अभंगवाणी : संत नामदेव जी

Abhangvani in Hindi : Sant Namdev Ji

राग टोडी

1
हरि नांव हीरा हरि नांव हीरा । हरि नांव लेत मिटै सब पीरा ॥टेक॥
हरि नांव जाती हरि नांव पांती । हरि नांव सकल जीवन मैं क्रांती ॥1॥
हरि नांव सकल सुषन की रासी । हरि नांव काटै जम की पासी ॥2॥
हरि नांव सकल भुवन ततसारा । हरि नांव नामदेव उतरे पारा ॥3॥
2
रांम नांम षेती रांम नांम बारी । हमारै धन बाबा बनवारी ॥टेक॥
या धन की देषहु अधिकाई । तसकर हरै न लागै काई ॥1॥
दहदिसि राम रह्या भरपूरि । संतनि नीयरै साकत दूरि ॥2॥
नामदेव कहै मेरे क्रिसन सोई । कूंत मसाहति करै न कोई ॥3॥
3
रांमसो धन ताको कहा अब थोरौ । अठ सिधि नव निधि करत निहोरौ ॥टेक॥
हरिन कसिब बधकरि अधपति देई । इंद्रकौ विभौ प्रहलाद न लेई ॥1॥
देव दानवं जाहि संपदा करि मानै । गोविंद सेवग ताहि आपदा करि जानै ॥2॥
अर्थ धरम काम की कहा मोषि मांगै । दास नांमदेव प्रेम भगति अंतरि जो जागै ॥3॥
4
मंझा प्रांन तूं बीठला । पैडी अटकी हो बाबुला ॥टेक॥
कलि षोटी कुसमल कलिकाल । बंधन मोचउ श्री गोपाल ॥1॥
काटि नरांइण भौचे बंध । सम्रथ दिढकरि ओडौ कंध ॥2॥
नांमदेव नरांइण कीन्ही सार । चले परोहन उतरे पार ॥3॥
5
रांम रमे रमि रांम संभारै । मैं बलि ताकी छिन न बिचारै ॥टेक॥
रांम रमे रमि दीजै तारी । वैकुंठनाथ मिलै बनवारी ॥1॥
रांम रमे रमि दीजै हेरी । लाज न कीजै पसुवां केरी ॥2॥
सरीर सभागा सो मोहि भावै । पारब्रह्म का जे गुन गावै ॥3॥
सरीर धरे की इहै बडाई । नांमदेव राम न बीसरि जाई ॥4॥
6
रांम बोले राम बोले राम बिना को बोले रे भाई ॥टेक॥
ऐकल मींटी कुंजर चीटी भाजन रे बहु नाना ।
थावर जंगम कीट पतंगा, सब घटि रांम समाना ॥1॥
ऐकल चिता राहिले निता छूटे सब आसा ।
प्रणवत नांमा भये निहकामा तुम ठाकुर मैं दासा ॥2॥
7
रांम सो नामा नाम सो रांमा । तुम साहिब मैं सेवग स्वामां ॥टेक॥
हरि सरवर जन तरंग कहावै । सेवग हरि तजि कहुं कत जावे ॥1॥
हरि तरवर जन पंषी छाया । सेवग हरिभजि आप गवाया ॥2॥
नामा कहै मैं नरहरि पाया । राम रमे रमि राम समाया ॥3॥
8
जन नांमदेव पायो नांव हरी ।
जम आय कहा करिहै बौरै । अब मोरी छूटि परी ॥टेक॥
भाव भगति नाना बिधि कीन्ही । फल का कौन करी ।
केवल ब्रह्म निकटि ल्यौ लागी । मुक्ति कहा बपुरी ॥1॥
नांव लेत सनकादिक तारे । पार न पायो तास हरी ।
नांमदेव कहै सुनौ रे संतौ । अब मोहिं समझि परी ॥2॥
9
रांमनाम जपिबौ श्रवननि सुनिबौ ।
सलिल मोह मैं बहि नहीं जाईबौ ॥टेक॥
अकथ कथ्यौ न जाइ । कागद लिख्यौ न माइ ।
सकल भुवनपति मिल्यौ है सहज भाइ ॥1॥
रांम माता रांम पिता रांम सबै जीव दाता ।
भणत नामईयौ छीपौ । कहै रे पुकारि गीता ॥2॥
10
धृग ते बकता धृग ते सुरता । प्राननाथ कौ नांव न लेता ॥टेक॥
नाद वेद सब गालि पुरांनां । रामनाम को मरम न जाना ॥1॥
पंडित होइ सो बेद बषानै । मूरिष नांमदेव राम ही जानै ॥2॥
11
अपना पयांना राम अपना पयांनां । नामदेव मूरिष लोग सयाना ॥टेक॥
जब हम हिरदै प्रीति बिचारी । रजबल छांडि भए भिषारी ॥1॥
जब हरि कृपा करी हम जांनां । तब या चेरा अब भए रांनां ॥2॥
नामदेव कहै मैं नरहर गाया । पद षोजत परमारथ पाया ॥3॥
12
तूं अगाध बैकुंठनाथा । तेरे चरनौं मेरा माथा ॥टेक॥
सरवे भूत नानां पेषूं । जत्र जाऊं तत्र तूं ही देषूं ॥1॥
जलथल महीथल काष्ट पषानां । आगम निगम सब बेद पुरानां ॥2॥
मैं मनिषा जनम निरबंध ज्वाला । नामां का ठाकुर दीन दयाला ॥3॥
13
सबै चतुरता बरतै अपनी ।
ऐसा न कोइ निरपष ह्रै षेलै ताथै मिटै अंतर की तपनीं ॥टेक॥
अंतरि कुटिल रहत षेचर मति, ऊपरि मंजन करत दिनषपनी ॥1॥
ऐसा न कोइ सरबंग पिछानै प्रभु बिन और रैनि दिन सुपनी ॥2॥
सोई साध सोई मुनि ग्यानि, जाकी लागि रही ल्यौ रसनी ॥3॥
भणत नामदेव तिनि थिति पाई, जाके रांम नांम निज रटनी ॥4॥
14
तेरी तेरी गति तूं ही जानै । अल्प जीव गति कहा बषानै ॥टेक॥
जैसा तूं कहिये तैसा तूं नाहीं । जैसा तूं है तैसा आछि गुसाईं ॥1॥
लूण नीर थै ना ह्रै न्यारा । ठाकुर साहिब प्रांण हमारा ॥2॥
साध की संगति संत सूं भेंटा । प्रणवंत नांमा रांम सहेटा ॥3॥
15
लोग एक अनंत बानी । मंझा जीवन सारंगपानी ॥टेक॥
जिहि जिहि रंगै लोकराता । ता रंगि जन न राचिला ॥1॥
जिहि जिहि मारग संसार जाइला, सो पंथ दूरै वंचिला ॥2॥
निरबानै पद कोइ चीन्है, झूठै भरम भलाइला ॥3॥
प्रणंवत नामा परम तत रे, सतगुरु निकटि बताइला ॥4॥
16
लोक कहैं लोकाइ रे नामा ।
षट दरसन के निकटि न जाइबौ, भगति जाइगी जाइ रे नाम ॥टेक॥
षट क्रम सहित बिप्र आचारी, तिन सूं नाहित कांमा ।
जौ हरिदास सबनि थैं नीचे, तौऊ कहेंगे केवल रामा ॥1॥
अधम असोच भ्रष्ट बिभचारी पंडरीनाथ कौ लेहि जु नांमा ।
वै सब बंध बरग मेरी जीवनि, तिनकै संगि कहयौ मैं रामा ॥2॥
गो सति लछि बिप्र कूं दीजै, मन बंछित सब पुरवै कामा ।
दास पटंतर तउ न तूलै, भगति हेत जस गावै नामा ॥3॥
17
का करौं जाती का करौं पांती । राजाराम सेऊं दिन राती ॥टेक॥
मन मेरी गज जिभ्या मेरी काती । रामरमे काटौं जम की फासी ॥1॥
अनंत नाम का सींऊं बागा । जा सीजत जम का डर भागा ॥2॥
सीबना सीऊं हौं सीऊं ईब सीऊं । राम बना हूं कैसे जीऊं ॥3॥
सुरति की सूई प्रेमका धागा । नांमा का मन हरि सूं लागा ॥4॥
18
ऐसे मन राम नामैं बेधिला । जैसे कनक तुला चित राषिला ॥टेक॥
आनिलैं कागद साजिलै गूडी, आकास मंडल छोडिला ।
पंच जना सूं बात बतउवा, चित सूं डोरी राषिला ॥1॥
आनिलै कुंभ भराइलै उदिक, राजकुंवारि पुलंदरियै ।
हसत विनोद देत करताली, चित सूं गागरि राषिला ॥2॥
मंदिर एक द्वार दस जाकै, गउ चरावन चालिला ।
पांच कोस थै चरि फिरि आवै, चित सूं बाछा राषिला ॥3॥
भणत नामदेव सुनौ तिलोचन, बालक पालनि पौढिला ।
अपनै मंदिर काज करंती, चित सूं बालक राषिला ॥4॥
19
का नाचीला का गाईला । का घसि घसि चंदन लाईला ॥टेक॥
आपा पर नहिं चीन्हीला । तौ चित्त चितारै डहकीला ॥1॥
कृत्म आगै नाचै लोई । स्यंभू देव न चीन्है कोई ॥2॥
स्यंभ्यूदेव की सेवा जानै । तौ दिव दिष्टी ह्रै सकल पिछानै ॥3॥
नामदेव भणै मेरे यही पूजा । आतमराम अवर नहीं दूजा ॥4॥
20
रामची भगति दुहेली रे बापा । सकल निरन्तरि चीन्हिले आपा ॥टेक॥
बाहरि उजला भीतरि मैला । पांणी पिंड पषालिन गहला ॥1॥
पुतली देव की पाती देवा । इहि बिधि नाम न जानै सेवा ॥2॥
पाषंड भगति राम नहीं रीझै । बाहरि आंधा लोक पतीजै ॥3॥
नामदेव कहै मेरा नेत्र पलट्या । राम चरना चित चिउट्या ॥4॥
21
जौ लग राम नामै हित न भयौ ।
तौ लग मेरी मेरी करता जनम गयौ ॥टेक॥
लागी पंक पंक लै धोवै । निर्मल न होवै जनम बिगोवै ॥1॥
भीतरि मैला बाहरि चोषा । पाणीं पिंड पषालै धोषा ॥2॥
नामदेव कहै सुरही परहरिये । भेड पूंछ कैसे भवजल तरिये ॥3॥
22
काहे कू कीजै ध्यांन जपना । जो मन नाहीं सुध अपना ॥टेक॥
सांप कांचली छाडै विष नहीं छाडै । उदिक मैं बग ध्यान माडै ॥1॥
स्यंघके भोजन कहा लुकाना । ये सब झूठे देव पुजाना ॥2॥
नामदेव का स्वामीं मांनिले झगरा । रांम रसांइन पीवरे भगरा ॥3॥
23
भगत भला बाबा काडला । बिन परतीतैं पूजै सिला ॥टेक॥
न्हावै धोवै करै सनान । हिरदै आंषिन माथै कान ॥1॥
गलि पहिरै तुलसी की माला । अंतरगति कोईला सा काला ॥2॥
नामदेव कहै ये पेटा बलू । भीतरि लाष उपरि हिंगलू ॥3॥
24
सांच कहैं तौ जीव जव मारै । ऐक अनेक आगैं नित हारै ॥टेक॥
सांचे आषरि गोठिं बिनासै । भाजै हाड अभावै हासै ॥1॥
मन मैले की सुध नहीं जाणी । साबण सिला सराहै पाणी ॥2॥
ऊजल बांना नीच सगाई । पाषंड भेष कीऐ पति जाई ॥3॥
अपस अग्यांनी उजल हूवा । संसै गांठि पडी गलि मूवा ॥4॥
नामदेव कहै ये संष सरापी । पुंडरी नाथ न सुमिरै पापी ॥5॥
25
साईं मेरौ रीझै सांचि । कूडै कपट न जाई राचि ॥टेक॥
भावै गावौ भावै नाचौ । जब लगि नाहीं हिरदै सांचौ ॥1॥
अनेक सिंगार करै बहु कामिनि । पीय के मनि नहीं भावै भामिनि ॥2॥
पतिव्रता पति ही कौ जानै । नामदेव कहै हरि ताकी मानै ॥3॥
26
रतन पारषूं नीरा रे । मुलमा मंझै हीरा रे ॥टेक॥
संष पारषूं निरषी जोई । बैरागर क्यूं षोटा होई ॥1॥
कालकुष्ट विष बांध्यौ गांठि । कहा भयौ नहीं षायौ बांटि ॥2॥
षायौ विष कीन्हौ विस्तार । नामदेव भणै हरि गरुड उबार ॥3॥
27
कौन कै कलंक रह्यौ राम नाम लेत ही ।
पतित पावन भयौ राम कहत ही ॥टेक॥
राम संगि नामदेव जिनहु प्रतीति पाई ।
एकादशी व्रत करै काहे कौ तीरथ जाई ॥1॥
भणत नांमदेव सुमिरत सुकृत पाई ।
राम कहत जन को न मुक्ति जाई ॥2॥
28
राम नाम नरहरि श्री बनवारी । सेविये निरंतर चरन मुरारी ॥टेक॥
गुरु को सबद बैकुंठ निसरनी । ह्रदै प्राग प्रेंम रस वानी ॥1॥
जा कारन त्रिभुवन फिरि आये । सो निधान घटि भीतरि पाये ॥2॥
नामदेव कहै कहूं आइये न जाइये । अपने राम घर बैठे गाइये ॥3॥
29
रांम जुहारि न और जुहारौ । जीवनि जाइ जनम कत हारौं ॥टेक॥
आनदेव सौं दीन न भाषौं । राम रसाइन रसना चाषौं ॥1॥
थावर जंगम कीट पतंगा । सत्य राम सब हिन के संगा ॥2॥
भणत नांमदेव जीवनि रामा । आंनदेव फोकट बेकामा ॥3॥
30
जा दिन भगतां आईला । चारया मुक्ती पाईला ॥टेक॥
दरसन धोषा भागीला । कोई आइ सुकृत जागीला ॥1॥
सनमुष दरसन देषीला । तब जन्म सुफल करि लेषीला ॥2॥
साध संगति मिलि षेलीला । पांचू प्रबल पेलीला ॥3॥
बैसनो हिरदै समाईला । जन नामदेव आनंद गाईला ॥4॥
31
संत सूं लेना संत सूं देना । संत संगति मिलि दुस्तर तिरना ॥टेक॥
संत की छाया संत की माया । संत संगति मिलि गोविंद पाया ॥1॥
असंत संगति नामा कबहूं न जाई । संत संगति मैं रह्यौ समाई ॥2॥
32
पर हरि धंधाकार सबैला । तेरी चिंता राम करैला ॥टेक॥
नाराइन माता नाराइन पिता । बैस्नो जन परिवार सहेता ॥1॥
केसौ कै बहु पूत भयेला । तामैं नांमदेव एक तू दैला ॥2॥
33
माई तूं मेरै बाप तूं । कुटूंबी मेरा बीठला ॥टेक॥
हरि हैं हमची नाव री । हरि उतारै पैली तिरि ॥1॥
साध संगति मिलि षेई चार । केसौ नामदेव चा दातार ॥2॥
34
माइ गोव्यंदा बाप गोव्यंदा । जाति पांति गुरुदेव गोव्यंदा ॥टेक॥
गोव्यंद ग्यान गोव्यंद ध्यान । सदा आनंदी राजाराम ॥1॥
गोव्यंद गावै गोव्यंद नाचै । गोव्यंद भेष सदा नृति काछै ॥2॥
गोव्यंद पाती गोव्यंद पूजा । नामा भणै मेरे देव न दुजा ॥3॥
35
हिरदै माला हिरदै गोपाला । हिरदै सिष्टि कौ दीन दयाला ॥टेक॥
हिरदै मांही रंग हिरदै छीपा । हिरदै रैणी पांणी नीका ॥1॥
हिरदै दीपक घटि उजियाला । षूटि किवार टूटि गयौ ताला ॥2॥
हिरदै रंग रोम नहीं जाति । रंगि रे नामा हरि की भांति ॥3॥
36
अब न बिसारुं राम संभारुं । जौ रे बिसारुं तौ सब हारुं ॥टेक॥
तन मन हरि परि छिन छिन वारुं । घडी महूरति पल नहीं टारुं ॥1॥
सुमिरन स्वासा भरि भरि पीऊं । रंक राम गुड खाइ रे जीऊं ॥2॥
आरौ मांडि रम रटि लैहूं । जौ रे बिसारौं तौ रोइ दैहूं ॥3॥
नामदेव कहै ओर आस न करिहूं । राम नाम धन लाग्यौ मरि हूं ॥4॥
37
राम राइ उलगुं और न जाचूं । सरीर अनंत जाउ भलै जाउ ॥टेक॥
जोग जुगुती कछु मुकति न भाषूं । हरि नांव हरि नांव हिरदै राषूं ॥1॥
राम नांम नांमदेव अनहद आछै । भगति प्रेम रस गावै नाचै ॥2॥
38
बीहौं बीहौं तेरी सबल माया । आगै इनि अनेक भरमाया ॥टेक॥
माया अंतर ब्रह्म न दीसै । ब्रह्म के अंतर माया नहीं दीसै ॥1॥
भणत नामदेव आप बिधांनां । दहू घोडांन चढाइ हौ कान्हा ॥2॥
39
बाजी रची बाप बाजी रची । मैं बलि ताकी जिन सूं बची ॥टेक॥
बाजी जामन बाजी मरना । बाजी लागि रह्यो रे मना ॥1॥
