विविध गीत/ग़ज़लें जाँ निसार अख़्तर
Vividh Rachnayen Jaan Nisar Akhtar

ग़ज़लें

1. कौन कहता है तुझे मैंने भुला रक्खा है

कौन कहता है तुझे मैंने भुला रक्खा है
तेरी यादों को कलेजे से लगा रक्खा है

लब पे आहें भी नहीं आँख में आँसू भी नहीं
दिल ने हर राज़ मुहब्बत का छुपा रक्खा है

तूने जो दिल के अंधेरे में जलाया था कभी
वो दिया आज भी सीने में जला रक्खा है

देख जा आ के महकते हुये ज़ख़्मों की बहार
मैंने अब तक तेरे गुलशन को सजा रक्खा है

2. दीदा ओ दिल में कोई हुस्न बिखरता ही रहा

दीदा ओ दिल में कोई हुस्न बिखरता ही रहा
लाख पर्दों में छुपा कोई सँवरता ही रहा

रौशनी कम न हुई वक़्त के तूफ़ानों में
दिल के दरिया में कोई चाँद उतरता ही रहा

रास्ते भर कोई आहट थी कि आती ही रही
कोई साया मिरे बाज़ू से गुज़रता ही रहा

मिट गया पर तिरी बाँहों ने समेटा न मुझे
शहर दर शहर मैं गलियों में बिखरता ही रहा

लम्हा लम्हा रहे आँखों में अंधेरे लेकिन
कोई सूरज मिरे सीने में उभरता ही रहा

3. मय-कशी अब मिरी आदत के सिवा कुछ भी नहीं

मय-कशी अब मिरी आदत के सिवा कुछ भी नहीं
ये भी इक तल्ख़ हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं

फ़ित्ना-ए-अक़्ल के जूया मिरी दुनिया से गुज़र
मेरी दुनिया में मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं

दिल में वो शोरिश-ए-जज़्बात कहाँ तेरे बग़ैर
एक ख़ामोश क़यामत के सिवा कुछ भी नहीं

मुझ को ख़ुद अपनी जवानी की क़सम है कि ये इश्क़
इक जवानी की शरारत के सिवा कुछ भी नहीं

4. मुद्दत हुई उस जान-ए-हया ने हम से ये इक़रार किया

मुद्दत हुई उस जान-ए-हया ने हम से ये इक़रार किया
जितने भी बदनाम हुए हम उतना उस ने प्यार किया

पहले भी ख़ुश-चश्मों में हम चौकन्ना से रहते थे
तेरी सोई आँखों ने तो और हमें होशियार किया

जाते जाते कोई हम से अच्छे रहना कह तो गया
पूछे लेकिन पूछने वाले किस ने ये बीमार किया

क़तरा क़तरा सिर्फ़ हुआ है इश्क़ में अपने दिल का लहू
शक्ल दिखाई तब उस ने जब आँखों को ख़ूँ-बार किया

हम पर कितनी बार पड़े ये दौरे भी तन्हाई के
जो भी हम से मिलने आया मिलने से इंकार किया

इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़ा है हम को क्या समझाते हो
हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया

महफ़िल पर जब नींद सी छाई सब के सब ख़ामोश हुए
हम ने तब कुछ शेर सुनाया लोगों को बेदार किया

अब तुम सोचो अब तुम जानो जो चाहो अब रंग भरो
हम ने तो इक नक़्शा खींचा इक ख़ाका तय्यार किया

देश से जब प्रदेश सिधारे हम पर ये भी वक़्त पड़ा
नज़्में छोड़ी ग़ज़लें छोड़ी गीतों का बेओपार किया

गीत जाँ निसार अख़्तर

1. मैं उनके गीत गाता हूं

मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

जो शाने तग़ावत का अलम लेकर निकलते हैं,
किसी जालिम हुकूमत के धड़कते दिल पे चलते हैं,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

जो रख देते हैं सीना गर्म तोपों के दहानों पर,
नजर से जिनकी बिजली कौंधती है आसमानों पर,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

