Ahmad Nadeem Qasmi
अहमद नदीम क़ासमी

अहमद नदीम क़ासमी (20 नवम्बर 1916-10 जुलाई 2006) का जन्म सरगोधा (अब पाकिस्तान में) हुआ । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं: 'धड़कनें' (1962-जो बाद में 'रिमझिम' के नाम से प्रकाशित हुई), जलाल-ओ-जमाल, शोल-ए-गुल, दश्ते-वफ़ा, मुहीत ।

अहमद नदीम क़ासमी की रचनाएँ

ग़ज़लें अहमद नदीम क़ासमी

  • अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के
  • अजीब रंग तिरे हुस्न का लगाव में था
  • अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था
  • अपने माहौल से थे क़ैस के रिश्ते क्या क्या
  • अब तक तो नूर-ओ-निक़हत-ओ-रंग-ओ-सदा कहूँ
  • अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों की
  • इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़-ओ-समा दे दूँगा
  • इक सहमी सहमी सी आहट है, इक महका महका साया है
  • इंक़लाब अपना काम करके रहा
  • एजाज़ है ये तेरी परेशाँ-नज़री का
  • एहसास में फूल खिल रहे हैं
  • क़लम दिल में डुबोया जा रहा है
  • क्या भरोसा हो किसी हमदम का
  • क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकला
  • किस को क़ातिल मैं कहूं किस को मसीहा समझूं
  • कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा
  • खड़ा था कब से ज़मीं पीठ पर उठाए हुए
  • ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही
  • गुल तेरा रंग चुरा लाए हैं गुलज़ारों में
  • गो मेरे दिल के ज़ख़्म ज़ाती हैं
  • जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
  • जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया
  • जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम
  • जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ
  • ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है
  • जेहनों में ख़याल जल रहे हैं
  • जो लोग दुश्मन-ए-जाँ थे वही सहारे थे
  • तंग आ जाते हैं दरिया जो कुहिस्तानों में
  • तुझे इज़हार-ए-मुहब्बत से अगर नफ़रत है
  • तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ
  • तू जो बदला तो ज़माना भी बदल जाएगा
  • तू बिगड़ता भी है ख़ास अपने ही अंदाज़ के साथ
  • तेरी महफ़िल भी मुदावा नहीं तन्हाई का
  • दावा तो किया हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ का सब ने
  • दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे
  • दिलों से आरज़ू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ न गई
  • न वो सिन है फ़ुर्सत-ए-इश्क़ का
  • फ़ासले के मअ'नी का क्यूँ फ़रेब खाते हो
  • फिर भयानक तीरगी में आ गए
  • फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ
  • बारिश की रुत थी रात थी पहलू-ए-यार था
  • मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ
  • मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता
  • मैं कब से गोश-बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी
  • मैं किसी शख़्स से बेज़ार नहीं हो सकता
  • मैं वो शाएर हूँ जो शाहों का सना-ख़्वाँ न हुआ
  • मैं हूँ या तू है ख़ुद अपने से गुरेज़ाँ जैसे
  • यूँ तो पहने हुए पैराहन-ए-ख़ार आता हूँ
  • यूँ बे-कार न बैठो दिन भर यूँ पैहम आँसू न बहाओ
  • लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
  • लबों पे नर्म तबस्सुम रचा कि धुल जाएँ
  • वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे
  • शाम को सुबह-ए-चमन याद आई
  • शुऊर में कभी एहसास में बसाऊँ उसे
  • साँस लेना भी सज़ा लगता है
  • सूरज को निकलना है सो निकलेगा दोबारा
  • हम उन के नक़्श-ए-क़दम ही को जादा करते रहे
  • हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते
  • हम दिन के पयामी हैं मगर कुश्ता-ए-शब हैं
  • हमेशा ज़ुल्म के मंज़र हमें दिखाए गए
  • हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है
  • हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए
  • होता नहीं ज़ौक़-ए-ज़िंदगी कम