बाजी मन मैं सोचि बिचारी । आपै सुरति आपै सुत्रधारी ॥2॥
नामदेव कहै तेरी सरनां । मेटि हमारै जांमन मरना ॥3॥
40
तूं न बिसारि तूं न बिसारि । मैं तूं विसार्‍यौ मोर अभाग ॥टेक॥
अषिल भवनपति गरडा गामी । अंति काल हरि अंतर जामी ॥1॥
जामन मरण बिसरजन पूजा । तुम सा देव और नहीं दूजा ॥2॥
तूंज बिसभर मैं जन नामा । संत जनन के पुरवन कामा ॥3॥
41
बाप मंझा समझि न परई । सांचो ढारि अवर कछु भरई ॥टेक॥
पानी का चित्र पवन का थंभा । कौन उपाइ रच्यौ आरंभा ॥1॥
इहां का उपज्यां इंहां बिलाना । बोलनहारा ए कहां समाना ॥2॥
कहै नराइन सुनि जन नांमा । जहां सुरति तहां पूरन कामा ॥3॥
जीवत राम न भयो प्रकासा । भनत नांमदेव मूवा कैसी आसा ॥4॥
42
कैसे तिरत बहु कुटिल भरयौ । कलि के चिन्ह देषि नांहिन डरयौ ॥टेक॥
कैसी सेवा कैसा ध्यांन । जैसे उजल बग उनमान ॥1॥
भाव भुवंग भए पैहारी । सुरति सिंचाना मति मंजारी ॥2॥
नामदेव भणै बहु इहि गुणि बांधा । डाइन डिंभ सकल जग षाधा ॥3॥
43
काल भै बापा सहया न जाइ । महा भै भीत जगत कूं षाइ ॥टेक॥
अनेक मुनेस्वर झूझै जाइ । सुर नर थाके करत उपाइ ॥1॥
कंपै पीर पैकंबर देव । रिसि कंपै चौंरासी जेव ॥2॥
चंद्र सूर धर पवन अकास । पाणी कंपै अगिन गरास ॥3॥
कंपै लोक लोकंतर षंड । ते भी कंपै अस्थिर प्यंड ॥4॥
अविचल अभै नराइन देव । नामदेव प्रणवै अलष अभेव ॥5॥
44
सहजै सब गुन जइला । भगवत भगतां ए स्थिर रहिला ॥टेक॥
मुक्ति भऐला जाप जपेला । सेवक स्वामी संग रहेला ॥1॥
अमृत सुधानिधि अंत न जाइला । पीवत प्रान कदे न अधाइला ॥2॥
रामनांम मिलि संग रहैला । जबलग रस तब लग पीबैला ॥3॥
45
कैसे न मिले राम रुठा मोठा । चित न चलै कुचित मोरा षोटा ॥टेक॥
बाइर मांडी बार लागीला । ऐसे जो मन लोगे बीठला ॥1॥
नामौ कहै मन मारिग लागिला । ऐसे निसागत सूर उगिला ॥2॥
46
कहा करुं जग देषत अंधा । तजि आनंद बिचारै धंधा ॥टेक॥
पाहन आगै देव कटीला । बाको प्रांण नहीं बाकी पूज रचीला ॥1॥
निरजीव आगै सरजीव मारैं । देषत जनम आपनौं हारैं ॥2॥
आंगणि देव पिछौकडि पूजा । पाहन पूजि भए नर दूजा ॥3॥
नांमदेव कहै सुनौ रे धगडा । आतमदेव न पूजौ दगडा ॥4॥
47
देवा तेरी भगति न मो पै होइ जी ।
जिहि सेवा साहिब भल मानै । करिहूं न जानै कोइ जी ॥टेक॥
सुमृत कथा होइ नहीं मोपै । कथूं त होइ अभिमान जी ।
जोई जोई कथूं उलटि मोहिं बांधै । त्राहि त्राहि भगवान जी ॥1॥
जामैं सकल जीव की उतपति । सकल जीव मैं आप जी ।
माया मोह करि जगत भुलाया । घटि घटि व्यापक बाप जी ॥2॥
सो बैकुंठ कहौं धौं कैसो । प्यंड परे जहँ जाइये ।
यहु परतीति मोहिं नहिं आवै । जीवत मुकति न पाइये ॥3॥
मैं जन जीव ब्रह्म तुम माधौ । विन देषे दुष पाईये ।
राषि समीप कहै जन नांमा । संगि मिला गुन गाईये ॥4॥
48
भगति आपि मोरे बाबुला । तेरी मुक्ति न मांगू हरि बीठूला ॥टेक॥
भगति न आपै तौ तन आडौ । कोटि करै तौ भगति न छांडौ ॥1॥
अनेक जनम भरमतौ फिरयो । तेरो नांव ले ले उधरयौ ॥2॥
नांमदेव कहै तू जीवन मोरा । तू साइर मैं मंछा तोरा ॥3॥
49
संसार समंदे तारि गोबिंदे । हुं तिरही न जानूं बाप जी ॥टेक॥
लोभ लहरि अति नीझर बरिषै । काया बूडे केसवा ॥1॥
अनिल बेडा षेइ न जानूं । पार दे पार दे बीठला ॥2॥
नांमा कहै मैं सेवग तेरा । बांह दे बांह दे बाबुला ॥3॥
50
तुझ बिन क्यूं जीऊं रे तुझ बिन क्यूं जीऊं ।
तू मंझा प्रांन अधार तुझ बिन क्यूं जीऊं ॥टेक॥
सार तुम्हारा नांव है झूठा सब संसार ।
मनसा बाचा कर्मना कलि केवल नांव अधार ॥1॥
दुनियां मैं दोजग घनां दारन दुष अधिक अपार ।
चरन कंवल की मौज मैं मोहि राषौ सिरजन हार ॥2॥
मो तो बिचि पडदा किसा लोभ बडाई काम ।
कोई एक हरिजन ऊबरे जिनि सुमिरया चिहचल रांम ॥3॥
लोग वेद कै संगि बहूयौ सलिल मोह की धार ।
जन नांमा स्वामी बीठला, मोहि षेइ उतारौ पार ॥4॥
51
बंदे की बंदि छोडि बनवारी ।
असरन सरनि राम कहे बिन आइ परे जम धारी ॥टेक॥
केई बांधे जोग जप करि केई तीरथं दांना ।
केई बांधे नेमा बरतां तेरे हाथि नाथ भगवाना ॥1॥
रामदेव तेरी दासी माया नाटी कपट कीन्हां ।
थावर जंगम जीति लिया है आपा पर नहीं चीन्हां ॥2॥
नांमदेव भणै मैं तुम थैं छूंटू जो तुम छोडावौ गोपालजी ।
तुम बिन मेरे गाहक नांही दीनानाथ दयाल जी ॥3॥
52
देवा मेरी हीन जाती है काहू पै सहीं न जाती हो ॥टेक॥
मैं नहीं मैं नहीं मैं नहीं मांधौ तूं है मैं नहीं हौं ।
तू एक अनेक है बिस्तरयो मेरी चरम न साई हो ॥1॥
जैसे नदीया समद समानी धरनी बहती हो ।
तुम्हारी कृपा थें नीच ऊंच भए तूं काल की कांती हो ॥2॥
नामौ कहै मेरी देवी न देवा संग न साथी मीतुला ।
तुम्हारी सरनि मैं भाजि दुरयौं हैं बंदि छोडि बाबा बीठुला ॥3॥
53
हरि नांव राजै हरि नांव गाजै । हरि कौ नांव लेतां कांइ नर लाजै ॥टेक॥
हरि मेरा मातु पिता गुरुदेवा । अपणें राम की करिहूं सेवा ॥1॥
हरि नांव मैं निज कंवला दासी । हरि नांवै संकर अविनासी ॥2॥
हरि नांव मैं ध्रू निहचल करीया । हरि नांव मैं प्रहलाद उधरीया ॥3॥
हरि मेरे जीवन मरण के साथी । हरि जल मगन उधारयौ हाथी ॥4॥
हरि मेरे संगि सुष दाता । हरि नामैं नांमदेव रंगि राता ॥5॥
54
इतना कहत तोहि कहा लागत । राम नांव ले सोवत जागत ॥टेक॥
ध्रू प्रहलाद इहि गुन तारे । राम नाम अखिर हिरदै विचारे ॥1॥
राम नांम सनकादिक राता । राम नांम नृभै पद दाता ॥2॥
भणत नामदेव भाव ऐसा । जैसी मनसा लाभ तैसा ॥3॥
55
बोलिधौं निर्वाणैं पद राम नांम । ठाली जिभ्या कौणै है काम ॥टेक॥
सेवा पूजा सुमिरन ध्यांन । झूठा कीजै बिन भगवान ॥1॥
तीरथ बरत जगत की आस । फोकट कीजै बिन बिसवास ॥2॥
ऐकादसी जगत की करनी । पाया महल तब तजी निसरनी ॥3॥
भणत नांमदेव तुम्हारे सरनां । मुझा मनवा तुझा चरनां ॥4॥
56
ऐसे रामहिं जानौ रे भाई । जैसे भृंगी कीट रहै ल्यौ लाई ॥टेक॥
सरब रुप सरबेसर स्वामी । त्रिगुण रहत देव अंतर जामी ॥1॥
थावर जंगम कीट पतंगा । सति राम सबहिन के संगा ॥2॥
नामा कहै मेरे बंध न भाई । रामनांम मैं नौ निधि पाई ॥3॥
57
ऐसे राम ऐसे हेरा । राम छांडि चित अनत न फेरौ ॥टेक॥
ज्यूं विषई हेरै परनारी । कौडा डारत फिरै जुवारी ॥1॥
ज्यूं पासा डारै पसवारा । सोना घडता हरै सोनारा ॥2॥
जत्र जाउं तत्र तू ही रामा । चित चिंउंट्या प्रंणवै नामा ॥3॥
58
पांणीयां बिन मीन तलफै । ऐसे रांम नांम बिन बापुरौ नामा ॥टेक॥
तन लागिलै ताला बेली । बछा बिन गाइ अकेली ॥1॥
जैसे गाइ का बछा छूटिला । थन लागिलै मांषन घूंटिला ॥2॥
मांषन मेल्हिलै ताती धांमा । ऐसे रांम नांम बिन बापुरो नांमा ॥3॥
जैसे बिषई चित पर नारी । ऐसे नांमदेव प्रीति मुरारी ॥4॥
58
अनबोलता चरन न छांडू । मोहि तुम्हारी आंन बाबा बीठला ॥टेक॥
टगमग टगमग क्यों चोघता । एक बोल बोलौ बोलता ॥1॥
कहिधौं कूतल कहिधौं बली । प्रणवत नांमदेव पुरवौ रली ॥2॥
59
जत्र जाउं तत्र बीठल भैला । बीठलियौ राजाराम देवा ॥टेक॥
आनिलै कुंभ भराइले उदिक, बालगोबिन्दहिं न्हाण रचौं ।
पहलै नीर जु मछ बिटाल्यौ, झूठण भैला कांइ करुं ॥1॥
आंणिलै केसरि सूकडि समसरि, बाल गोबिंदहिं षौलि रचूं ।
पहली बास भुवंगम लीन्ही, जूंठणि भैला कांइ करुं ॥2॥
आंणिलै पुहुप गूंथिलै माला, बाल गोबिंदहिं हार रचूं ।
पहली बास जुं भंवरै लीनी, जूठणि भैल कांइ करु ॥3॥
आंणिलै धृत जोइलै बाती, बाल गोबिंदहि जोति रचूं ।
पहली जोति जु नैनानि देषी, जूठणि भैला कांइ करुं ॥4॥
आंणिलै अगरषेइलै धूपा, बाल गोबिन्दहिं धूप रचूं ।
पहली बास नासिका आई, जूठणि भैला कांइ करुं ॥5॥
आंणिलै तंदुल रांधिलै षीरो, बाल गोबिंदहि भोग रचूं ।
पहली दूध जु बछा बिटालौ, जूठणि भैला कांइ करुं ॥6॥
आऊं तौ बीठल जाऊं तौ बीठल, बीठल व्यापक माया ।
नांमा का चित हरि सूं लागा, ताथैं परम पद पाया ॥7॥
60
कांइ रे मन विषिया बन जाहिं । देषत ही ठग मूली षांहि ॥टेक॥
मधुमाषी संचियो अपार । मधु लीन्हौ मुष दीन्हीं छार ॥1॥
गऊ बछ कौ संचै षीर । गलै बांधि दुहि लेइ अहीर ॥2॥
जैसे मीन पानी मैं रहै । काल जाल की सुधि न लहै ॥3॥
जिभ्या स्वारथ निगल्यौ लोह । कनक कामनी बांध्यौ मोह ॥4॥
माया काज बहुत कर्म करै । सो माया ले कुंडे धरै ॥5॥
अति अयान जानै नहीं मूढ । धन धरते अचला भयो धूल ॥6॥
काम क्रोध त्रिस्ना अति जरै । साध संगति कबूहूँ नहिं करै ॥7॥
प्रणवत नांमदेव ताकी आण । निरभै होइ भजौ किन राम ॥8॥
61
अपने राम कूं भजलै आलसीया । रांम बिनां जम जाल सीया ॥टेक॥
प्राणी असुमेध जग ने तुला पुरुषदांने, हरिं हरि प्राग सनाने ।
तऊ न तुलै हरि कीरति नांमा ॥1॥
प्रांणी गया पिंड भरता, बानारसियै बसता ।
मुष बेद पुरान पढता, तऊ न तुलै हरि कीरति नामा ॥2॥
प्राणी संकल धरम अछता, गुरु ग्यान इंद्री दिढता ।
षट करम सहित रहिता, तऊ न तुलै हरि कीरति नामा ॥3॥
प्रानी सकल सेवा श्रम बाद, छांडि छांडि बहु भेदं ।
सुमिरि सुमिरि गोबिंद, नांमदेव नांइ तिरै भौसिंधु ॥4॥
62
मनथिर होइ वारे न होइ । ऐसा चिहन करै संसार ।
भीतरि मैला धूतिग फिरै । क्यूं उतरै भव पार ॥टेक॥
रुद्राष सषा जप माला मंडै । ताकौ मरम न जानै कोई ।
आप न देषै और दिषावै । कपट मुक्ति क्यों होई ॥1॥
सींगी जटा बिभूति लगावै । संबर सिध कहावै रे ।
नाथन बोलषै मरम न जाणै । भाव चंडाली लावै ॥2॥
ब्रह्मा पढि गुणि बेद सुनावै । मन की भ्रांति न जावै ।
करम करै सो सूझै नाहीं । बहुतक करम कराई ॥3॥
मास दिवस लग रोजा साधै । कलमां बांग पुकारै ।
मनमें कांती जीव संघारै । नांव अलह का सारै ॥4॥
केवल ब्रह्म सत्ति करि जाण्यां । सहज सुनि मैं घ्याया रे ।
प्रणवत नामदेव गुरु प्रसादैं । पाया तिनही लुकाया ॥5॥
63
देवा बेनु बाजै गगन गाजै । सबद अनाहद बोलै ।
अंतरिगति की जानै नाहीं । मूरिष भरमत डोलै ॥टेक॥
चंद सूर दोउ समकरि राषूं । मन पवन दिठ डांडी ।
सहजै सुषमन तारा-मंडल । इह विधि त्रिंस्नां षांडी ॥1॥
बैठा रहूं न फिरुं न डोलूं । भूषा रहूं न षाऊं ।
मरुं न जीऊं अहनिस भुगतूं । नहीं आऊं नहीं जाऊं ॥2॥
गगन मंडल मैं रहनि हमारी । सहजि सुनि गृह मेला ।
अंतरि धुनिमैं मन बिलमाऊं । कोई जोगी या गम लहैला ॥3॥
पाती तोडि न पुजूं देवा । देवलि देव न होई ।
नामा कहै मैं हरि की सरना । पुनरपि जन्म न होई ॥4॥
64
देवा गगन गुडी बैठी मैं नाहीं तब दीठी ॥टेक॥
जब लीग आस निरास बिचारै तब लगि ताहि न पावै ॥1॥
कहिबौ सुनिबौ जबगत होइबौ तब ताहि परचौ आवे ॥2॥
गाये गये गये ते गाये अगई कूं अब गाऊं ॥3॥
प्रणवत नांमा भए निहकामा सहजि समाधि लगाऊं ॥4॥
65
जोगी जन न्याइ जुगे जुगि जीवै ।
आकास बांधि पाताल चलावै, आप भरे भरि पीवै ॥टेक॥
अंमृत षात पिता परमोघ्यौ माइ मुंई करि सोग ।
भाई बंध की आस न पूगी भाजि गए सब लोग ॥1॥
बाहिली मूंदिलै माहिली चोघिलै पंच की आस मिटाइ रे ।
भणत नांमदेव सेवि निरंजन सहज समाधि लगाइ रे ॥2॥
66
देवा तेरा नीसान बाज्या हौ ।
ताल पषावज जंत्र बेनां अवसर साज्या हौ ॥टेक॥
लोहा तांबा बंदन कीन्हां पाय परी है बेरियां ।
भौसागर की संक्या छूटी मुक्ति भई है चेरियां ॥1॥
सिंघ भागा पूठि फेरि षांण लागी छेरिया ।
बाहरि जाता भीतरि पेष्या नामै भगतिनि बेरिया ॥2॥
67
संत प्रवेनी भगति आपिला । नहीं आपिला तौ प्राण त्यागिला ॥टेक॥
हमची थाती तुम भईला । अम्हचा जीवला किमची लागिला ॥1॥
च्यारि मुक्ति आठूं सिधि आपुइयां । भगति न आपौ दास नामईयां ॥2॥
नामदेव बीठल सनमुष बोलीला । भगति आपिला मुकति त्यागिला ॥3॥