जो आज़ादी की देवी को लहू की भेंट देते हैं,
सदाक़त के लिए जो हाथ में तलवार लेते हैं,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

जो पर्दे चाक करते हैं हुकूमत की सियासत के,
जो दुश्मन हैं क़दामत के, जो हामी हैं बग़ावत के,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

भरे मज्मे में करते हैं जो शोरिशख़ेज तक़रीरें,
वो जिनका हाथ उठता है, तो उठ जाती हैं शमशीरें,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

वो मुफ़लिस जिनकी आंखों में है परतौ यज़दां का,
नज़र से जिनकी चेहरा ज़र्द पड़ जाता है सुल्तां का,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

वो दहक़ां खि़रमन में हैं पिन्हां बिजलियां अपनी,
लहू से ज़ालिमों के, सींचते हैं खेतियां अपनी,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

वो मेहनतकश जो अपने बाजुओं पर नाज़ करते हैं,
वो जिनकी कूवतों से देवे इस्तिबदाद डरते हैं,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

कुचल सकते हैं जो मज़दूर ज़र के आस्तानों को,
जो जलकर आग दे देते हैं जंगी कारख़ानों को,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

झुलस सकते हैं जो शोलों से कुफ्ऱो-दीं की बस्ती को,
जो लानत जानते हैं मुल्क में फ़िरक़ापरस्ती को,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

वतन के नौजवानों में नए जज़्बे जगाऊंगा,
मैं उनके गीत गाता हूं, मैं उनके गीत गाता हूं!

2. आवाज़ दो हम एक हैं

एक है अपना जहाँ, एक है अपना वतन
अपने सभी सुख एक हैं, अपने सभी ग़म एक हैं
आवाज़ दो हम एक हैं.

ये वक़्त खोने का नहीं, ये वक़्त सोने का नहीं
जागो वतन खतरे में है, सारा चमन खतरे में है
फूलों के चेहरे ज़र्द हैं, ज़ुल्फ़ें फ़ज़ा की गर्द हैं
उमड़ा हुआ तूफ़ान है, नरगे में हिन्दोस्तान है
दुश्मन से नफ़रत फ़र्ज़ है, घर की हिफ़ाज़त फ़र्ज़ है
बेदार हो, बेदार हो, आमादा-ए-पैकार हो
आवाज़ दो हम एक हैं.

ये है हिमालय की ज़मीं, ताजो-अजंता की ज़मीं
संगम हमारी आन है, चित्तौड़ अपनी शान है
गुलमर्ग का महका चमन, जमना का तट गोकुल का मन
गंगा के धारे अपने हैं, ये सब हमारे अपने हैं
कह दो कोई दुश्मन नज़र उट्ठे न भूले से इधर
कह दो कि हम बेदार हैं, कह दो कि हम तैयार हैं
आवाज़ दो हम एक हैं

उट्ठो जवानाने वतन, बांधे हुए सर से क़फ़न
उट्ठो दकन की ओर से, गंगो-जमन की ओर से
पंजाब के दिल से उठो, सतलज के साहिल से उठो
महाराष्ट्र की ख़ाक से, देहली की अर्ज़े-पाक
बंगाल से, गुजरात से, कश्मीर के बागात से
नेफ़ा से, राजस्थान से, कुल ख़ाके-हिन्दोस्तान से
आवाज़ दो हम एक हैं!
आवाज़ दो हम एक हैं!!
आवाज़ दो हम एक हैं!!!

3. पूछ न मुझसे दिल के फ़साने

पूछ न मुझसे दिल के फ़साने
इश्क़ की बातें इश्क़ ही जाने

वो दिन जब हम उन से मिले थे
दिल के नाज़ुक फूल खिले थे
मस्ती आँखें चूम रही थी
सारी दुनिया झूम रही
दो दिल थे वो भी दीवाने

वो दिन जब हम दूर हुये थे
दिल के शीशे चूर हुये थे
आई ख़िज़ाँ रंगीन चमन में
आग लगी जब दिल के बन में
आया न कोई आग बुझाने

