हम रोते तब चुप रहती
जब हम हँसते
खूब फुदकती

जब पढते
फुलवारी जाती
मन ना भाये तो घर आती
रसोई में आवाज लगाती
मैय्या हमको
भूख सताती

आटे की लिट्टी जब पाती
खुश हो ऑगन में आ खाती
हमें भी इसकी याद सताती
जब यह कहीं घूमने जाती
नहीं दिखे तब पूछें मैय्या
कहँ गई दीदी गौरैय्या

10. अमर मधुशाला

अमर हो गया पीनेवाला
हुयी अमर वह मधुशाला
अमर हो गयी अंगूरी वह
हुयी अमर मधु की हाला
सुरा सुराही अमर हो गये
किस्मत की खूबी देखो
अमर हो गयी मादक साकी
हुयी अमर साकीबाला।।१।।

अमर हो गया नाज दिखाता
वह छोटा मधु का प्याला
अमर हो गयी अदा दिखाती
अधरों पर जीवन हाला
'सत्य' प्रेम का पैमाना भी
आज अमर होकर छलका
अमर कवी जग वंदन करता
अमर आपकी मधुशाला।।२।।

11. कहाँ छिपे चितचोर

बदरा गरजे चपला चमके
नभ छाई घटा घनघोर
रिमझिम रिमझिम बदरा बरसे
स्मृतियों का जोर

अंधियारे में डूबी दिशाएं
मन डरपत जैसे चोर
दूर दूर तक बाट न सूझे
ढूँढूँ कहाँ किस ओर

छुपे पखेरू सूना जंगल
बन मोर मचाए शोर
चौपाए सब खड़े चित्रवत
अपने अपने ठौर

इकटक तेरी बाट निहारत
अंखियाँ बनी चकोर
तुम बिन इस जीवन पतंग की
कट गई जैसे डोर

12. जीवन-दाता

स्वीकारो यह नमन हमारा
जीवन के दाता
परम पूज्य है आप हमारे
आप ही भाग्य विधाता

प्रेम सिंधु जो छिपा आप में
हमें देख हरसाता
आँसू बन नयनों से हम पर
सदा प्रेम बरसाता

आशीर्वचन आपका नित ही
पथ प्रशस्त है करता
जीवन के इस नंदनवन में
ढेरों खुशियाँ भरता

तारा आपकी आँखों का
बनना क्यों मुझको भाता
यही एक संबंध हमारा
दृढ़ करता जो नाता

13. नव वर्ष का स्वागत करें

आओ मिलकर हम सभी
नव वर्ष का स्वागत करें

नव वर्ष का स्वागत करें
संकल्प नव धारण करें
नव वर्ष की नव चेतना से
शक्ति नव अर्जित करें
भारत के नवनिर्माण का
जिससे कि प्रण पूरा करें
ज्ञान और विज्ञान को
इस देश में विकसित करें
अंधश्रद्धा को मिटा कर
देश को साक्षर करें

14. नव वर्ष के हे सृजनहार

नव वर्ष के हे सृजनहार
कीजिए मेरी कल्पना को
इतना सजग कि
मेरी कल्पना की ऊँची उड़ान
खुले आकाश की ऊँचाई नाप सके
नव वर्ष के हे नवोदित नव प्रभाकर
कीजिए मेरे मन को
इतना उजागर कि
मेरे ईद गिर्द छाया अंधेरा मुझे
भयभीत न कर सके
नव वर्ष की
हे नव चेतना
मेरे अचेतन मन को
कर दो फिर से इतना सचेतन कि
निष्क्रिय शरीर रूपी
पिंजड़े मे जो बंद है
वह खुले मुक्त विश्व में
विचर सके