राग सोरठि

68
याही गोविंदा चरन मेरो जीवरौ बसै रे ।
भगति न छांडौं हरिकीं लोग हंसैरे ॥टेक॥
गोबिंदा कै नाइं लीयें भवजल तिरिए रे ।
झूठी माया लागि लागि काहे कूं मरीए रे ॥1॥
साइं कूं सांकडै दीये सेवग भाजै रे ।
चिरकाल न कोई जीवै दोऊ पष लाजै रे ॥2॥
आपनां धन कारणि प्राणी मरणौं मांडै रे ।
भगति भगता जन काहे कूं छांडै रे ॥3॥
गंगा गया गोदावरी संसारी जांमा रे ।
सुपरसन नाराइन सेवग नांमा रे ॥4॥
69
देवा नटणी कौ तनमन बांसां बरतां मांहि रे ।
अनेक राजिंद्रा बैठे तिनही सूं चित नांहिरै ॥टेक॥
सुमति सरीर संवारै नटनी निहारै ।
राम नांम नीसान बाजै इहि तत पावै धारै ॥1॥
एक मन एक चित षेलीलै षेलारे ।
मरकट मूठी छांडिदै ज्यूं मुक्ति भैलारे ॥2॥
धरनीधर सूं ध्यान लागौ आप अंतरजामीरे ।
नांमदेव नटवा ह्रै नाच्या तौ रीझ्यौ स्वामी रे ॥3॥
70
भाई रे भरम गया भौ भागा । तेरा जन जहां का तहां जाइ लागा ॥टेक॥
बाजीगर डाक बजाई । सब दुनी तमासै आई ।
बाजीगर षेल सकेला । तब आपै रहौ अकेला ॥1॥
रामराई माया लाई । सब दुनिया सौदै आई ।
सब दुनिया सौदा कीन्हां । काहू आतम राम न चीन्हां ॥2॥
मृग षेत विझूका देषै । भैचकि भैचकि पेषै ।
निकटि गया सुधि पाई । अडवाथैं कहा डराई ॥3॥
यहु मृघन षेत विझूका । गई संक्या मन टूका ।
नामदेव सतगुर समझावै । याही थैं कहा बतावे ॥4॥
71
जहां तहां मिल्यौ सोई । ताथैं कहै सुनै सब कोई ॥टेक॥
अभेदै अभेद मिल्यौ । भेदै मिल्यौ भेदू ।
सहज सोई सहज मिल्यौ । षेले मिल्यौ षेलू ॥1॥
दुष सोई दुषै मिल्या । सुषै सुष समानां ।
ग्यान सोई ग्याने मिल्यौ । ध्यानै मिल्यौ ध्याना ॥2॥
देष्यौ कहूं तौ निफ्ट झूठा । सुनी कहू तो झूठारे ।
नामदेव कहै जे अगम भण । तौ पूछया ही अण पूछया रे ॥3॥
72
बीठला भंवरा कंवल न पावै । ताथै जन्म जन्म डहकावै ॥टेक॥
दादुर ऐक बसै पडवणि तलि । स्वाद कुस्वाद न पावै ।
पहुप बास का लुबधी भौंरा । सौ जोजन फिरि आवै ॥1॥
महणारंभ होत घट भीतरि । रवि ससी नेत बिलौवै ।
वो हालै वो ठौर न पावै । ताथैं भौंरा जुगि जुगि रोवै ॥2॥
उपजी भगति पचीसूं परिहरि । बहोरि जन्म नहीं आवै ।
अषंड मंडल निराकार मैं । दास नांमदेव गावै ॥3॥
73
रे मन पंछीया न परसि पिंजरै । संसार माया जाल रे ।
येक दिन मैं तीन फेरा । तोहि सदा झंपै काल रे ॥टेक॥
धन जोबन रुप देषि करि । गरव्यो कहा गंवार रे ।
कुंभ कांचौ नीर भरीयो । बिनसतां नहीं बार रे ॥1॥
अमी कुंदन कपूर भोजन । नित नवा सिंगार रे ।
हंस कावडि छाडि चाल्यौ । देह ह्रैहै छार रे ॥2॥
ते पिता जननी आहि ल्यछमी । पूत सब परिवार रे ।
अंति ऊभा मेल्हि करि । ऐकलो जाइ नहीं लार रे ॥3॥
बरस लगि तेरी माइ रोवै । बहनडी छह मास रे ।
अस्त्री रोवै दस देहाडा । चित वंती घर बास रे ॥4॥
भनत नांमदेव सुनूं हो तिलोचन । घटिदया ध्रम पालि रे ।
पाहुनां दिनच्यारि केरा । सुकृत राम संभारि रे ॥5॥

राग गौडी

74
अदबुद अचंभा कथ्या न जाई । चींटी के नेत्र कैसे गजिंद्र समाई ॥टेक॥
कोई बोलै नेरे कोई बोलै दूरि । जल की मछली कैसे चढै षजूरि ॥1॥
कोई बोलै इंद्री बांध्या कोई बोलै मुक्ता । सहजि समाधि न चीन्हे मुगधा ॥2॥
कोई बोलै बेद सुमृत पुरांना । सतगुरु कथीया पद निरवानां ॥3॥
कहै नांमदेव परम तत है ऐसा। जाकै रुप न रेष वरण कहौ कैसा ॥4॥
75
देवा आज गुडी सहज उडी । गगन मांहि समाई ।
बोलन हारा डोरि समांनां । नहीं आवै नहीं जाई ॥टेक॥
तीन रंग डोरि जाके । सेत पीत स्याही ।
छांडि गगन वाजि पवन । सुर नर मुनि चाही ॥1॥
द्वादसतैं उपजी गुडी । जानै जन कोई ।
मनसा कौ दरस परस । गुरु थैं गम होई ।2॥
कागद थैं रहित गुडी । सहज आनंद होई ।
नांमदेव जल मेघ बूंद । मिलि रह्या ज्यूं सोई ॥3॥
76
काहे रे मन भूला फिरई । चेति न राम चरन चित धरही ॥टेक॥
नरहरि नरहरि जपिरे जीयरा । अवधि काल दिन आवै नियरा ॥1॥
पुत्र कलित्र धन चित बेसासा । छाडि मनारे झूठी आसा ॥2॥
तू जिनि जानै ग्रेही ग्रेहा । बिनसत बार कछू नहीं देहा ॥3॥
कहत नांमदेव झूठी देही । तौ सांची जे राम सनेही ॥4॥
77
राम नांमै बोलि नृवाण वाणी । जिभ्या आंन मिथ्या करि जाणी ॥टेक॥
को को न सारे को को न उधारे । बैकुंठ नाथ षसम हमारे ॥1॥
सोना की मालि पाषाण बेधिला । झींझ फूटी रामनांम अकेला ॥2॥
सपत पुरी नौ उषर भाई । रांम बिना कौने गति पाई ॥3॥
माटी देषि माटी कहा भुलाना । कहि समझावै दास नामा ॥4॥
78
मेरी कौन गति गुसाई तुम जगत भरन दिवा ।
जन्म हीन करम छीन भूलि गयौ सेवा ॥टेक॥
बडौ पतित पतितन मैं । गज गनिका गामी ।
और पतित जगत प्रकट । तिनहूं मैं नांमी ॥1॥
तुम दयाल मैं गरीब । टेरि कहौं रामा ।
दीन जानि बिनती मानि । गावै दास नामा ॥2॥
79
ऐवडी सीमौंनै बुधि आवडी । नाम न बिसरुं एकौ घडी ॥टेक॥
हरि हरि कहतां जे नर लाजै । जमस्की डांग तिनै सिरि बाजै ॥1॥
हरि हरि कहतां न कीजै बांतां । गयौ पाप जे पोतै हुता ॥2॥
नामदेव कहै मैं हरि हरि मनौं । कहै पाप अरु लाभ होई घनौ ॥3॥
80
ऐसे जगथैं दास नियारा ।
वेद पुरांन सुमृत किन देषौ पंडित करउ बिचारा ॥टेक॥
दधि बिलाइ जैसे घृत लीजे । बहुरि न ऐकठ थाई ॥
पावक दार जतन करि काढ्या, बहुरि न दार समाई ॥1॥
पारस परसि लोह जैसे कंचन, बहुरि न त्र्यंबक होई ।
आक पलास बेधीया चंदन, कास्ट कहै नहीं कोई ॥2॥
जे जन राम नाम रंगि राता, छाडि करम की आसा ।
ते जन रामै राम समानै, प्रणवत नामदेव दासा ॥3॥

राग माली गौडी

81
हमारै गोपालराजा गोपालराजा । और देव सूं नाहिन काजा ॥टेक॥
काहू सुमृत वेद पुराना । चरन कंवल मेरे मन माना ॥1॥
काहू के लाछिमी भंडार । मेरे राम को नांम अधार ॥2॥
काहूके है गै पाइक हाथी । मेरे रांम नांव संघाती ॥3॥
सरब लोक जाको जस गाजा । नांमां का चित हरि सूं लागा ॥4॥
82
कहि मन गोविंद गोविंद ।
चरन कवल चितवनि जिनि बिसरै गोविंद गोविंद गोविंद ॥टेक॥
अंतरि गर्भ सह्यौ दुष भारी । आवत जात परयौ मै हारी ॥1॥
भणत नांमदेव हरिगुण गाऊं । बहुरि न भवजल नीरौं आऊं ॥2॥
83
राम गोविंद कमोदनि चंदा । छिन छिन पांन करै मकरंदा ॥टेक॥
जैसे कमल में कुसमलताई । मधि गोपाल परसि फिरि आई ॥1॥
अष्ट कंवल दल नांमदेव गावै । चरन कंवल रज काहे न पावै ॥2॥
84
जपि रांमनांम महामंत्र । रांम बिना नहीं मुकति अनंत्र ॥टेक॥
महादेव उपदेसी गौरी । राम नांम जपि रसनां बौरी ॥1॥
जो पद नारद ध्रूं कूं सिषावा । सुरनि सुमृति संतनि सुष पावा ॥2॥
जन नांमदेव रांम नांम जपैला । चौरासि विष ऊतरि जैला ॥3॥
85
गुड मीठा राम गुड मीठा । जिनि लह्या तिनि गुन दीठा ॥टेक॥
नैननि पाया श्रवननि षाया । तृपित भई त्रिस्ना मधि माया ॥1॥
पांचं ऊष षनि ग्यान गंडासी । कोल्हू ध्यान धरौ तिह पासी ॥2॥
घट कूंडा जब होइ न दोषी । सहज अनल गुड सोनां होसी ॥3॥
गुरुत्वा सो गुडवाई साजा । सो गुड हुवा तिहूं पुर राजा ॥4॥
नांमदेव प्रणवै कस न मिठाई । जहां जतन सुमिरन बनि आई ॥5॥

राग रामगिरी

86
लाधौ तौ लाधौ मैं राम नांम लाधौ । प्रेमै पाटै सुत्रै पोयौ, कंठि लै बांधौ ॥टेक॥
राम नाम ततसार । सुमरि सुमरि जन उतरे पार ॥1॥
रामं जननी राम पिता । राम बंधू भौ तारिता ॥2॥
भणत नांमदेव हरि गुण गाऊं । बहुरि न जोनी संकुट आऊं ॥3॥
87
वाद छाडि रे भगता भाई । हरि सी तैं निधि पाई ।
राम तजि मेरो मन अनत न जाई ॥टेक॥
जप माला तागै पोई । सरीर अंतरि है सोई ।
वादि विमुष हरि बिनु दिन षोई ।
राम नाम जपि लोई । परम तत है सोई ।
तीनौ रे त्रिलोक व्यापै दूजौ नहिं कोई ॥1॥
सजीवन मूरी सोई नटारंभ संगि गाई ।
रामनाम बिन नाहीं आन उपाई ।
नामदेव उतर्‍यौ पार । चेतहु रे चेतन हार ।
हरि की भगति बिन औतरोगे बारंबार ॥2॥
88
हरि लै हरि लै हरि लै हरि ।
अपनी भगति रांम करि लै षरी ॥टेक॥
तुमसा ठाकुर कीजै । काहे न प्रतीति लीजै ।
अपनी बापौती कारणि प्राण दीजै ॥1॥
तुमची प्रतीति आई । दुरमति तजिले भाई ।
सुत कूं जननी कैसे विष पाई ॥2॥
बालक जे रुदन करे । मझ्या जैसे प्रांन धरे ।
पारब्रह्म पिता नांमा लाड लडै ॥3॥
89
छांडि छांडि रे मुगुध नर कपट न कीजै ।
गोविंद नाराइन नांम मुषां लीजै ॥टेक॥
कोटि जौ तीरथ करि । तन जो हिवालै गलै ।
पृथ्वी जे सकल परदछिन दीजै । करवत कासी मैं लीजै ।
सिव कू जो सीस दीजै । रामनाम सरि तऊ न तूलै ॥1॥
बानारसी तपि करै पलटि तीरथ फिरै ।
काया जे अगिनी मुष कलेस कीजै । हिरन गर्भ दान दीजै ।
अस्वमेध जग्य कीजै । रामनाम सरि तऊ न तुलै ॥2॥
मान जै सरोवर जइये । गया जौ कुरषेत्र न्हइये ।
गोमती सनान गऊ कोटि कीजै । कुंभ जौ केदार जइये ।
सिंघहस्त गोदावरी न्हइऐ । रांम नांम सरि तऊ न तूलै ॥3॥
अस्वदान गजदान भोमिदान कन्यादान ।
गृहदान सज्या दांन दांन दीजे ।
तन तुला तोलि दीजै । मन जौ नृमल कीजै ।
रामनांम समि तऊ न तुलै ॥4॥
जमहिं न दीजै दोस मनहिं न कीजै रोस ।
निरषि नृवाण पद रामनाम लीजै ।
आत्मा अंगि लगाइ । सेविलै सहज भाइ ।
भणत नामईयौ छीपौ अंमृत पीजै ॥5॥
90
राम भगति बिन गति न तिरन की । कोटि उपाइ जु करही रे नर ।
जल सींचै करि प्रवालै । आंब बबूल न फलही रे नर ॥टेक॥
आपा थापि और कूं नींदै । गर्व मान के मारे ।
फिर पीछे पछिताउगे बौरे । रतन न मिलहिं उधारे रे नर ॥1॥
यहु ममिता अपनी जिनि जानौ । धन जोबन सुत दारा ।
बालू के मंदिर बिनसि जांहिगे । झूठे करहु पसारा रे नर ॥2॥
जोग न भोग मोह नहीं माया । का भयौ बन मैं बासा ।
चरनं कंवल अनुराग न उपजै । तब लगि झूठी आसा रे नर ॥3॥
मनिषा जनम आई नहिं चेता । अंधे पसू गंवारा ।
तेरे सिर काल सदा सर साधै । नांमदेव करत पुकारा रे नर ॥4॥
91
कांइ रे भूले मूढे जना । चांमद करवा नहीं आपना ॥टेक॥
लोही रक्ता मंझा घनां । तुम जिनि जानौ तन अपना ॥1॥
भणत नांमदेव नाराइनां । रामनाम बिन धृग जीवना ॥2॥
92
आव कलंदर केसवा । धरि अबदालव भेष बाबा ॥टेक॥
ताज कुलह ब्रह्मांडै कीन्हां । पाव सप्त पतांल जी ।
चमर पोस मृत मंडल कीन्हां । इहि बिधि बनै गोपाल जी ॥1॥
अठारै भार का मुंदगर कीन्हा । सहनक सब संसार जी ।
छप्न कोटि का परहन कीन्हा । सोलह सहस इजार जी ॥2॥
माया मसीति मन मुलानां । सहज निवाजि गुजार जी ।
कंवला सेती काइण पढीया । निराकार आकार जी ॥3॥
सहर विसहर सबै तुम फिरीया । तेरा किन हूं मरम न पाया ।
नामदेव का चित हरि सूं लागा । आसण करौ रामराया जी ॥4॥
93
बैस्नौं ते मैं में ते वैस्नौं । सुनि नारद रिष सांच ।
जे भगता मेरे गुन गावै । ताकै अंतरिथ कौ मैं नाचौं नारद ॥टेक॥
नारद कहै सुनौ नाराइण । बैकुंठ बसौ कि कविलास ।
जहाँ मम कथा तहाँ मैं निहचै । बैस्नौ मंदिर बास नारद ॥1॥
गंगा सकल तीरथ करै । गुण चास कोटि करि आवै ।
ऐकादशी सहित संजम करै । ते मोंहि सुपने कदे न पावै नारद ॥2॥
जोगी जती तपी सन्यासी । ऐक मुनि ध्यान बईठा ।
जजै जग्य बेंद धुनि औचरै । तिनहूं कदे न दीठा नारद ॥3॥
जोग जग्गि तप नेम धरम व्रत । जब लगि इनकी आसा ।
बसुधा आदि देह दहिणांदिक । नहीं मम चरन निवासा नारद ॥4॥
जे भगता नृमल जस गावै । ते भगता भम सारं ।
जीया जीऊं पीया पीऊं । वैस्नौ मम परिवार नारद ॥5॥
बैस्नौ मैं दोई नाहीं नारद । प्रीति किया तैं आऊँ ।
भगति हेत यौ व्रत धर्‍यौ है । बैस्नौ हाथि बंधाऊ नारद ॥6॥
विसवाबीस आगै बरताऊं । निज जन नांव सूं राता ।
नामांनौ स्वामी परम पद आपै । भगति मुक्ति दोऊ दाता नारद ॥7॥
94
माधौ भीतरि मार दुहेली ।
अबला कौ बल कहा गुंसाई । परतषि जाइ न पेली ॥टेक॥
ऐ अनेक मैं एक गुसाई । कहौ कहा बस मेरा ।
षेत की पहुंचि कहां लौ राषै । षसम न करही फेरा ॥1॥
तुम से बैद न औषदि औरे । मंत्र और नहीं जाना ।
व्याधि असाधि दयानिधि । पचि पचि गये सयांना ॥2॥
जिनकूं तुम हरि कारी कीन्हीं । बिथा औरि नहीं व्यापी ।
नामदेव कहै नहीं बस मेरा । कृपा करौ दुष कापी ॥3॥
95
अवधू बेली विरधि करैली ।
निरगुण जाइ निरंजन लागी । मारीहूं न मरैली ॥टेक॥
सहज समाधै बाडी रे अवधू । सतगुरु बाही बेली ।
अमीमहारस सीचण लागा । तत तरवर जाइ चढैली ॥1॥
अमर बेलि अनभै जाइ लागी । टारी हू न टलैली ।
रुप रेष ताकै कछु नाहीं । चंदहिं कोटि फलैली ॥2॥
पांचूं मृघ पचीसूं मृघी । सूंघत देषि मरैली ।
निराकार नांमा तेरी बेली । अनंत अमर फल देली ॥3॥
96
अनेक मरि भरि जाहिंगे अवधू । ऐक रांम नांम तत रहैला ॥टेक॥
मुई जु आसा मुई जु त्रिस्ना । मुई जु मनसा माई ।
लोभ हमारी बहनी मूंई । तिनका सोच हम नाहीं रे अवधू ॥1॥
माई का गोत मद मछार मूवा । बापका गोत अहंकार ।
काम क्रोध भाई भतीजा मरि गया । तिनका सोच हम नाहीं रे अवधू ॥2॥
जा कारनी जोगेस्वर मूवा । तास घरनि मैं जाऊंगा ।
नांमदेव सतगुरु साहीला । गोविंद चरन निवासा रे अवधू ॥3॥
97
बैरागी रामहिं गाऊंगा ।
सबद अतीत अनाहद राता । अकुला कै घरि जाऊंगा ॥टेक॥
तीरथ जाऊं न जल मैं पैसूं । जीव जंत न सताऊंगा ।
अठसठि तीरथि गुरु लषाये । घट ही भीतरि न्हाऊंगा ॥1॥
पाती तोडि न पाहन पूजी । देवल देव न घ्याऊंगा ।
पांनि पांनि परसोतम राता । ताकूं मैं न सताऊंगा ॥2॥
वेद पुरान सास्त्र गीता । गीत कबीत न गाऊगा ।
अषंड मंडल निराकार मैं । अनहद बेनि अजाऊंगा ॥3॥
जडी न बूटी ओषद साधूं । राजबैद न कहांऊंगा ।
पूरण बैद मिल्यौ बनमाली । नित उंठि नाडि दिषांऊंगा ॥4॥
सदा संतोष रहूं आनंद मैं । साइर बूंद समाऊंगा ।
गगन मंडल मैं रहनि हमारी । पुनरपि जनमि न आऊंगा ॥5॥
इडा पिंगला सुषमनि नारी । पवनां मंझि रहाऊंगा ।
चंदसूर दोऊ समिकरि राषूं । ब्रह्म ज्योति मिलि जऊंगा ॥6॥
पांच सुभाई मन की सोभा । भला बुरा न कहांऊंगा ।
नामदेव कहै मैं केसव घ्याऊं । सहजि समाधि लगाऊंगा ॥7॥
98
पुरिष हाजिर वरणि नाहीं । दूरि ठाढा बोलै मांहीं ॥टेक॥
ग्यांन ध्यांन रह्‌‍त षेलै । अदृष्टि मांह दृष्टि मेलै ॥1॥
संग लागा भेष काछै । सारीषा आगै अरु पाछै ॥2॥
निगंध रुप विवरजित बासा । प्रणवत नांमदेव हरि दासा ॥3॥
99
देवा पातुर बाजै मादल नाचै । येवढा अंचंभा दीठा ।
पूछौ पढिया पंडिता । जल बैसंदर बूठा ॥टेक॥
चींटी ब्याई हस्ती जाया । येवढा अचंभा थाया ।
ऊभी ऊभी नांषीला । मैंमत घूमत आया ॥1॥
पांइन पंषि बिनाही उडिया । कैरुं डाली बैठा ।
नींब सदाफल सुफल फलिया । सो मोंहि लागै मीठा ॥2॥
ससै सींग मछै षुरी । भेड तडका कांनां ।
मांषी काजल सारन लागी । ऐसा ब्रह्म गियाना ॥3॥
गाई बियाई बछी जाई । गाई बछी कूं धावै ।
प्रणवत नामदेव गुरु परसादै । जो पोजै सो पावै ॥4॥
100
आज कोई मिलसी मुनै राम सनेही । तब पावै हमारी देही ॥टेक॥
भाव भगति मन मैं उपजावै । प्रेम प्रीति हरि अंतरि आवै ॥1॥
आपा पर दुविधा सबनासै । सहजै आतम ग्यान प्रकासै ॥2॥
जन नांमा मन षरा उदास । तब सुष पावै मिलै हरिदास ॥3॥
101
नाराइंन सूं मन न रंजै । संजम चूकै अरु ब्रत षंडै ॥टेक॥
ऐकादसी ब्रत जुगति न जानैं । चंचलचित मन थिर न धरै ॥1॥
पंच आतमा राषि न सकई । राम दोष दे भूष मरै ॥2॥
पर निंद्या जू आप परकास । झूठी साषि सहजि ठारै ॥3॥
परत्रिया सूं रमैं रैनि दिन । नेम धरम सबै हारै ॥4॥
जलहर पैसि पषालै काया । अंतरि मैल न तउ उतरै ॥5॥
भणै नांमदेव कछु न सूझै । पूजा कौन देव की करै ॥6॥
102
पांडे देह अरथि लगाई ।
सात बरस कौ मांहि हौ । तब पांच बरस की माई ॥टेक॥
अगम अलेष बिचारि देषौ । सुसै स्वान छिपाई ।
मीन जलकौ गगन चढीयौ । बाघ षेदे गाई ॥1॥
समंद भीतरि बूंद जाचै । बूंद समंद समाई ।
नामदेव कै ऐक सोई । अलष लष्यौ न जाई ॥2॥
103
मन मंझा तूं गोविंद चरण चित लाइ रे ।
हरि तजि अनत न जाइ रे ॥टेक॥
बलिराजा धुंधमार, न जीवै जुग चार ।
मेरी मेरी करता, ते भी गये रे मन मंझा ॥1॥
रे मन मछिद्रनाथ सहस चौरासी होते ।
ते भी देषत काल लीये रे मन मंझा ॥2॥
रवि ससि दोऊ भाई, फिरत गगन लाई ।
ऐसे भूला भ्रम सब जा रे मन मंझा ॥3॥
अहंकार दिन दस राषिलै दिनच्यार ।
पसुडानै मुकति न होई रे मन मंझा ॥4॥
नामदेव छीप्यौ चौपई गाई ।
जाका जैसा भावै तिन तैसी सिधि पाई रे मंझा ॥5॥

