Khayal Ladakhi
ख़याल लद्दाखी

ख़्याल लद्दाखी बौद्ध उर्दू कवि हैं । उनका असली नाम जिगमेत नोर्बू है । उनकी लिखी “इब्तिदा-ए-ख़याल”, उर्दू/फ़ारसी शायरी की पहली किताब है जो किसी लद्दाखी शायर ने लिखी है । ‘उनकी तीन किताबें छप चुकी हैं और जल्द ही दो और आ रही हैं’ (प्रीत लड़ी) । लेह से ये एकमात्र ऐसे कवि हैं जो राष्ट्रीय स्तर के मुशायरों में शामिल होते हैं।

ख़याल लद्दाखी की रचनाएँ

ग़ज़लें ख़याल लद्दाखी

  • अभी है कमसिनी उस पर अभी उस का शबाब आधा
  • इशक़ के ख़ूब तार जुड़ते हैं
  • एक बेकार आरज़ू हूँ मैं
  • कोई कशिश तो आपकी गुफतार में है है
  • क्या जाने ज़िन्दा रहते हैं किसकी दुआ से लोग
  • खुद मैं अपनी ज़ुबाँ से आगे हूं
  • ख़्वाबों में हमारे भी वह पैकर नहीं आया
  • जब तलक ख़ुद पे यक़ीं मुझ को सरासर न रहा
  • जलवा बरपा वह ताबनाक हुआ
  • जिगर के पार गो तलवार निकले
  • ज़िन्दगी जब भी मुसकुराती है
  • बरदाश्त बढ़े इतना कि कोहसार न हो जाऊं
  • मिज़ाज ए सरफ़रोशी कम नहीं है
  • यह नुस्ख़ा भी कुछ आज़माना पड़ेगा
  • या मुझको हद ए इश्क़ की पहचान करा दो
  • सुब्ह से शाम तलक
  • सूली चढ़ी हैं बस्तियों की बस्तियां
  • गर वोह नहीं होता तो ये मंज़र भी ना होता
  • ज़िन्दगानी के काम एक तरफ़
  • बुरा कुछ न मेरा ग़रीबी करे