4. ग़म नहीं कर मुस्कुरा

ग़म नहीं कर मुस्कुरा
जीने का ले ले मजा
नादाँ ये ज़िन्दगी
है खूबसूरत बाला
अरे ग़म नहीं कर मुस्कुरा
जीने का ले ले मजा
नादाँ ये ज़िन्दगी
है खूबसूरत बाला
ग़म नहीं कर मुस्कुरा

रुत ये जवान छाया समां
कितना हसीं है ये जहाँ
रुत ये जवान छाया समां
कितना हसीं है ये जहाँ
ठंडी फ़िज़ा भीगी हवा
फिर आग से दिल में लगा
ठंडी फ़िज़ा भीगी हवा
फिर आग से दिल में लगा
कब से जले दिल ये मेरा
ग़म नहीं कर मुस्कुरा
जीने का ले ले मजा
नादाँ ये ज़िन्दगी
है खूबसूरत बला
ग़म नहीं कर मुस्कुरा

सब भूल जा ऐ प्यार में
है जीत भी इस हार में
सब भूल जा ऐ प्यार में
है जीत भी इस हार में
हर दिल यह मजबूर है
ये प्यार का दस्तूर है
हर दिल यह मजबूर है
ये प्यार का दस्तूर है
मिलता है क्या ग़म के सिवा
ग़म नहीं कर मुस्कुरा

जीने का ले ले मजा
नादाँ ये ज़िन्दगी
है खूबसूरत बला ग़म नहीं कर मुस्कुरा
जीने का ले ले मजा
नादाँ ये ज़िन्दगी
है खूबसूरत बला ग़म नहीं कर मुस्कुरा.

(छू मंतर)

5. बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगाना-ए-दिल आप हैं

दर्द-ए-दिल दर्द-ए-वफ़ा दर्द-ए-तमन्ना क्या है
आप क्या जानें मोहब्बत का तकाज़ा क्या है

बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगाना-ए-दिल आप हैं
आप माने या न माने मेरे क़ातिल आप हैं
बेमुरव्वत बेवफ़ा

आप से शिकवा है मुझ को ग़ैर से शिकवा नहीं
जानती हूँ दिल में रख लेने के क़ाबिल आप हैं
बेमुरव्वत बेवफ़ा

साँस लेती हूँ तो यूँ महसूस होता है मुझे
जैसे मेरे दिल की हर धड़कन में शामिल आप हैं
बेमुरव्वत बेवफ़ा

ग़म नहीं जो लाख तूफ़ानों से टकराना पड़े
मैं वो कश्ती हूँ कि जिस कश्ती का साहिल आप हैं
बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगाना-ए-दिल आप हैं
आप माने या न माने मेरे क़ातिल आप हैं
बेमुरव्वत बेवफ़ा

(सुशीला)

6. मैं अभी ग़ैर हूँ मुझको अभी अपना न कहो

आ : मैं अभी ग़ैर हूँ मुझको अभी अपना न कहो
मु : हाय मर जाएंगे मिट जाएंगे ऐसा न कहो
आ : मैं अभी ग़ैर हूँ ...

मु : दिल की धड़कन की तरह दिल में बसी रहती हो
ख़्वाब बन कर मेरी पलकों पे सजी रहती हो
क्या कहूँ तुमको अगर जान-ए-तमन्ना न कहूँ
आ : मैं अभी ग़ैर हूँ ...

यूँ न देखो के मेरी साँस रुकी जाती है
जो नज़र उठती है शरमा के झुक जाती है
मेरी नज़रों को मेरे दिल का तक़ाज़ा न कहो
मु : हाय मर जाएंगे ...

राज़ क्यूँ राज़ रहे इसकी ज़रूरत क्या है
हमसे दामन न छुड़ाओ ये क़यामत क्या है
हम तो कहते हैं हमें शौक़ से दीवाना कहो
आ : मैं अभी ग़ैर हूँ ...
मु : हाय मर जाएंगे ...