रागा आसावरी

104
जोगिया जिनी षरचसि दामा । सूंम की नाईं भेटिलै रामा ॥टेक॥
बाई कौ दाम न षरचौ भावै । गांठि परै तब परचौ आवै ॥1॥
भणत नांमदेव राषिलै थाती । प्रगटी जोति जहां दीवा न बाती ॥2॥
105
झिलिमिलि झिलिमिलि झिलिमिलि तारा ।
सो झिलिमिलि तिहुं लोक पियारा ॥टेक॥
रहै अकास पडै नहीं दिष्टी । पकड्‌या जाइ न आवै मुष्टी ॥1॥
दीपक पषै तेल बिन बाती । जोति सरुप बलै दिन राती ॥2॥
भणत नांमदेव अमर पद परस्या । पिंडभया मुकति तया तत दरस्या ॥3॥
106
त्रिवेणी प्राग करहु मन मंजन, सेवो राजाराम निरंजन ॥टेक॥
पुरी द्वारिका निकटि गोमती । गंग जमुन बिच बहै सुरसती ॥1॥
अठसठि तीरथ मधि सरोवर । ऐक तया तामैं ताकौं घर ॥2॥
भणत नांमदेव सुणौं तिलोचन । ए तीरथ सब अघके भोचन ॥3॥
107
माधौजी माया मिलन न देई । जन जीवै तौ करै सनेही ॥टेक॥
माया जलधर मोर मन मछी । नीर बिना क्यों जीवै हो पियासी ॥1॥
जे मोडौं तौ मूल बिनासा । बोझ पड्या नहीं आवै सांसा ॥2॥
भणत नामदेव दीन दयाला । निरधारन के तुम आधारा ॥3॥
108
माधौ माली एक सयाना । अंतरिगत रहै लुकानां ॥टेक॥
आपै बाडी आपै माली, कली कली कर जोडै ।
पाके काचे, काचे पाके, मनि मानै ते तोडै ॥1॥
आपै पवन आपही पाणी, आपै बरिषै मेहा ।
आपै पुरिष नारि पुनि आपै आपै नेह सनेहा ॥2॥
आपै चंद सूर पुनि आपै, आपै धरनि अकासा ।
रचनहार विधि ऐसी रची है, प्रणवै नामदेव दासा ॥3॥
109
काल न्याइ विचारि हौ । काइथ बांभण तिलक सुमिरि हौ ॥टेक॥
चारि बेद चौ धरणी । नरक पडौ धरमादिक करणी ॥1॥
सूझणि ना परि धांधे । चंद सूर दोउ उर धरि बांधे ॥2॥
बांभण मद भरि सरवा । जतन पीवै तत मातल बरवा ॥3॥
हरि कौ दास भणै नामा । राम नाम बिन और न जाना ॥4॥
110
जाणौं नै जाणौं बेद पुरानां । छोडौं पाना पोथी ।
बिन मेघा मुकताहल बरवै । भ्रब निरंतर मोती ॥टेक॥
बिनै बजाया बाजा बाजै । नादै अंबर गाजै ।
बिन भेरै होत झणकारा । न दीसै बजांवण हारा ॥1॥
बिन पावक जोती ही दीसै । सुनि मैं सूता जागै ।
अंधियारानौ भौ भागोरे भाई । जे जोइये ते आगै ॥2॥
कर जोडिनै नामौ बिनवै । मैं मूरिष मति थोडी ।
ये पदनौं हेतारथ जांणै । तेन्है पगि लागूं करजोडी ॥3॥
111
जब तब रांमनांम निसतारै ।
साठी घडी मैं ऐक घडी रे सोई सकल अघ जारै ॥टेक॥
कासीपुरी मंझि गौरपति अहनिसि सदा पुकारै ।
कीट पतंग सुनत गति पावै, गोविंद जस विसतारै ॥1॥
अजामेल गनिका, सुष पंषी, रसना रांम उचारै ।
गज पस व्याध तिरे हरि सुमिरत, महिमां व्यास विचारै ॥2॥
परम पुनीत नांव निसि बासुर, निज जन हरि ब्रत धारै ।
नामदेव कहै सोई दास कहावै, जीय तै छिन न बिसारै ॥3॥
112
बापजी येतलौं अंतर कीधौं । जनम नाउं दरजीनौं दीधौं ॥टेक॥
बाभण उचरै बेदनै वाणी । जेतलौ अंतरौ दूधनै पाणी ॥1॥
जाग्रतनै आव्या व्यासनै भांटा । उठौं नांमदेव नांषिये छांटा ॥2॥
हमारी भगति न जाणी हो रामा । हंसि करि कृष्ण बुलाये नांमा ॥3॥

राग भैरुं

113
नामदेव प्रीति नराइंण लागी । सहज सुभाइ भए बैरागी ॥टेक॥
जैसी भूषै प्राति अनाज । तृषावंत जल सेती काज ।
मूरिष नर जैसे कुटुंब पराइण । ऐसी नामदेव प्रीति नराइन ॥1॥
जैसे पर पुरिषा रत नारी । लोभी नर धन कौ हितकारी ।
कामी पुरिष काम रत नारी । ऐसी नामदेव प्रीति मुरारी ॥2॥
जैसी प्रीति बालक अरु माता । ऐसें यहु मन हरि सौं राता ।
नामदेव कहै मेरी लागी प्रीति । गोबिंद बसै हमारे चीत ॥3॥
114
नाइं तिरौं तेरे नाइं तिरौं नाइं तिरौं हो बाप रामदेवा ॥टेक॥
नित अमावस नितै पुन्यू, नितै ही रवि चंदा ।
गंगा जमुना संगम देखूं, आनंद लहरि तरंगा ॥1॥
घट ही बेणी तीरथ आछै, मरम न जानै कोई ॥
चित्त विहंगम चेति न देषै, काहू लिपत न होई ॥2॥
ग्यांन सरोवर मंजन मंज्या, सहजै छूटिलै भरमा ।
नामा संगै राम बोलै, रामनाम निहकरमा ॥3॥
115
भगवंत भगता नहीं अंतरा । द्वै करि जानैं पसुवा नरा ॥टेक॥
छाडि भगवंत वेद विधि करै । दाझै भूजै जामैं मरै ॥1॥
कथनी वदनी सब कोइ कहै । करनी जन कोई विरला रहै ॥2॥
कहत नामदेव ममता जाइ । तौ साध संगति मैं रह‌या समाइ ॥3॥
116
रांम रांम रांम जपिबौ करै । हिरदै हरि जी कौ सुमिरन धरै ॥टेक॥
संडामरका जाइ पुकारे । पढे नहीं हम सब पचि हारे ।
हरि हरि कहै अरु ताल बजावै । चटरा सबै बिगारे ॥1॥
सब वसुधा बसि कीन्हीं राजा । बीनती करै पटरानी ।
पुत्र प्रहिलाद कह्‌यौ नहीं मानत । इहिं कछु औरै ठानी ॥2॥
राजसभा मिलि मंत्र उपायो । बालिक बुधि घणेरी ।
जलथल गिरि ज्वाला थैं राख्यो । राम राइ माया फेरी ॥3॥
काढि षडग काल ह्रै कोप्यौ । मोहिं बताइ तोहिं को राषै ।
षंभा मांहि प्रगट्यौ परमेश्वर । संकल बियापी सति भाषै ॥4॥
हरिनाकुसकौ उदर विदार‌यौ । सुर नर कीये सनाथा ।
भणत नामदेव तुम्ह सरणगति । राम अभै पद दाता ॥5॥
117
जौ बोलै तौ रामहिं बोलि । नहीं तर बदन कपाट न षोलि ॥टेक॥
जे बालिये तो कहिये रांम । आन बकन सौं नाहीं काम ॥1॥
राम नाम मेरे हिरदै लेष । राम बिना सब फोकट देष ॥2॥
नामदेव कहै मेरे एकै नाउं । रामनांम की मैं बलि जाउं ॥3॥
118
जपिरांम नाम मंत्रावला । कलियुग मरणां उतावला ॥टेक॥
दिवस गंवाया ग्रिह व्यौहार । राति जु आई अंधाकार ॥1॥
दूरि पयानां अवघट घाट । क्यों निस्तरिबौ संग न साथ ॥2॥
भणत नामदेव औघट तिरी । अरधै नांव उधारै हरी ॥3॥
119
मैला मलिता सब संसार । हरि निरमल जाकौ अंत न पार ॥टेक॥
मैला वीरज मैला षेत । मन मैला काया जस हेत ॥1॥
मैला मोती मैला हीर । मैला पवन पावक अरु नीर ॥2॥
मैला तीन लोक ब्रह्मांड इकवीस । मैला निसिबासुर दिनतीस ॥3॥
मैला ब्रह्मा मैला इंद्र । सहसकला मैला रवि चंद ॥4॥
सब जग मैला आनहिं भाई । जन निर्मल जब हरि गुन गाई ॥5॥
मैला पुनि अरु मैला पाप । मैला आनदेव का जाप ॥6॥
मैला तीरथ मैला दान । व्रत मैला पूजा सनांन ॥7॥
मैला सुर मैली सुरसरी । नामदेव कौ ठाकुर निरमल हरी ॥8॥
120
जागि रे जीव कहा भुलाना । आगै पीछै जाना ही जाना ॥टेक॥
दिवस चारि का गोवलि बासा । तामैं तोहिं क्यौं आवै हासा ॥1॥
इहि भ्रमि लागि कहां तू सोवै । काहे कूं जनम बादि ही षोवै ॥2॥
कहां तू सोवै बारंबारा । रामनाम जपि लेउ गंवारा ॥3॥
भणत नांमदेव चेति अयांना । औघट घाट अरु दूरि पयांना ॥4॥
121
छांडि दे रे मन हमिता ममिता । सब घट रांम रह्‌यौ रमि रमता ॥टेक॥
आसा करि मन जइये जहिंया । राम बिना सुष नाहीं तहिंया ॥1॥
जन की प्रीति अगम पियारी । ज्यों जल निरषि भरै पनिहारी ॥2॥
भणत नांमदेव सब गुन आगर । भजि हरि चरन कृपा सुष सागर ॥3॥
122
हरि भजि हरि भजि हरि भजि मूल । बिन हरि भजन परै मुषि धूल ॥टेक॥
अनेक बार पसु ह्रै अवर्‍यौ । लष चौरासी भरमत फिर्‍यौ ॥1॥
पायौ नहीं कहीं विश्राम । सतगुर सरनि कह्‌यौ नहीं राम ॥2॥
राज काज सुत बित सब जाइ । अविनासी सौं प्रीति लगाइ ॥3॥
इहिं उनमान भगत ब्रत धरै । जरा मरन भव संकट टरै ॥4॥
गुणसागर गोविंद गुण गाइ । अपनौ विरद बिसरि जिनि जाइ ॥5॥
प्रणवत नामदेव संत सधीर । चरन सरन राषै हरि नीर ॥6॥
123
जे न भजै नर नारांइना । ताका मैं न करौं दरसना ॥टेक॥
जाहिं सवारे आवहिं सांझ । ते नर गिनिए पसुवा मांझ ॥1॥
जिनके हरि नही अभिअंतरा । जैसे पसवा तैसे नरा ॥2॥
जैसी संतौ विष की डरी । तैसी पर घर की सुंदरी ॥3॥
परधन परदारा परहरी । तिनके निकटि बसै नरहरी ॥4॥
प्रणवत नामदेव नांका बिना । न सोहै बतीस लक्षनां ॥5॥
124
आन न जानौं देव न देवा । जित जित प्राण तित ही तेरी सेवा ॥टेक॥
तूं सुष सागर आगर दाता । तूं ही मेरे प्राण पिता गुर माता ॥1॥
नामौं भणै मेरे सब कुछ साईं । मनसा बाचा दूसर नाहीं ॥2॥
125
पांडे मोंहि पढावहु हरी । विद्या अपनी राषउ धरी ॥टेक॥
बारहू अक्षर की बाहूर खडी । हरि बिन पढिबे की आषडी ॥1॥
ररौ ममौ दोऊ अषिरा । पार उतारै भव सागरा ॥2॥
हम तुम पांडे कैसा बाद । रामनाम पढिहैं प्रहिलाद ॥3॥
पतरा पोथी परहा करौ । रामनाम जपि दुस्तर तरौ ॥4॥
थंभा मांहि प्रगट्यो हरी । नामदेव कौ स्वामी नरहरी ॥5॥
126
रामनांम मेरे पूंजी धनां । ता पूंजी मेरौ लागौ मना ॥टेक॥
यहु पूंजा है अगम अपार । ऐसा कोई न साहूकार ॥1॥
साह की पूंजी आवै जाइ । कबहूं आवै मूल गंवाइ ॥2॥
जारी जरै न काई षाइ । राजा डंडै न चोर लै जाइ ॥3॥
अलष निरंजन दीन दयाला । नामदेव कौ धन श्रीगोपाला ॥4॥
127
रामनांम मैं पिंड पषाला । मल नहीं लागै जपत गोपाल ॥टेक॥
रामनाम डूंगर सी सिला । धोबिया धोवै अंतरि मला ॥1॥
बरणांश्रम नाना मती । नांमदेव का स्वामी कंबलापती ॥2॥
128
हरि दरजी का मरम न पाया । जिनि यहु बागा षूब बनाया ॥टेक॥
पाणी का चित्र पवन का धागा । ताकूं सीवत मास दस लागा ॥1॥
स्यौं सुरवाल मुकट बनि आया । ये दोइ हीरालाल लगाया ॥2॥
भगति मुकति का पटा लिषाया । पूरण पारब्रह्म पद पाया ॥3॥
आपै सीवै पहिरावै । निरत नांमदेव नांव धरावै ॥4॥

