रसूल हमज़ातोव की कविता हिंदी में

Poetry of Rasool Hamzatov in Hindi

रसूल हमज़ातोव की कवितायों का अनुवाद फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

1. मैं तेरे सपने देखूं

बरख़ा बरसे छत्त पर, मैं तेरे सपने देखूं
बर्फ़ गिरे परबत पर, मैं तेरे सपने देखूं
सुबह की नील परी, मैं तेरे सपने देखूं
कोयल धूम मचाये, मैं तेरे सपने देखूं
आये और उड़ जाये, मैं तेरे सपने देखूं
बाग़ों में पत्ते महकें, मैं तेरे सपने देखूं
शबनम के मोती दहकें, मैं तेरे सपने देखूं
इस प्यार में कोई धोखा है
तू नार नहीं कुछ और है शै
वरना क्यों हर एक समय
मैं तेरे सपने देखूं

2. भाई

आज से बारह बरस पहले बड़ा भाई मिरा
सतालिनगराद की जंगाह में काम आया था
मेरी मां अब भी लिये फिरती है पहलू में ये ग़म
जब से अब तक है वह तन पे रिदा-ए-मातम
और उस दुख से मेरी आंख का गोशा तर है
अब मेरी उमर बड़े भाई से कुछ बढ़कर है

(रिदा-ए-मातम=शोक की चादर)

3. दाग़िसतानी ख़ातून और शायर बेटा

उसने जब बोलना न सीखा था
उसकी हर बात मैं समझती थी
अब वो शायर बना है नामे-ख़ुदा
लेकिन अफ़सोस कोई बात उसकी
मेरे पल्ले ज़रा नहीं पड़ती

4. ब-नोके-शमशीर

मेरे आबा के थे नामहरमे-तौको-ज़ंजीर
वो मज़ामी जो अदा करता है अब मेरा कल्म
नोके-शमशीर पे लिखते थे ब-नोके-शमशीर
रौशनाई से जो मैं करता हूं काग़ज़ पे रकम
संगो-सहरा पे वो करते थे लहू से तहरीर


(आबा=पुरखे, नामहरमे-तौको-ज़ंजीर=कैदियों के
गले में पड़ने वाली हँसली और बेड़ी से अनजान,
मज़ामी=विषय,, रौशनाई= स्याही, संगो-सहरा=
पत्थर और मारूथल)

5. आरज़ू

मुझे मोजज़ों पे यकीं नहीं मगर आरज़ू है कि जब कज़ा
मुझे बज़्मे-दहर से ले चले
तो फिर एक बार ये अज़न दे
कि लहद से लौट के आ सकूं
तिरे दर पे आ के सदा करूं
तुझे ग़म-गुसार की हो तलब तो तिरे हुज़ूर में जा रहूं
ये न हो तो सूए-रहे-अदम में फिर एक बार रवाना हूं

(मोजज़ों=करामातों, कज़ा=मौत, दहर=दुनिया, अज़न=
इजाज़त, लहद=कब्र, सूए-रहे-अदम=परलोक के रास्ते पर)

6. सालगिरह

शहर का जशने-सालगिरह है, शराब ला
मनसब ख़िताब रुतबा उनहें क्या नहीं मिला
बस नुकस है तो इतना कि मसदूह ने कोई
मिसरा कोई किताब के शायां नहीं लिखा


(मसदूह=जिसकी तारीफ़ की गई हो, शायां=योग्य)

7. एक चट्टान के लिए कतबा

जवांमर्दी उसी रिफ़अत पे पहुंची
जहां से बुज़दिली ने जस्त की थी

(कतबा=कब्र पर लगी पट्टी, रिफ़अत=ऊँचाई,
जस्त=छलांग मारना)