(मैं और मेरा भाई)

7. बेकसी हद से जब गुजर जाए

बेकसी हद से जब गुजर जाए
कोई ऐ दिल जिए के मर जाए

जिंदगी से कहो दुल्हन बन के
आज तो दो घड़ी संवर जाए

उनको जी भर के देख लेने दे
दिल की धड़कन जरा ठहर जाये

हम हैं खुद अपनी जान के दुश्मन
क्यों ये इल्ज़ाम उनके सर जाए

मेरे नग्मों से उनका दिल न दुखे
ग़म नहीं मुझ पे जो गुजर जाए

(कल्पना)

8. ये दिल और उनकी, निगाहों के साये

ये दिल और उनकी, निगाहों के साये
मुझे घेर लेते, हैं बाहों के साये

पहाड़ों को चंचल, किरन चूमती है
हवा हर नदी का बदन चूमती है
यहाँ से वहाँ तक, हैं चाहों के साये
ये दिल और उनकी निगाहों के साये ...

लिपटते ये पेड़ों से, बादल घनेरे
ये पल पल उजाले, ये पल पल अंधेरे
बहुत ठंडे ठंडे, हैं राहों के साये
ये दिल और उनकी निगाहों के साये ...

धड़कते हैं दिल कितनी, आज़ादियों से
बहुत मिलते जुलते, हैं इन वादियों से
मुहब्बत की रंगीं पनाहों के साये
ये दिल और उनकी निगाहों के साये ...

(प्रेम पर्बत)

9. गरीब जान के हम को न तुम दग़ा देना

गरीब जान के हम को न तुम दग़ा देना
तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
गरीब जान के.

लगी है चोट कलेजे पे उम्र भर के लिये
तड़प रहे हैं मुहब्बत में इक नज़र के लिये
नज़र मिलाके मुहब्बत से मुस्करा देना
तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
गरीब जान के.

जहाँ में और हमारा कहाँ ठिकाना है
तुम्हारे दर से कहाँ उठ के हमको जाना है
जो हो सके तो मुक़द्दर मेरा जगा देना
तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
गरीब जान के.

मिला क़रार न दिल को किसी बहाने से
तुम्हारी आस लगाये हैं इक ज़माने से
कभी तो अपनी मोहब्बत का आसरा देना
तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
गरीब जान के.

गीता: नज़र तुम्हारी मेरे दिल की बात कहती है
तुम्हारी याद तो दिन रात साथ रहती है
तुम्हारी याद को मुश्किल है अब भुला देना
तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
गरीब जान के.

मिलेगा क्‌या जो ये दुनिया हमें सतायेगी
तुम्हारे बिन तो हमें मौत भी न आयेगी
किसी के प्यार को आसाँ नहीं मिटा देना
तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
गरीब जान के.

(छू मंतर)

10. तुम महकती जवां चांदनी हो

तुम महकती जवां चांदनी हो
चलती फिरती कोई रोशनी हो
रंग भी, रुप भी, रागिनी भी
जो भी सोचूँ तुम्हे तुम वही हो
तुम महकती जवां चांदनी हो

जब कभी तुमने नजरें उठायीं
आंख तारों की झुकने लगी हैं
मुस्कारायीं जो आँखें झुका के
साँसे फूलों की रुकने लगी हैं
तुम बहारों की पहली हँसी हो

नर्म आँचल से छनती ये खुशबु
मेरे हर ख्वाब पर छा गयी है
जब भी तुम पर निगाहें पड़ी हैं
दिल में एक प्यास लहरा गयी है
तुम तो सचमुच छलकती नदी हो

जब से देखा है चाहा है तुमको
ये फसाना चला है यहीं से
कब तलक दिल भटकता रहेगा
माँग लूँ आज तुम को तुम्ही से
तुम के खुद प्यार हो ज़िंदगी हो
चलती फिरती कोई रोशनी हो
रंग भी, रुप भी, रागिनी भी
जो भी सोचूँ तुम्हे तुम वही हो
तुम महकती जवां चांदनी हो

(प्यासे दिल)

  • मुख्य पृष्ठ : काव्य रचनाएँ : जाँ निसार अख़्तर
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)