राग कनडौ

129
तू मेरौ ठाकूर तूं मेरौ राजा हौं तेरे सरनैं आयो हो ।
जस तुम्हारौ गावत गोविंद न लोगनि मारि भगयो हो ॥टेक॥
आलम दुनी आवत मैं देषी साइर पांडे कोपिला हो ।
सुद्र सुद्र करि मारि उठायो, कहा करौ मेरे बाबुला हो ॥1॥
प्राण गये जे मुकति होत है सो तो मुकति न दीसै कोई हो ।
ये बांभण मोंहि सुद्र कहत हैं, तेरी पैज पिछौडी होई हो ॥2॥
भई चहूं दिसि अचिरज भारी, अदबुद बात अपारा हौ ।
दास नांमा कौ भयौ दुवारौ पंडित कौ पछिवारा हौ ॥3॥
130
दुरबल गरिबा राम कौं, हरि कौ दास मैं जन सेवग तेरा ॥टेक॥
अचार व्यौहार जाप नहीं पूजा, ऐसो भगत आयो सरनिला ॥1॥
नामा भणै मैं सेवग तेरा । जनमि जनमि हरि उरगिला ॥2॥
131
तुम्हारी कृपा बिना न पाइये हो । राम न पाई हो ॥टेक॥
भाव कलपतर भगति लता फल । सो फल रसाल कै बेसी देवा ॥1॥
नामौ भणै केसवे तूं देसी तर लाहाइणै । उपाये तुझे भणीजै ॥2॥
132
चूक भजीला चूक भजीला । चूकै चित अवतार धरीला ॥टेक॥
दृग हीणां औतार बषाणैं । अकल अगोचर एक न जाणैं ॥1॥
भूला जग पाषांण पुजीला । अंतरजामी उरि न सुझीला ॥2॥
जन नामदेव निरषि निरंजन घ्यावै । अंजन आवै जाइ न भावै ॥3॥

राग मारु षंभाइची

133
धनि दिहाडौं धनि घडीयै । साधो भाई गोविंदजी धरि आया ऐ ॥टेक॥
चंदन चौक पुरावज्योऐ । साधो भाई पांच सषी मिलि बधाया ऐ ॥1॥
गगन मंडल म्हारो बैषणोऐ । साधो भाई बाजै अनहद तूरौ ऐ ॥2॥
हरी जी आव्या म्हारै पाहुंणाऐ । साधो भाई आज बधावौ पूरौ ऐ ॥3॥
आंबा रि लागी बादलीऐ । साधो भाई झिरिमिरि बरषै मेहौ ऐ ॥4॥
गरीब नामदेव हरि भज्यौऐ । साधो भाई लोग हंसे बादी ज्यों ऐ ॥5॥

राग परजीयौ

134
लागी जनम जनम की प्रीति, चित नहीं बीसरै रे ॥टेक॥
जेन्है मुषडौ दीठै सुष थाई, तेन्हें कोई जाइ कहौ रे ॥1॥
जासों मन बांधी प्रीति अपार, अपरछन थई रह्यौ रे ॥2॥
भर्‌यौ सरवर लहर्‌या जाइ, धायौ नहीं पपीहरौ रे ॥3॥
तेन्हौ घन बिन तृपति न थाइ जोवौ तेन्हौ नेहरौ रे ॥4॥
दोइ लष चंदल दूरि कमोदनि बिगसै रे ॥5॥
जन नामदेव नौ स्वामी दीन दयाल, ते बेदनि लहै रे ॥6॥

राग कल्याण

135
नाचि रे मन राम के आगे । ग्यांन बिचारि जोग बैरागे ॥टेक॥
नाचै ब्रम्हा नाचै इंद । सहस कला नाचै रवि चंद ॥1॥
रामकै आगै संकर नाचै । काल विकाल अकाललहिं नांचै ॥2॥
नारद नाचै दोइ कर जोडि । सुर नांचै तैतीसूं कोडि ॥3॥
भणत नांमदेव मनहिं नचाऊं । मनके नचाये परम पद पाऊं ॥4॥

राग सारंग

136
भइया कोई तूलै रे रांम नांम ।
जोग जिग तप होम नेम व्रत ए सब कौने काम ॥टेक॥
एक पलै सब बेद पुरानां एक पलै अरध नांम ॥
तीरथ सकल अंहडै दीन्हैं तऊ न होत समान ॥1॥
नाद न बिंद रुप नहीं रेषां ताकौ धरिये ध्यांन ।
तीनि लोक जाकै उद्र समाना, सिभूं पद नृबान ॥2॥
भणत नामदेव अंतरजामी, संतौ लेउ बिचारी ।
रामनाम समि कोई न तूलै, तारण तिरण मुरारी ॥3॥
137
गोविंद राषउ चरणन तीर ।
जैसे तरवर पात परै झरि, बिनसै सकल सरीर ॥टेक॥
जब त्रिया उद्र कीयौ प्रतिपाल, ग्रभ संकट दुष भीर ।
नरसहै यूं बिनसि जावै, चलत मिटै नहीं पीर ॥1॥
जैसे भुतंगम पंष बिहूनौं, नलनी बिनि झरै नीर ।
नामदेव जन जम की त्रास तैं प्राण धरत नहीं धीर ॥2॥

राग धनाश्री

138
हमारै करत राम सनेही ।
काहे रे नर गरब करत है बिनसि जाइगी देही ॥टेक॥
उंडी षणि षणि नींव दिवाई, ऊंचे मंदिर छाये ।
मारकंडै ते कौन बडौ है, तिन सिरि द्यौस बलायै ॥1॥
मेरी मेरी कैरौ करते, दुरजोधन से माई ।
बारह जोजन छत्र चलत सिरि, देही गिरधनि षाई ॥2॥
सर्व सोवनी लंका होती रावण से अहंकारी ।
छाडि गये दर बांधे हाथी, छिन मैं भये भिषारी ॥3॥
दुरबासा सूं करी ठगौरी, जादौ सबै षपाये ।
गरब प्रहारी हैं प्रभु मेरौ नामदेव हरि जस गाये ॥4॥
139
बाल सनेही गोविंदा । अब जिनि छांडौ मोहिं ।
मैं तोसौं चित लाइयौ । मेरे अवर न दूजा कोई ॥टेक॥
तूं निर्गुण हौं गुण भरी । एकहिं मंदिर वास ।
एक पालिक पौढतें । अब क्यों भये उदास ॥1॥
बडी सौति मेरी मरि गई । भयौ निकटौ राजौ ।
अब हौं पीयकी लाडली । मेरो कबूहं न होइ अकाजौ ॥2॥
जेठ निमानौं परिहर्‌यौ । छांडि सुसर कौ हेत ।
पुरिष पुरातन व्याहियौ । कबहूं न होइ कुहेत ॥3॥
सासुरवाड्यों परिहर्‌यौ । पीहर लीयौ न्हालि ।
नामदेव कौ साहिब मिल्यौ । भागी कुलकी गाली ॥4॥
140
कपट मैं न मिलै गोविंद गुन सागर गोपाल ।
गोपी चंदन तिलक बनावै कंठहु लावै माल ॥टेक॥
मन प्रतीति नहीं रे प्रांनी औरन कूं समझाइ ।
लोकन कू वैकुथं पठावै, आपण जमपुरि जाइ ॥1॥
जानि बूझि विष षाइअये रे, अंधे अंधा हाथि ।
देखत ही कूंवै पडै, अंधो अंधा साथि ॥2॥
जोग जग जप तप तीरथ व्रत मन राषै इन पास ।
दान पुनि धरम दया दीनता, हरि की भगति उदास ॥3॥
भजि भगवंत भजन भजि प्रांनी छांडे अणेरी आस ।
बरना बरन सुभासुभ भजि करि, कौन भयो निज दास ॥4॥
कोमल विमल संत जन सूरा करैं तुम्हारी आस ।
तिन पर कृपा करौं तुम केसव प्रणवत नामदेव दास ॥5॥
141
तत कहन कूं रांम है भजि लीजै सोई ।
लीला तिन अगाध की गति लषै न कोई ॥टेक॥
कंचन मेर समान है, दीजै दुजि दाना ।
कोटि गऊ नित दान दें, नहीं नांव समाना ॥1॥
जोग जिग सूं कहा सरै, तीरथ असनांना ।
वौ सांप्पा सन भाजहीं, भजीये भगवाना ॥2॥
पूजण कूं साधू जणां, हरि के अधिकारी ।
इन संगि गोविंद गाइये, वै पर उपगारी ॥3॥
एकै मनिये दै दसा, हरि कौ व्रत धरीये ।
नांमदेव नांव जिहाज है, भौ सागर तिरीये ॥4॥
142
कहा ले आरती दास करै । तीनि लोक जाकी जोति फिरै ॥टेक॥
सात सुमंद जाकै चरन निवासा । कहा भये जल कुंभ भरे ॥1॥
कोटि भान जाकै नष की सोभा । कहा भयौ कर दीप फिरै ॥2॥
अठार भार जाकै बनमाला । कहा भये कर पहोप धरै ॥3॥
अनंत कोटि जाकै बाजा बाजै । कहा घंटा झणकार करै ॥4॥
चौरासी लष व्यापक रांमा । केवल हरि जस गावै नामा ॥5॥
143
आरती पतिदेव मुरारी । चवंर डुलै बलि जाऊं तुम्हारी ॥टेक॥
चहुं जुगि आरती चहुं जुगि पूजा । चहुं जुगि राम अवर नहीं दूजाअ ॥1॥
चहूं दिस देषै चहुं दिस धावै । चहुं दिस राम तहां मन लावै ॥2॥
आरती कीजै ऐसे तैसे । ध्रू प्रहिलाद करी सुष जैसे ॥3॥
अरधै राम अरध मधि रामा । पूरन सेइ सरै सब कामा ॥4॥
आनंद आत्म पूजा । नामदेव भणै मेरे दिव न दूजा ॥5॥ 144
गरुड मंडल आव । पृथ्वीपति गरुड मंडल आव ॥टेक॥
तू पृथ्वी पति जागृत केला । मैं गाऊं गुन राग रचेला ॥1॥
नामदेव कहे बालक तोरा । भक्तिदान दे साहेब मोरा ॥2॥
145
धीरे धीरे षाइबौ कथन न जैबौ । आपन षैबौ तब नृमल ह्रैबौ ॥टेक॥
पहली षैहों आई माई । पीछे षैहौं सगा जंवाई ॥1॥
उगलिबा चंदा गिलिबा सूर । फुनि मैं षैहों घर कौ ससूर ।
फुनि मैं षैहों पंचौ लोग । भणत नामदेव ये सिध जोग ॥2॥
146
तैसी चूक लीजै रे जग जीवना । अनभवल्या बिना ऐसी लषी न कुरसनां ॥टेक॥
पारब्रह्माची गोडी, नेणती बापुडी पडीते । सकैडै विषया संगे ॥1॥
सिलेसि घातले बैसाचे बैरणें । तेच बिधने नेतियार साचे ॥2॥
कमलनी दुरदुरा, ऐकजु बिटा । प्रमल मधु कधि न गैला ॥3॥
थाना चया दूधा न होसि बरपडा । अपुध सेचता उचडा, जनम गैला ॥4॥
नामा भणै तैसी चूकली तुझी तुझ देषता । अंमृत सेवता, चवै नौंणती ॥5॥
147
देवा, पाहन तारिअलें । राम कहत जन कस न तरे ॥
तारिले गनिका विपुरुप कुविजा । विआध अजामलु तारिअले ॥
चरणबधिक जन तेऊ मुकति भए । हउ बलिबलि जिन राम कहै ॥
दासीसुत जनु बिदरु सुदामा । उग्रसेन कउ राज दिए ॥
जपहीन, तपहीन, कुलहीन क्रमहीन । नामेके सुआमी तेउ तरे ॥
148
एक अनेक बिआपक पूरन जत देखउ तत सोई ॥
माइआ चित्र बचित्र विमोहित बिरला बूझै कोई ।
सभु गोविंदु है, सभु गोविंदु है गोविंदु बिनु नहि कोई ॥
सूत एकु मणि सत सहंस जैसे उतिपोति प्रभु सोई ॥
जलतरंग अरु फेन बुदबुदा, जलते भिन्न न कोई ॥
इहु परपंचु पारब्रह्म की लीला बिचरत आन न होई ॥
मिथिआ भरमु अरु सुपनु मनोरथ सति पदारतु जानिआ ॥
मुक्ति मनसा गुरु उपदेसी, जागत ही मनु मानिआ ॥
कहत नामदेऊ हरि की रचना देखहु रिदै विचारी ॥
घट घट अंतरि सरब निरंतरी केवल एक मुरारी ॥
149
पारब्रह्म मुजि चीनसी आसा ते न भावसी ॥
रामा भगतह चेतीअले अचिंत मनु राखसी ॥
कैसे मन तरहिगा रे संसार सागरु बिखै को बना ॥
झूठी माइआ देखि के भूला रे मना ॥
छीपे के घरि जनमु दैला गुर उपदेसु भैला ॥
संतह कै परसादि नामा हरि भेटुला ॥
150
जै राजु देहि त कवन बडाई । जै भीख मंगावहि त किआ घटि जाई ॥
तूं हरि भज मन मेरे पढु निरबानु । बहुरि न होई तेरा आवन जानु ॥
सभ तै उपाई भरम भुलाई । जिस तूं देवहि तिसहि बुझाई ॥
सतिगुरु मिलै त सहसा जाई । किस हऊ पूजऊ दूजा नदरि न आई ॥
एकै पाथर कीजै थाऊ । दूजै पाथर धरिए पाऊ ॥
जै इहु देऊ तहु भी देवा । कहि नामदेऊ हम हरिकी सेवा ॥
151
पाड पडोसणि, पूछिले नामा, कापहि छानि छवाई हो ॥
तोपहि दुगनी मजूरी देहउ मोकउ बेढी देहु बताई हो ॥
री बाई वेढा देनु न जाई ॥
देखु बेढी रहिउ समाई ॥
हमारै बेढी प्रान अधारा ॥
बेढी प्रीति मजूरी मांगे जउ कोऊ छानि छवावै हो ॥
लोग कुटुंब समहु ते तेरै तउ आपन बेढी आवै हो ॥
ऐसो बेढ बरनि न साकउ सभ अंतर सभ ठाईं हो ॥
गूंगे महा अमृतरस चाखिआ पूछे कहनु न जाई हो ॥
बेढा के गुन सुनि री बाई जलधि बांधि ध्रु थापिउ हो ॥
नामेके सुआमी सीअ बहोरी लंक भभीखण आपिउ हो ॥
152
अणमडिआ मंदलु बाजै । बिनु सावन धनहरु गाजै ॥
बादल बिनु बरखा होई । जउ ततु बिचारै कोई ॥
मोकउ मिलिउ रामु सनेही । जिह मिलिऐ देह सुदेही ॥
मिलि पारस कंचनु होइआ । मुख मनसा रतनु परोइआ ॥
निज भाऊ भइया भ्रमु भागा । गुरु पूछे मनु पति आगा ॥
जल भीतरि कुंभ समानिआ । सभ रामु एकु करि जानिआ ॥
गुर चेले है मन मानिआ । जन नामै ततु पछानिआ ॥
153
पतितपावन माधऊ विरदु तेरा । धनि ते वै मुनिजन दिआइउ हरी प्रभु मेरा ॥
मेरे माथै लागीले धूरी गोविंद चरणन की । सुर नर मुनि जन तिनहु ते दूरी ॥
दीन का दइआलु माधो गरब परिहारी । चरण सरन नामा बलि तिहारी ॥
154
कुंभार के घर हांडी आछै राजा के घर सांडी गो ॥
बामन के घर रांडी आछै रांडी सांडी हांडी गो ॥
बाणी के घर हींगु आछै भेसर माथे सींगु गो ॥
देवल मधे लींगु आछै लींगु, सींगु, हींगु गो ॥
तेली के घर तेलु आछै जंगल मधें बेल गो ॥
माली के घर केल आछै केल, बेल, तेल गो ॥
संता मधे राम आछै गोकल मधे सिआम गो ॥
नामे मधे गोबिंदु आछै राम, सिआम गोबिंब गो ॥
155
मै अंधुले की टेक तेरा नामु खुदंकारा । मै गरीब मै मसकीन तेरा नामु है अधारा ॥
करीमा रहिमा अलाह तूं गनी । हाजार हजूरी दरि पेसि तूं मनी ॥
दरिआऊ तूं निहंद तूं बिसिआर तूं धनी । देहि लेहि एक तूं दिगर को नही ॥
तूं दाना तूं बीना मै बीचारु किया करी । नामेचे सुआमी बखसंद तूं हरी ॥
156
हले यारां हले यारां खुसि खबरी । बलि बलि जांऊ हऊं बलि बलि जाऊं ॥
नीकी तेरी बिगारी आले तेरा नाऊ । कुजा आमद कुदा रफती कुजा मेरवी ॥
द्वारिका नगरी रासि बुगोई । खूबु तेरी पगरी मीठे तेरे बोल ॥
द्वारिका नगरी काहे को मगोल । चंदी हजार आलम एक लखाणा ॥
हम चिनी पातिसाह सांवले बरना । असपति गजपति नरह नरिंद ॥
नामे के स्वामी मीर मुकुंद ॥
157
बानारसी तपु करै उलटि तीरथ मरै । अगनि दहै काइआ कलपु कीजै ॥
असुमेध जगु कीजै सोना गरभदानु दीजै । रामनाम सरि तऊ न पूजै ॥
छोडि छोडि रे पाखंडा मन कपटु न कीजै । हरिका नामु नित नितहि लीजै ॥
गंगा जऊ गोदावरि जाइये । कुंभि जऊ केदार नाईये, गोमति सहसगऊ दानु कीजै ॥
कोटि जऊ तीरथ करै तनु जऊ हिवाले गारै । रामनाम सरि तऊ न पूजै ॥
असुदान गजदान सिहजा नारी । भूमिदान ऐसो दान नित नितहि कीजै ॥
आतम जऊ निरमाइलु कीजै । आप बराबरि कंचनु दीजै रामनाम सरि तऊ न पूजै ॥
मनहि न कीजै रोसु जमहि न दीजै दोसु । निरमल निरबाणु पदु चीनि लीजै ॥
जसरथ राइ नंदु राजा मेरा रामचंदु । प्रणवै नामा ततु रसु अंमृत पीजै ॥
158
मेरो बापु माधऊं तूं धनु केसो सावलीऊ विठुलाई ॥
कर धरे चक्र वैकुंठ ते आए गज हसती के प्रान उधारीअले ॥
दुहसासन की सभा द्रोपती अंबर लेत उबारिअले ॥
गौतम नारि अहालिया तारी या जन केतक तारिअले ॥
ऐसा अधमु अजाति नामदेऊ तऊ सरनागति आइअले ॥
159
बदहु कोन माधऊ मोसिऊ ।
ठाकुर ते जनु जन ते ठाकुरु खेलु परिउ है तोसिऊ ॥
आपन देऊ देहुरा आपन आप लगावै पूजा ।
जल ते तरंग तरंग ते है जल कहन सुनन कऊ दूजा ॥
आपहि गावै आपहि नाचै आप बचावै तूरा ॥
कहत नामदेऊ तूं ठाकुर जनु ऊरा तू पूरा ॥
160
आदि जुगादि जुगो जुगु ताका अंत न जानिआ ।
सरब निरंतरि रामु रहिआ रवि ऐसा रुपु बखानिआ ॥
गोबिंदु गाजै सबदु बाजै आनदरुपी मेरो रामइआ ।
बावन बीखू बाने बीखे बासु ते सुख लागिला ॥
तुमचे पारसु हमचे लोहा संग कंचनु भैइला ।
तू दइआलु रतनु लालु नामा साचि समाइला ॥
161
अभिमांन लीषां नर आयौ रे ।
पर आत्म आत्म नहीं चीन्हीं । नर वपु नांव धरायो रे ॥टेक॥
गरभबास मैं हुतौ दीनता । त्राहि त्राहि ल्यौ लायौ रे ।
हा हा करत विसंभर आगै । गहि आपदा छुडावौ रे ॥1॥
अब रातौ तै बिषै बासना । संग तृस्नां कै धायौ रे ।
गुन्हेगार गोबिंद देव कौ । कबहूं राम न गायौ रे ॥2॥
मैं हरि नांम अधार धार कै । साधू सरनि बतायौ रे ।
नांमदेव कहै समझि मन मूरिष । जौ समझै समझायौ रे ॥3॥
162
पावघे पावघे सहजै मुरारी ।
सबद अनाहद घंटा बाजै, बमेक विचारी बीठला ॥टेक॥
त्रिवेणी संगम मंजन करिहूं । मनैं बुझाया ।
नैन कुसुम करि चरचौं । चितै चंदन लाया ॥1॥
पाती प्रीति ध्यान ले । धूप दीपक ग्यांना ।
अजपा जपौं अपूज्या पूजौं । अजरामर थाना ॥2॥
जहां कुछ नाहीं तहां कुछ देषा । जीयरा लोभानां ।
आत्म केरे तेज मधे । तेज दीपानां ॥3॥
अनेक सूरज मिलि उदै किये हैं । ऐसी जोति प्रकासी ।
तहा निरंजन अंजन षोलै । वैकुंठ वासी ॥4॥
करम सकल कौ भेष धरयौ है । विषई विकारा ।
चंबर पवन गुन अषित करिहूं । सारंग धारा ॥5॥
बिना विप्र वेद धुनि उचरै । अधिक रसाला ।
बिना तूंबरि नारद नाचै भावै गावै । बाजहिं ताला ॥6॥
रुप अतीत सकल गुण रहता । गगन समाना ।
तहां ते अधिक लौ लागी । अंतरि ध्यानां ॥7॥
विष्णुदास नामईया संगे । भेटीला सोई ।
हरि हरि हरि हरि कीरतल करतां । इहि बिधि आनंद होई ॥8॥
163
लटकि न बोलूं बाप वर्तमान गाढौ ।
कोल्हा ऐवडा मोतीडा मैं मैं डोलै देषीला ॥टेक॥
छेली बेली बाघ जैला मांझरीया भै ठाढै ।
उडत पंषि मैं लवरु पेष्या नर लूंजै है हाडै ॥1॥
बावलियाचै पोटै मांषणियाचै पोटै ।
संषै सुनहा मारीला तहाँ मीडक अभिला लोटै ॥2॥
अम्है जगैला ब्राटदेस तहां माझी दूध कैला ।
व्रजै आटै गांझीला जहां चौदह रंजन भरिला ॥3॥
लटक्यौ गईयौ गढीया जौलै गठीया ऐवडै रौलै ।
उंडत पंष मैं मूंगी पेषी वांटी जे है डोलै ॥4॥
विस्नदास नामईयौ यूं प्रणजै ये छै जीव जीव ची उकती ।
लटक्यौ आछै सांगीला । ताछै मोक्ष न मुकती ॥5॥