8. तीरगी जाल है

तीरगी जाल है और भाला है नूर
इक शिकारी है दिन, इक शिकारी है रात
जग समन्दर है जिसमें किनारे से दूर
मछलियों की तरह इबने-आदम की ज़ात
जग समन्दर है, साहल पे हैं माहीगीर
जाल थामे कोई, कोई भाला लिये
मेरी बारी कब आयेगी क्या जानिये
दिन के भाले से मुझको करेंगे शिकार
रात के जाल में या करेंगे असीर

(तीरग़ी=अंधेरा, माहीगीर=मछुआरे, असीर=कैदी)

9. नुसखा-ए-उलफ़त मेरा

गर किसी तौर हर इक उलफ़ते-जानां का ख़्याल
शे'र में ढल के सना-ए-रुख़े-जानाना बने
फिर तो यूं हो कि मेरे शेरो-सुख़न का दफ़तर
तूल में तूले-शबे-हजर का अफ़साना बने
है बहुत तिशना मगर नुसखा-ए-उलफ़त मेरा
इस सबब से कि हर इक लमहा-ए-फ़ुरस्त मेस
दिल ये कहता है कि हो कुर्बते जानां में बसर

10. फ़ंड के लिए सिफ़ारिस

फ़ंडवालों से गुज़ारिश है कि कुछ सदका-ए-ज़र
सायले-मुहव्वल-ए-बाला को मिले बारे-दिगर
पोच लिखते हैं जो वो लिखते हैं तसलीम मगर
उनकी औलाद व अज़्ज़ा को नहीं उसकी ख़बर
आल बेहूदा-नवीसां के लिए बाने-जूई
टालसटाय के घराने से अहम कम तो नहीं

(सदका-ए-ज़र=धन का दान, सायले-मुहव्वल-
ए-बाला=ज़रूरतमन्द, बारे-दिगर=दोबारा, पोच=
घटिया, अज़्ज़ा=संतान, बेहूदा-नवीसां=घटिया
लेखक, बाने-जूई=भूख का कारन)

11. हमने देखा है

हमने देखा है मयगुसारों को
पी के और जी के अख़िरश मरते
जो नहीं पीते मौत को उनसे
किसने देखा है दरगुज़र करते

12. मर्दे-दाना

मर्दे-दाना पी के अहमक से कभी बदतर हुआ
और कभी बरअक़्स इसके हुआ, अक़्सर हुआ

(मर्दे-दाना=बुद्धिमान आदमी, बरअक्स=उलट)

रसूल हमज़ातोव की कवितायों का पंजाबी अनुवाद

1. दाग़िस्तान

जित्थे वादियां धुन्द-धुन्दलियां,
रुक्ख सिंग जेहे बिन फलां,
उट्ठ दी पिट्ठ तों उच्चे परबत,
झर झर झरने वहन तहां,
एदां जिदां शेर दहाड़न,
पहाड़ी नदियां गरजदियां,
जल-झरने ने वांग अयालां,
पंखी-नैन जेहे सोत तहां ।
सिद्धियां सुक्खड़ चटानां विच्चों,
ज्युं राह पत्थरां 'चों निकलण
गीत गूंजदे टिल्ल्यां विचों
धूह लैंदे दिल इन्सानां दे ।

2. किन्ने मूढ़ ने पानी नदी पहाड़ी दे

किन्ने मूढ़ ने पानी नदी पहाड़ी दे
नमीयों बिनां चटानां एथे तिड़कदियां,
क्युं एने काहले उधर वहन्दे जांदे ओ,
बिनां तुहाडे जित्थे लहरां मचलदियां ?
बड़ी मुसीबत हैं तूं मेरे दिल पागल
प्यारे ने जो, प्यार उन्हां नूं नहीं करदा,
खिच्च्या जानैं तूं तां उधर ही सदा
जिधर कोई नैन ना तेरी राह तक्कदा ।

3. उकाब अते तारे नूं

नदियां अते चटानां उप्पर उच्चा उड्डन वाले
किहड़ै तेरा वंश उकाबा किस थां तों तूं आया ?