केवल पूना प्रति में प्राप्त होनेवाले पद

164
नहीं ऐसो जन्म बारुंबार ।
कहीं पूरब लै पुनि पाईयौ । मनिषा औतार ॥टेक॥
ग्रभ बास मैं प्रतिपाल कीन्हीं । ताहि सुमरि गंवार ।
कहा उतर देहगौ । राजाराम कै दरबार ॥1॥
बधत पल पल घटत छिन छिन जात न लागै बार ।
तरवर सूं फल झडि पडै । बहौरि न लागै डार ॥2॥
संसार सागर मंडी बाजी । सुरति कीन्हीं सारि ।
मनिष जन्म का हाथि पासा । जीति भावै हारि ॥3॥
संसार सागर विषम तिरणां । निपट उंडी धार ।
सुरति निरति का बांधे भेरा । उतरिये लै पार ॥4॥
काम क्रोध मद लोभ लालच । ताहि बंध्यौ संसार ।
दास नामैं जग जीति लीया । केवल नांव अधार ॥5॥
165
उठिरे नांमदेव बाहरि जाइ । जहां लोग महाजन बैठे आइ ॥टेक॥
बांभण बनीयां उत्तिम लोग । नहीं रे नांमदेव तेरा जोग ॥1॥
बार बार सीधा कुण लेह । को छिपीया ढिग बैसण देह ॥2॥
हम तौ पढीया बेद पुरानां । तू कहा ल्यायौ ब्रह्म गियाना ॥3॥
नामदेव मनि उपरति धरी । हीन जाति प्रभु काहे मोरी करी ॥4॥
झाडि कबलीया चल्यौ रिसाइ । मठ कै पीछै बैठो जाइ ॥5॥
पगां घूंघरा हाथां तारी । नामदेव भगति करै पछि वारी ॥6॥
धज कांपी देवल धरहरया । नांमदेव सनमुषि दूबारा फिरया ॥7॥
नामदेव नरहरि दरसन भया । बांह पकडि मिंदर मै लीया ॥8॥
जैसी मनसा तैसी दसा । नांमदेव प्रणवै बीसो बिसा ॥9॥
166
आ भडै रे नौआ आ भणै रे ।
होति छोति कहि नहीं छीपा सूं । देवल मांही ना बडै रे ॥टेक॥
उत्तिम लोग देहरे आया । च्यारुं वरण चा भडै रे ॥1॥
उंठिभाई नांमदेव बाहरि आव । ज्यौं पंडित वेद भणैं रे ॥2॥
नामदेव उठि जब बाहरि आयौ । केसौ नै कल न परै रे ॥3॥
देवल फिरि नामा दिसि भईया । पंडित सब पांवा पडै रे ॥4॥
दास नामदेव कौ ऐसा ठाकुर । पण राषै हरि सांकडै रे ॥5॥ 167
गाई मन गोबिंद गाइ रे गाइ । तेरो हरि बिन जनम अकारथ जाइ ॥टेक॥
मनिषा जनम न बारंबार । तातै भजि लै रामपियार ॥1॥
रे मन गोबिंद काहे न गावै । मनिषा जनम बहुरि नहिं पावै ॥2॥
छाडि कुटिलाइ हरि भजि मनां । या जीवडा का लागू धना ॥3॥
अब कै नांमदेव भया निहाल । मिले निरंजन दीनदयाल ॥4॥
168
झिलिमिलि झिलिमिलि नूरा रे । जहं बाजै अनहद तूरा रे ॥टेक॥
ढोल दमामां बाजै रे । तहां सबद अनाहद माजै रे ॥1॥
फिर रायां जोति प्रकासी रे । जहां आपै आप अविनासी रे ॥2॥
जहां सूरिज कोटि प्रकासा रे । तहां निहचल नामदेव दासा रे ॥3॥ 169
गावै तौ गाइ भावै मति गावै राम । वाहि बदै बे काम ॥टेक॥
पढै गुनै अरु कथै अनेक । बसतु भली पकडि भांडे छै ॥1॥
जब लगि नाहीं हिरदै हेत । बीज बिना क्युं निपजै षेत ॥2॥
जिभ्या इंद्री नांहीं सुद्ध । बांझ भणां क्यों निकसै दुध ॥3॥
नामदेव कहै इक बुधि विचारि । बिनि परचै मति मरौ पुकारि ॥4॥
170
ऐसे ही मना रे मेरे ऐसे ही मनां । चलौ रे जहां साहिब अपनां ॥टेक॥
ज्यू सापों सर ले ने जाइ । जल को डर तो विलमग जाइ ॥1॥
ज्यूं पंथी पंथ मांही डरै । घर है दूरि रैनि जानि परै ॥2॥
बाल बुधि जैसे कोडी देह । रिधनां डर तौ सांस न लेह ॥3॥
ऐसे जारिम पऊ चरण करै । नामदेव कहै ताको कारिज सरै ॥4॥
171
तू सुष सागर नागर दाता । तू मेरे प्रारभ पिता अरु माता ॥1॥
और न जानूं देवी देवा । अपना राम की करि हूं सेवा ॥2॥
नामदेव कहै मोहि तारि गोसाईं । व्याध बनचर भील की नांईं ॥3॥
172
इन औसर गोबिंद भजि रे ।
यह परपंच सकल बिनसैगे माया का फंदन तजि रे ॥टेक॥
नांव प्रताप तिरे जठ जल मैं मांगत नांव कीयों हठ रे ।
बिन सेवा बिन दान पुनि बिन चाढि बिमांन सकल सझ रे ॥1॥
तन सरवर एक हंस बसेत हैं ताहूं काल करत फंद रे ।
नामदेव भनै निरंजन का गुन, राम सुमिरि पिंजरा सझिरे ॥2॥
173
माधो जी कहा करुं या मन कौ ।
मन मैमत नहीं बस मेरौ बरजत हार्‌यौ दिन कौ ॥टेक॥
स्वांति प्रमोधि लै घरि आंऊं धीर पकरि बैठाऊं ।
पीछै हीतै मतौ उपावै बहुरि न इहि घरि आऊं ॥1।
अम्रत झांडि बिषै क्यूं ध्यावै, करत आप मनि मायौं ।
कहै सुनै की कछू न मानै अनेक बार समझइयो ॥2॥
कब लग तंत रहूं या मनकै जतन कीया नहीं जाई ।
या अरदास करै जन नामौं, सुनि लीज्यौं राम राई ॥3॥
174
रुंडा राम जीसूं रंग लगाया रे । सहजि रंग रंग आया रे ॥टेक॥
ररै ममै की भांति लिषाई । हरि रंग में रैंणी रचि आई ॥1॥
प्रेमप्रीति का बेगर दीया । हरि रंग मैं मेरा मन रंगि लीया ॥2॥
नामदेव कहै मैं हरि गुण गांऊं । भौ जल मांहि बहौरि नहीं आऊं ॥3॥
175
रसना रंगी लै हरि नाम । लै हरि नाम सरै सब कांम ॥टेक॥
रसना है तूं बकबादणीं । राम सुन रै क्यों पापणी ॥1॥
रसना तौ पै मांगू दान । राम छांडि मति सुमरै आंन ॥2॥
जप तप तीरथ कौणे काम । नामदेव कहै मोंहि तारैगो राम ॥3॥
176
हरि बिन कौन सहाइ करैगो ।
जौ ऐसौ औसर बिसरैगो, तौ मरकट कौ औतार धरैगो ॥टेक॥
करम डोरि बाजीगर कै बसि, नाचत घरि घरि बार फिरैगौ ।
ले लुकटी तौहि त्रास दिषावै, जन जन कै तूं पाइ परैगौ ॥1॥
जूं हमाल सिरि बोझ बहत है लालच कै सांगि लागि मरैगौ ।
ज्यूं कुलाल चक्री कूं फेरै ऐसे तूं कई बार फिरैगौ ॥2॥
भजि भगवंत मुक्ति कै दाता, रामा कहया कछु ना बिगररैगौ ।
नांव प्रताप राषि उर अंतर, नामदेव सरणै उबरैगौ ॥3॥ 177
जागौ न बैरागी जोगी । यही अनोपमि बाणी जी ।
झिलिमिलि झिलिमिलि होइ निरंतर, सो गति बिरलौ जाणी जी ॥टेक॥
राग बैराग म्हारै मंडल चूवै, कारण क्या भीजै जी ।
निस अधियारा भौ भागा, सुनि मैं सूता जागूं जी ॥1॥
नारि न सारि तांत्य नहीं तूंबा, पत्र पवन न पाणी जी ।
एकै आसन दोइ जन बैठा, रावल नैरौ हिताणी जी ॥2॥
मनकरि हीरा तन करि कंथा, जम मनी परि जागूं जी ।
भणत नामदेव अनहद जाचूं, बैकूंथा भिष्या मांगू जी ॥3॥
178
सहज बोलणें बोल बोलीजै । पै अनुभौ बीना न नीपजै ॥टेक॥
राजहंस चाली कोण सीकवीला । सांगई मोरुला कवणै नाचविला ॥1॥
चंदन शीतल कोणै केला । पै लासी थाना डीट कोणै केला ॥2॥
पहुप बास कोणै दीधली परिमला । सांगी माणिकास कोणे दीधली कीला ॥3॥
सुरै अथी कोकीला पै सीत वीना नई वैर साला ॥4॥
अमृतास कोणै दीघलै गोडी । जिहा नींबंडी बलतीस बोबडी ॥5॥
नामदेव भणै संत संगती फडी । मैं कैसो चरणा निवडी ॥6॥
179
नको नको रे संसार महा जड । छांडी परपंच माहा कड ॥टेक॥
भला भुया चौया भांडई । तामई पांचई सई भांडई ॥1॥
पांच महद्‌भुत गुण त्रीवीधा । तार्मे भीन्न प्रकृती अषटधा ॥2॥
नामदेव भणै वैणी माया । चौर्‌यासी लख भर माया ॥3॥
180
जपी राम नाम नृ लै उरी । जीणों चरण आहिल्या उधरी ॥टेक॥
राजनाम मेरे हिरदै लखी । रामबिना सब फोकट देखी ॥1॥
जे बोलीये तो कहिये राम । अनेक बचन सों नाहीं काम ॥2॥
नामा भणैं मेरे यही नाउं । राम नाउं की मैं बलि जाउं ॥3॥
181
राजनाम नीसाण बागा । ताका मरम को जाणै भागा ॥टेक॥
बेद विवर्जितो, भेद विवर्जिती । ज्ञान विवर्जित शून्यं ।
जोग विवर्जिति जुगती विवर्जिति । ताहा नहीं पाप पुण्यं ॥1॥
सोंग विवर्जित भेख विवर्जित । डिंभ विवर्जित लीला ।
कहे नामदेव आपहा आप ही । व्याप्य सरीर सकला ॥2॥
182
हीन दीन जात मोरी पंढरी के राया ।
ऐसा तुमने नामा दरजी कायक बनाया ॥1॥
टाल बिना लेकर नामा राऊल में गाया ।
पूजा करते ब्रह्मन उनैन बाहेर ढकाया ॥2॥
देवल के पिछे नामा अल्लक पुकारे ।
जिदर जिदर नामा उदर देऊलहिं फिरे ॥3॥
नाना बर्ण गवा उनका एक बर्ण दूध ।
तुम कहां के ब्रह्मन हम कहां के सूद ॥4॥
मन मेरी सुई तनो मेरा धागा ।
खेचरजी कें चरण पर नामा सिंपी लागा ॥5॥
183
हम तो भूले ठाकुर जानें । तुम कौ गाई झूट दिवाने ॥1॥
नाला अप आप सागर हुवा । काहे के कारण रोता है कुवा ॥2॥
चंदन के साती लिंब हुवा चंदन । क्यौं कर रोवे देखो ए हिंगन ॥3॥
गुरु की मेहेर से नामा भये साधु । देखत रोने लगे जन हे भोंदु ॥4॥
184
राम विठ्ठला । हम तुमारे सेवक ॥1॥
बालक बेला माई विठ्ठल बाप विठ्ठल । जाती पाती गुलगोत विठ्ठस (ल) ॥2॥
ग्यान विठ्ठल ध्यान विठठल । नामा का स्वामी प्राण विठठल ॥3॥
185
भले बिराजे लंबकनाथ ॥धृ0॥
धरणी पाय स्वर्ग लोक माथ । योजन भर के हाथ ॥1॥
सिव सनकादीक पार न पावे । अनगन सखा विराजत साथ ॥2॥
नामदेव के आपही स्वामी । कीजे मोहि सनाथ ॥3॥
186
रामनाम बीन और नही दूजा । कृष्णदेव की करी पूजा ॥1॥
राम ही माई रामही बाप । राम बिना कुणा ठाई पाप ॥2॥
संपत्ती विपत्ती रामही होई । राम बिना कुण तारी हे मोही ॥3॥
भणत नामा अमृत सार । सुमरी सुमरी उतरे पार ॥4॥
187
पंढरीनाथ विठाई बतावो मुजे पंढरीनाथ विठाई ॥धृ0॥
मायबाप के सेवा करीये पुंडलीक भक्त सवाई ।
वैकुंठ से विष्णु लाये खडे करकर बतलाई ॥1॥
चन्द्रभागा बालबंट पर कबिरा धूम चलाई ।
साधुसंत की हो गई गर्दी भजन कुटाई खुब खाई ॥2॥
त्रिगुणा में रेनु बजावे सागर का जबाई ।
दही दूध की हंडी फुट गई मर मर मुध‌या पाई ॥3॥
नामदेव देके गुरु शिखावें खेचरी मुद्रा गाई ।
कृष्ण जी की बार बार गावै हरिनाम बढाई ॥4॥
188
मै को माधव मलमूत्र धारी । मै कहां जानो सेवा तुम्हारी ॥1॥
तुम्हरि घर को भांडवी दावत । तुम्हारे घरको आखि कलावत ॥2॥
नामदेव कहे देव नीके देवा । सुर नर फुनीग तुम्हारी सेवा ॥3॥
189
तुम बिनु घरि येक रहूं नहि न्यारा । सुन यह केसव नियम हमारा ॥
जहाँ तुम गीरीवर ताहां हम मोरा । जहाँ तुम चंदा तहां मैं चकोरा ॥1॥
जहाँ तुम तरुवर तहां मैं पछी । जहाँ तुम सरोवर तहां मैं मच्छी ॥2॥
जहाँ तुम दिवा तहां मैं बत्ती । जहाँ तुम पंथी तहां मैं साथी ॥3॥
जहाँ तुम शिव तहां मैं बेलपूजा । नामदेव कहे भाव नहीं दूजा ॥4॥
190
सावध सावध भज लेरे राजा । नहीं आवे ऐसी घडी जू ॥धृ0॥
उत्तम नरतनु पाया रे भाई । गाफल क्यों हुवा दिवाने जू ॥1॥
जिन्ने जन्म डारा है तुजकूं । विसर गया उनका ग्यान जू ॥2॥
फिर पस्तायेगा दगा पायेगा । निकल जायगा आवसान जू ॥3॥
क्या करना सो आजि करले । फिर नहिं ऐसी जोडी जू ॥4॥
हंस जायगा पिंजरा पडेगा । तुज कैसा भुल पडी जू ॥5॥
सुन्ने का मन्दिर मेहेल बनाया । धन संपत नहिं तेरी जू ॥6॥
यामै न और जोरु लडके । सुखके खातर सोर जू ॥7॥
अकेले आना अकेले जाना । सब झुटी माया पसरी जू ॥8॥
लख चौर्‍यासी का फेरा आवेगा । तब चुपी बैठे बंदे जू ॥9॥
फिरतां फिरतां जीव रमता है बाबा । कोन रखे तेरे तन कूं जू ॥10॥
जिस माया उदरी जन्म लियेगा । तेरे संगत दुख उनकू जू ॥11॥
गरमी की यातना सुनले रे भाई । नवमास बंधन डारे जू ॥12॥
नहीं जगा हलने चलने कू बाबा । छडनिकु कोई नहीं आवे जू ॥13॥
आग लगी क्या देख न आंधे । काय के खातर सोया जू ॥14॥
ऐसी बात सुन के नामा सावध हुवा । गुरुके पाव मिठी डारी ॥15॥
मैं आनाथ दुबले शरण सये तुजकू । आब जो मेरी लाज राखी जू ॥16॥
191
नामा तुं हि झूठा रे । तेरा पंथ झूठा रे ।
अल्लाहि अलम का साईं । सोहि गुप्त चहरा रै ॥1॥
मुसलमीन तो हंबी जाणी । नहीं राम कु तोली ।
पांच बखत निमाजु गुजारी । मस्जित क्यूं नहीं बोली ॥2॥
वाच्छाव तू ही तू दीवाना रे । तेरा तू हिं दीवाना रे ।
गाई की तो हंबी जाणी । खेती वीराणा खाती ।
एक पाव तो छीन लिया है । तीन पाव पर चल जाती ॥3॥
नामा तू हि बकरी काटी । मृगी काटी हलाल कीया कहता है ।
मुरगी में सो अंडा निकला । हलाल कैसा होता है ॥4॥
वाच्छाव बाबा आदम हंबा जाणें । ढबला नंदी आवे ।
सीरा लसेट का बेटा मारे । हराम खाना खावे ॥5॥ नामा तू हि झूठा रे ।
उन ने मारी उन ने तारा । उनने किया उत्धारा ।
मुवा पोगंडा आब जीवावै । ऐसा राम हमारा पाच्छा ॥6॥
दशरथ को दोनो बेटे, राम लछीमन भाई ।
डेरा छांड कर जंगल जावे । जोरु अपनी गमाई ॥7॥
नामा तू हि जल ऊपर, फत्तर तारी, आहिल्या नारि उत्धारी ।
रावण मारा विभिषण थापा लंका बक्से झौरी ॥8॥ पात्छा तूं ॥
गोऊ बछरा दोनऊं काटे नामा आगे डारे ।
नामदेव ने हाथ लगाया, बछरा पीवन लागे ॥9॥
अबतो भली बनी है जी, सबका धनी रामधनी है जी ।
नामा वाच्याव सहज मिलै, सांचा झगडा उनका ॥
ऊंचानीचा कर कर देख्यो, सोही ऊंचानीचा ॥10॥

केवल घुमान प्रति में प्राप्त होनेवाले पद

192
माधौ कैसे कीजै जोग ।
करत जोग बहुत कठिनाई तजि न सकौं या भोग ॥टेक॥
नहीं मेरे रहणीं नहीं मेरे करणीं, बंध्यौ पंच बसि पोष ॥1॥
नहीं मेरे ग्यान नहीं मेरे ध्यांना, व्यापै हरि षरसोक ॥2॥
मैं अनाथ सुकृत हीनौं, तुम्हथै पर्‌यौ बियोग ॥3॥
भणत नामदेव हरि सरणिं राषियौ, नहीं तौ हंसि हैं लोग ॥4॥
193
ताहि गावै दास नामा । संत जननि के पुरवै कामा ॥टेक॥
असपति नामदेव तमकि बुलाइया । बेगि पलींग ले आव रे ।
सवरि सपेती गलौ गीदवा । दर हालै लै आवरे ॥1॥
अंबरीक प्रहिलाद परीछत । जस गावै प्रभु तेरा ।
सुंदर स्वामि कमल दल लोचन । प्राण जीवन धर मोरा ॥2॥
अपनै पन कौ दीन दानं । दोऊ सनक जनावै ।
भगत जनन कौं ज्यों दामोदर । पुनरपि जनमि न आवै ॥3॥
त्रिभुवन धणी सकल परिपूरण । जस भरि नामदेव गावै ।
सूकी सेज जलहिं थै निकसी । ले दीवानि पहुंचावै ॥4॥
194
सुणि भई महिमा नाम तणीं । मारहा सतगुर पासै जौ मैं सुणीं ॥टेक॥
कोटि कोटि बार जो पढिये । सकल सास्त्र कौ लीजै भेद ।
पुरांण अठारह कौ त जोइ । रांमनाम समि तुलै न कोइ ॥1॥
कोटि कोटि कूप षणावै बाइ । कोटि कोटि कन्यां दे प्रणाइ ।
कोटि कोटि बार दीजै जागि । तुलै न राम सहस्त्र मैं भागि ॥2॥
बिस्व सगली जौ दीजै दानं । कोटि कोटि तीरथ कीजै अस्नांन ।
कोटि कोटि जप तप संधियान । तऊ न आवै नांम समान ॥3॥
गन गनिका गोतम बधु नारी । नृमल नांम एहौ छौ हरी ।
पतित अजामेल सरणै गयौ । भाव कुभाव जिनि हरि नाम लयौ ॥4॥
मुष नारद प्रहिलाद अभ्यास । सुमरयौ ध्रू सतिकरि विस्वास ।
तिनके हरि काटे भवफंद । ते इम चलै रब चंद ॥5॥
हिरदै सति करि सुमरयौ राम । आन धरम भब तजि बेकाम ।
भणत नामदेव हरि सरणां । आवा भेटि मरणां ॥6॥
195
जाबा न देख्यूं हो नर हरी ।मो नृधन कौ धन नरहरी ॥टेक॥
आगल थयौ अगोचर थाइसि । मारहारि दयाथकौं हो नरहरि ॥1॥
तीन लोक मैं कहीं न समाणौं । संतनि हिरदै समौं हो नरहरी ॥2॥
नामदेव कहै मैं सेवग तेरा । आवा गवण निवारि हो नर हरी ॥3॥
196
पायौ मैं राम संजीवनि मूरी । गुर मिल्यौ बैद बिथा गई दूरी ॥
पढि पुरांन पंडित बौराना । भ्रम क्रम संसार भुलानां ॥1॥
आन देव सब भ्रमकी पूजा । देह घरे कौ धरम न दूजा ॥2॥
फुनि मुनि वरनि धर्म मति चोषी । पीवत नांमदेव भये संतोषी ॥3॥
197
मलै न लाछै पारमलो परमलीउ बठोरी बाई ॥
आवत किनै न पेखिउ कवनै जानै री बाई ॥
कउणु कहै किणि बूझिऐ रमईआ आकुल री बाई ॥
जिंउ आकासै पंखिअसे खोज निरखिउ न जाई ॥
जिंउ जल माझै माछलो मारगु पेखणे न जाई ॥
जिंउ आकासै घडुअलो मृग तृसना भरिआ ॥
नामेचे सुआमी बीठलो, जिनि तीनै जरिआ ॥
198
जब देखा तब गावा । तउ जन धीरजु पावा ॥
नादि समाइलो रे सतिगुर भेटिले देवा ॥
जह झिलिमिलि कारु दिसंता ॥
तह अनहद सबद बजंता ॥
जोति जोति समानी । मै गुरपरसादी जानी ॥
रतनकमल कोठरी । चमकार बिजुल तही ॥
नैरै नाही दूरि । निज आतमै रहिआ भरपूरि ॥
जह अनहत सूर उजारा । तह दीपक जलै छंछारा ॥
गुर परसादी जानिआ । जतु नामा सहज समानिआ ॥
199
दस बैरागनि मोहि बसि कीनी पंचहु का मिटनावऊ ॥
सतरि दोई भरे अम्रितसरी बिखु कऊ मारि कढावऊ ॥
पाछै बहुरि न आवनु पावऊ ॥
अंम्रितबाणी घट ते ऊचरऊ आतमकऊ समझावऊ ॥
बजर कुठारु मोहि है छीना करि मिनती लगि पावऊ ॥
संतनकु हम उलटे सेवक भगतन ते डर पावऊ ॥
इह संसार ते तबही छूटऊ जऊ माइआ नह लपटावऊ ॥
माइआ नामु गरभ जोनिका तिह तजि हरसनु पावऊ ॥
इतुकरि भगति करहि जो जन तिन भऊ सगल चुकाइये ॥
कहत नामदेऊ बाहरि किआ भरमहु इह संजम हरि पाइये ॥
200
मारवाडि जैसे नीरु बालहा बेलि बालहा करहला ॥
जिउ कुरंक निसिनादु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ ॥
तेरा नामु रुडो, रुपु रुडो, अंतिरंग रुडो मेरो रामईआ ॥
जिउ धरणी कऊ इंद्र बालहा कुसम बासु जैसे भवरला ॥
जिऊ कोकिल कऊ अंबु बालहा तिऊ मेरै मनीं रामईआ ॥
चकवी कऊ जैसे सुरु बालहा मानसरोवर-हंसुला ॥
जिऊं तरुणी कऊ कंतु बालहा तिऊ मेरे मनीं रामईआ ॥
बारिक कऊ जैसे खीरु बालहा चात्रिक मुख जैसे जलधरा ॥
मछुली कऊ जैसे नीरु बालहा तिऊ मेरे मनीं रामईआ ॥
साधिक-सिद्ध सगल मुनि चाहहि बिरलो काहू डीठुला ॥
सगल भवन तेरे नामु बालहा तिऊ नामे मनि बीठला ॥
201
पहिल पुरिए पुंडरक बना । ताचे हंसा सगले जना ॥
क्रिसना ते जानऊं हरि । हरि नांचंती नाचना ॥
पहिल पुरसा बिरा । अथोन पुरसा दमरा । असगा असउसगा ॥
हरिका बागरा नाचै पिंधी महीसागरा । नाचंती गोपी जंना ॥
नइआ ते बैरे कंना । तरकुनचा । भ्रमीआचा । केसवा बचउनी
अइए, मइए, एक आन जीऊ । पिंधी उमकले संसारा ॥
भ्रमी भ्रमी आए तुमचे दुआरा । तू कुनुरे । मै जी नामा ॥
आला ते निवारणा जम कारणा ॥
202
सफल जनमु मोकउ गुर कीना । दुख बिसारि सुख अंतरि लीना ॥
गिआन अंजनु मोकउ गुर दीना । राम नाम बिनु जीवनु मन हीना ॥
नामदेइ सिमरनु करि जाना । जगजीवन सीऊ जीऊ समाना ॥
203
मोकऊ तारिले रामा तारिले ॥
मै अजानु जनु तरिबे न जानऊ बाप बिठुला बाह दे ॥
नर ते सुर होइ जात निमख मे सतिगुर बुधि सिखलाई ॥
नर ते उपनि सुरग कऊ जीतिऊ सो अवखध मै पाई ॥
जहां जहां धूअ नारदु टेकै नैकु टिकावहु मोहि ॥
तेरे नाम अविलंबि बहुतु जन उधरे नामे की निज मति एह ॥
204
हरि हरि करत मिटे सभि भरमा । हरि के नामु ले ऊतम धरमा ॥
हरि हरि करत जाति कुल हरि । सो हरि अंधुले की लाकरी ॥
हरए नमस्ते हरए नमह । हरि हरि करत नहीं दुखु जमह ॥
हरि हरनाखस हरे परान । अजैमल किऊ बैकुंठ हि थान ॥
सूआ पढावत गनिका तरी । सो हरि नैनहु की पूतरी ॥
हरि हरि करत पूतना तरी । बाल घातनी कपटहि मरी ॥
सिमरन द्रौपत सुत ऊधरी । गऊतम सती सिला निसतरी ॥
केसी कंस मथनु जिनि कीआ । जीअ दानु काली कऊ दीआ ॥
प्रणवै नामा ऐसो हरि । जासु जपत भै अपदा टरी ॥
205
भैरऊ भूत सीतला धावै । खर बाहन ऊहु, छार उडावै ॥
हऊ तऊ एक रमईआ लेअऊ । आन देव बदलावनि देहऊ ॥
सिव सिव करते जो नरु धिआवै । बरद चढै डऊरु डमकावै ॥
महामाई की पूजा करै । नर सो नारि होइ अउतरै ॥
तू कहिअत ही आदि भवानी । मुकति की बिरिआ कहा छपानी ॥
गुरमति राम नाम रहु मीता । प्रणवै नामा इऊ कहे गीता ॥
206
आजु नामें बीठुला देखिआ मूरख को समझाऊ रे ॥
पांडे तुमरी गाइत्री लोधे का खेत खाती थी ।
लैकरि ठेगा तोरी लांगत लांगत जाती थी ॥
पांडे तुमरा महादेऊ धऊले बलद चढिआ आवत देखिआ था ।
मोदी के घर खाणा पाका वाका लडका मारिआ था ॥
पांडे तुमरा रांमचंदु सो भी आवतु देखिआ था ।
रावन सेती सरबर होइ घरकी जोइ गवाई थी ॥
हिंदू अंना तुरकू काणा दोहां ते गिआना सिआणा ॥
हिंदू पूजै देहुरा मुसलमाणु मसीत ॥
नामें सोई सेविआ जह देहुरा न मसीत ॥
207
माइ न होती बापु न होता करमु न होती काइआ ।
हम नहि होते तुम नहि होते कवनु कहाते आइआ ॥
राम कोइ न किसही केरा । जैसे तरवर पंखि बसेरा ॥
चंदु न होता सुरु न होता पानी पवनु मिलाइआ ।
सासत्र न होता बेदु न होता करमु कहां ते आइआ ॥
खेचर भूचर तुलसी माला गुर परसादी पाइआ ।
नामा प्रणवै परमततु है सतिगुर होइ लखाइआ ॥
208
धनि धनिउ राम बेनु बाजै । मधुर मधुर धुनि अनहत गाजै ॥
धनि धनि मेघा रोमावली । धनि धनि क्रिसन कांबली ॥
धनि धनि तूं माता देवकी । जिह ग्रिह रमईआ कवलापती ॥
धनि धनि बनखंड बिंद्रावना । जह बोले श्रीनाराइना ॥
बेनु बजावै गोधनु चरै । नामे का सुआमी आनंदु करै ॥
209
चारि मुकति चारै सिधि मिलीकै दूलह प्रभु की सरनि परिऊ ।
मुकति भइउ चहू जुग जानिउ जसु कीरति माथै छत्र धरिऊ ॥
राजाराम जपत को को न तरिउ गुर उपदेसि साध की संगति ।
भगतु भगतु ताको नामु परिऊ ॥
संख चक्र माला तिलकु बिराजित देखि प्रतापु जमु डरिऊ ।
निरभऊ भए राम बल गरजित जनम मरन संताप हिरिऊ ॥
अंबरीक कऊ दीउ अभैपद राजु भभीखन अधिक करिऊ ।
नऊनिधि ठाकुई दई सुदामै ध्रुअ अचलु अबहू न टरिऊ ॥
भगत हेति मारिउ हरनाखसु नरसिंह रुप होइ देह धरिऊ ।
नामा कहै भगति बीस केसव अजहू बलि के दुआर खरो ॥
210
रे जिहबा करऊ सत खंड । जासि न ऊचरसि श्रीगोविंद ॥
रंगिले जिह्रा हरि के नाइ । सुरंग रंगिले हरि धिआइ ॥
मिथिआ जिह्रा अवरे काम । निरबाणु पदु इकु हरिको नाम ॥
असंख कोटे अन पूजा करी । एक न पूजसि नामै हरि ॥
प्रणवै नामदेऊ इहु करणा । अनंत रुप तेरे नाराइणा ॥
211
दूध कठोरै गडवै पानी । कपिला गाइ नामै दुहिआनी ॥
दूधु पीउ गोबिंदे राइ । दूध पीउ मेरो मनु पतिआइ ॥
नाहीं त घर को बापु रिसाइ ॥ रहाऊ ॥
सोइन कटोरी अंम्रित भरी । लै नामै हरि आगै धरी ॥
एकु भगतु मेरे हिरदै बसै । नामे देखी नराइनु हसै ॥
दूधु पीजाइ भगतु धरि गइआ । नामें हरि का दरसनु भइआ ॥
212
मै बऊरी मेरा रामु भतारु । रचि रचि ताकऊ करउं सिंगारु ॥
भले निंदऊ भले विंदऊ लोगू । तनु मनु राम पिआरे जोगू ॥
बादुविबादु काहू सिऊ न कीजै । रसना रामु रसाइनु पीजै ॥
अब जीअ जानि ऐसी बनि आई । मिलऊ गुपाल नीसानु बजाई ॥
असतुति निंदा नरु कोई । नामें श्रीरंगु भेटले सोई ॥
213
कबहू खीरि खांड घीऊ न भावै । कबहू घर घर टूक मगावै ॥
कबहू कूरनु चने बिनावै । जिऊ रामु राखै तिऊ रहिऐ रे भाई ॥
हरिकी महिमा किछु कथनु न जाई ॥
कबहू तुरे तुरंग नचावै । कबहू पाइ पनहीउ न पावै ॥
कबहू खाट सुपेदी सुवावै । कबहू भूमि पैआरु न पावै ॥
भनति नामदेऊ इकु नामु निसतारै । जिह गुरु मिलै तिह पारि ऊतारै ॥
214
हसत खेळत तेरे देहुरे आइआ । भगति करत नामा पकरि उठाइआ ॥
हीनडी जात मेरी जादभ राइआ । छीपे के जनमि काहे कऊ आइआ ॥
लै कमली चलीउ पलटाइ । देहुरै पाछै बैठा जाई ॥
जिऊ जिऊ नामा हरि गुण ऊचरै । भगत जनां कऊ देहुरा फिरै ॥
215
घर की नारि तिआगै अंधा । परनारी सिऊ घालै धंधा ॥
जैसे सिंबलु देखि सूवा बिगसाना । अंतकी बार मूआ लपटाना ॥
पापी का घरु आगने माहि । जलत रहै मिटवै कब नाहि ॥
हरि की भगति न देखै जाइ । मारगु छोडि अमारगि पाइ ॥
सूवहु भूला आवै जाइ । अम्रित डारि लादि बिखु खाइ ॥
जिऊ वेस्वावे परै आखारा । कापरु पहिरि करहि सिंगारा ॥
पुरे ताल निहाले सास । वाके गले जमका है फास ॥
जाके मसतकि लिखिउ करमा । सो भजि परि है गुरकी सरना ॥
कहत नामदेऊ इहु बीचारु । इन बिधि संतहु ऊतरहु पारि ॥
216
सुलतानु पूछै सुनु बे नामा । देखऊ राम तुमारे कामा ॥
नामा सुलताने बाधिला । देखऊ तेरा हरि बीठुला ॥
बिसमिलि गऊ देहु जीवाइ । ना तरु गरदनि मारऊ ठांइ ॥
बादिसाह ऐसी किऊ होइ । बिसमिलि कीआ न जीवै कोइ ॥
मेरा किआ कछू न होइ । करिहै रामु होइ है सोइ ॥
बादिसाहु चढीउ अहंकारि । गज हसती दीनो चमकारि ॥
रुदनु करै नामे की माइ । छोडि राम की न भजहि खुदाइ ॥
न हुऊ तेरा पूंगडा न तू मेरी माइ । पिंडु पडै तऊ हरिगुन गाइ ॥
करै गजिंदु सुंड की चोट । नामा ऊबरै हरिकी ओट ॥
काजी मुलां करहि सलामु । इनि हिंदू मेरा मलिआ मानु ॥
बादिसाह बेनती सुनेहु । नामे सर भरि सोना लेहु ॥
मालु लेऊ तऊ दोजकि परऊ । दीनु छोडि दुनिआ कऊ मरऊ ॥
पावहु बेडी हाथहु ताल । नामा गावै गुन गोपाल ॥
गंग जमुन जऊ ऊलटी बहै । तऊ नामा हरि करता रहै ॥
सात घडी जब बीती सुणी । अजहु न आइऊ त्रिभवण धणी ॥
पाखंतण बाज बजाइला । गरुड चढे गोबिंद आइला ॥
अपने भगत परि की प्रतिपाल । गरुड चढे आए गोपाल ॥
कहहि त धरणि इकोडी करऊ । कहहि त लेकरि ऊपरि धरऊ ॥
कहहि त मुइ गऊ देऊ जीआइ । सभु कोई देखै पतिआइ ॥
नामा प्रणवै सेलम सेल । गऊ दुहाई बछरा मेलि ॥
दूधहि दुहि जब मटुकी भरी । ले बादिसाह के आगे धरी ॥
बादिसाहु महल महि जाइ । अऊघट कीं घट लागी आइ ॥
काजी मुलां बिनती फुरमाइ । बखसी हिंदू मै तेरी गाइ ॥
नामा कहै सुनहु बादिसाह । इहु पतिआ मुझै दिखाइ ॥
इस पतिआ का इहै परवानु । साचि सील चालहु सुलितान ॥
नामदेऊ सभ रहिआ समाइ । मिलि हिंदू सभ नामे पहि जाइ ॥
नामे की कीरति रही संसारि । भगति जना ले उधरिआ पारि ॥
सगल कलेस निंदक भइआ खेदु । नामें नाराइन नाहीं भेदु ॥
217
जऊ गुरदेउ त मिलै मुरारि । जऊ गुरदेउ त ऊतरै पारि ॥
जऊ गुरदेउ त वैकुंठ तरै । जऊ गुरदेउ त जीवत भरै ॥
सति सति सति सति सतिगुर देव । झूठु झूठु झूठु झूठु आन सभ सेव ॥
जऊ गुरदेउ त नामु द्रिडावै । जऊ गुरदेउ त दह दिस धावै ॥
जऊ गुरदेउ पंच ते दूरि । जऊ गुरदेउ न मारिबे झूरि ॥
जऊ गूरदेउ त अम्रित बानीं । जऊ गुरदेउ त अकथ कहानीं ॥
जऊ गूरदेउ त अम्रित देह । जऊ गुरदेउ नाम जपी लेहि ॥
जऊ गूरदेउ भवन त्रै सूझै । जऊ गुरदेउ ऊच पद बूझै ॥
जऊ गूरदेउ त सीसु आकासि । जऊ गूरदेउ सदा सावासि ॥
जऊ गूरदेउ सदा बैरागी । जऊ गूरदेउ पर निंदा तिआगी ॥
जऊ गूरदेउ बुरा भला एक । जऊ गूरदेउ लिलाट हि लेख ॥
जऊ गूरदेउ कंधु नही हिरै । जऊ गूरदेउ देहुरा फिरै ॥
जऊ गूरदेउ त छापरि छाईं । जऊ गूरदेउ सिहज निकसाई ॥
जऊ गूरदेउ त अठसठि नाइआ । जऊ गूरदेउ तनि चक्र लगाइआ ॥
जऊ गूरदेउ त दुआदस सेवा । जऊ गूरदेउ सभै बिखु मेवा ॥
जऊ गूरदेउ त संसा टूटै । जऊ गूरदेउ भऊजल तरै ।
जऊ गूरदेउ त जनमि न मरै ॥
जऊ गूरदेउ अठदस बिऊहार । जऊ गूरदेउ अठारह भार ॥
बिनु गुरदेउ अवर नहीं जाई । नामदेउ गुरकी सरणाई ॥
218
साहिबु संकटवै सेवकु भजै । चिरंकाल न जीवै दोऊ कुल लजै ॥
तेरी भगति न छोडऊ भाजै लोगु हसै । चरन-कमल मेरे हीअरे बसै ॥ रहाऊ ॥
जैसे अपने धनहि प्राना मरतु भांडै । तैसे संत जनां रामनामु न छांडै ॥
गंगा गइआ गोदावरी संसारके कामा । नाराइणु सुप्रसंन होइ त सेवकु नामा ॥
219
सहज अवलि घुंडी मणी गाडी चालती । पीछै तिनका लैकरि हांकती ॥
जैसे धनकत ध्रुठिटि हांकती । सरि धोवन चाली लाडुली ॥
धोबी धोवै बिरह बिराता । हरिचरन मेरा मनु राता ॥
भणति नामदेउ रमि रहिआ । अपने भगतपर करि दइआ ॥
220
दास अनिंन मेरो निज रुप ।
दरसन निमख ताप त्रयी मोचन परसत मुकति करत ग्रिह कूप ॥
मेरी बांधी भगतु छडावै बांधै भगतु न छूटै मोहि ।
एक समै मोकऊ गहि बांधै तऊ फुनि मो पै जबाबु न होइ ॥
मै गुन बंध सगल का जीवनि मेरी जीवनि मेरे दास ।
नामदेव जाके जीअ ऐसी तैसे ताकै प्रेम प्रगास ॥
221
अकुल पुरुख इकु चलितु उपाइआ । घटिघटि अंतरि ब्रहमु लुकाइआ ॥
जीअ की जोति न जाने कोई । तै मै किआ सु मालूमु होई ॥
जिऊ प्रगासिआ माटी कुंभऊ । आपही करता बीठलु देऊ ॥
जीअ का बंधनु करम बिआपै । जो किछु किआ सो आपै आपै ॥
प्रणवति नामदेऊ इहु जीऊ बितवै सु लहै । अमरु होइ सद आकुल रहै ॥

केवल सर्बगी में प्राप्त होनेवाले पद

222
येक बीठला सरणैं जा रे । जनमें बांधि काइ दौडा रे ॥टेक॥
तीरथैं तीरथैं काही डारे । लटक्यौं डोथा तूंबा रे ॥1॥
फोका दइया तुलसी बाहा रे । घूसरि षायद जोडा रे ॥2॥
नामदेव भणैं तू देव पहा रे । केसौ भगता चरिणीयां रे ॥3॥
223
पद नृषत किन जाइ रे दिना । हमप छिपानौ रे मना ॥टेक॥
जै तूं दरस्य करस्य घाई । तौ तूं निमससि ठाई कौंठाई रे मना ॥1॥
घट भरिलै उदीक चढोई । ऐसे तूं निहचल होई रे मना ॥2॥
नामा भणै सुष सुरगै नाहीं । सो सुष संतनि माही रे मना ॥3॥
224
कुनौ कृपा छल होइ सूं आवरी ।
बिघन व्याधी तेथै काल काई करी ॥टेक॥
एक बहबाला महापुरी बल सीया भीतरी ।
तहाँ जीवल हूँता तारु, तेन्है धरीला निजकरी ॥1॥
ऐक उदय सभूतिला तास दीया सनमुष भेटीला ।
नीधनिया धौरी सुधनवंत कैला ॥2॥
हे हरे दीपावली गुणी रेषिला ।
सुटत सुनौं श्रपै पारधी डंकिला ॥3॥
गाझचै पांणधी घडपाविंला ।
तहाम जीवल हूं तासीहूं । तेणें बाधनि रदाडिला ॥4॥
ऐसे अच्यत्र चरयूंत्र नटकलेवा देवा ।
बिष्नदास नामा बीनवै ह केसवा ॥5॥

अन्य स्त्रोतों से प्राप्त पद

225
भाई रे इन नयननि हरि पेषो ॥
हरी की भक्ति साधु की संगति सोई दिन धनि लेख्यो ।
चरन सोई जो नचत प्रेम सो, कर जो करै नित पूजा ॥
सीस सोई जो नवै साधु को, रसना और न दूजा ।
यह संसार हाट कौ लेखा, सब कोउ बनीजहिं आया ।
जिन जस लादा तिन तस पाया, मूरख मूल गवाया ॥
आतम राम देह धरि आयो, तामै हरि कौ देखौ ।
कहत नामदेव बलि बलि जैहो, हरि मनि और न लेखौ ॥
226
रुखडी न खाइयो स्वामी रुखडी न खाइयो ।
हाथ हमारे घिरत कटोरी, अपनी बांटा ले जाइयो ॥
दौडे दौडे जात स्वामी रोटणियां मुख मांहि ।
हम तौ दौंडे पहुँच न साकै, मेल लेहु गोसाइं ॥
घट घट वासी सर्व निवाई, पलमें भेष बनाया ।
कूकर ते ठाकूर भये प्रगटे नामदेव दरसन पाया ॥
227
अस मन लाव राम रसना । तेरो बहुरी न होय जरा मरना ॥1॥
जैसे मृगा नाद लव लावै । बान लगे वहि ध्यान लगावै ॥2॥
जैसे कीट भृङ मन दीन्ह । आपु सरीखे वा को कीन्ह ॥3॥
नामदेव भनै दासन दास । अब न तजौं हरि चरन निवास ॥4॥
228
मोर पिया बिलम्यो परदेस, होरी मैं का सौं खेलौं ।
घरी पहर मोहिं कल न परतु है, कहत न कोउ उपदेस ॥1॥
झरयो पात बन फूलन लाग्यो, मधुकर करत गुंजार ।
हाहा करौं कंथ घर नाहीं, के मोरी सुनै पुकार ॥2॥
जा दिन तें पिय गवन कियो है, सिंदुरा न पहिरौं मंग ।
पान फुलेल सबै सुख त्याग्यो, त्याग्यो, तेल न लावों अंग ॥3॥
निसु बासर मोहिं नींद न आवै, नैन रहे भरपूर ।
अति दारुन मोहिं सवति सतावै, पिय मारग बडि दूर ॥4॥
दामिनि दमकि घटा घहरानी, बिरह उठै घनघोर ।
चित चातृक है दादुर बोलै, वहि बन बोलत मोर ॥5॥
प्रीतम को पतियां लिखि भेजौं, प्रेम प्रीति मसि लाय ।
बेगि मिलो जन नामदेव को, जनम अकारथ जाय ॥6॥

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