'अनेकां तेरे पुत्त-पोतरे मातभूमी लई मर मिटे
दिल उन्हां दा खंभ उन्हां दे
साडे विच्चों हर कोई ला के इस धरती ते आया ।'

दूर हनेरे अम्बर दे विच्च झिलमिल करदे तार्यो,
तुहाडा किहड़ा वंश ए दस्सो किस थां तों हो आए ?

'अनेकां तेरे वीर सूरमे रण खेतर जो रह गए
चमक उन्हां दी अक्ख दी लै के, हां बण रौशनी आए ।'

4. पहाड़ी उकाब

मेरी धरती ओतपोत है शकती शानो-शौकत नाल,
तर्हां तर्हां दे पंछी प्यारे, जिन्हां दे मधुर तराने ने,
उन्हां दे उत्ते उडदे रहन्दे पंछी देवत्यां वरगे,
उह उकाब, जिन्हां दे बारे बहुत गीत अफसाने ने ।

इसे लई कि उच्चे नभ विच, उन्हां दी मिलदी झलक रहे,
बने संतरी रहन, भ्यानक दुर-दिन जदों वी आउंदे ने ।
दूर, पहुंच तों बाहर चट्टानां, उच्चियां उच्चियां दिसन जो,
रहन लई उह, अम्बर छूंहदे, आल्हने उत्थे पाउंदे ने ।

कदे इकल्ला, बड़ी शान नाल, जदों उडारी भरदा ए,
खंभां नाल धुन्द चीर चीर के फिर उह अग्गे वधदा ए'
भीड़ कदे वी पै जावे जे, झुंड उन्हां दा बण के लशकर,
नीले सागर, महांसागर दे, उत्ते उत्ते उड्डदा ए ।

दूर, बहुत उचाईआं ते उह, धरत दे उत्ते उड्डदे ने,
बन के राखे एस धरत नूं, तेज़ नज़र नाल तक्कदे ने,
डूंघी भारी, सुर दी किलकारी, सुन के काले कां,
भज्ज जांदे ने डर के दूर, दिल धक्क धक्क उन्हां दे करदे ने ।

जिवें आपने बचपन विच्च मैं, चोटियां बरफां मढ़ियां नूं,
घंट्यां बद्धी वेंहदा सां, वेख अजे वी सकदा हां,
उत्थे आपने खंभ फैला के किदां उड्डन उकाब,
मजनूं जेहा मसत दीवाना हो अजे वी सकदा हां ।

दूर कदे पहाड़ां उत्तों आपनी नज़र दौड़ाउंदे ने,
सतैपी दे मैदानां विचों कदे उह उड्डदे जांदे ने ,
सभ तों वद्ध दलेर ते साहसी परबतवासी जो हुन्दे,
उह उकाब धरत मेरी दे, सभ थाईं अखवाउंदे ने ।

5. कैसपी दे कंढे ते

बरफ-सफेद सागर दीयो लहरो दस्सो तां ज़रा
किस बोली विच्च गल्ल करदियां, मैनूं दियो समझा ।

नाल चट्टानां तुसीं टकराके शोर मचायो एदां
पिंड दी मंडी दे विच रौला पैंदा रहन्दा जिद्दां ।

उत्थे वीहां भाशावां दा रोल घचोला चल्ले
अल्ल्हा वी चाहे तां उहदे पैंदा ना कुझ पल्ले ।

ज़रा ना गरजन होवे ऐसा कदे कदे दिन आवे
लहरां हौली वहन कि जानो घाह किते लहरावे ।

कदे कदे इह साह तुहाडे चल्लन तेज़ ते भारे गौरे
ज्युं पुत्तर दे गम विच सिसके मां लै लै हटकोरे ।

वारस आपना मर जान ते बुढ्ढा बाप भरे ज्युं आहां
वहन्दियां लहरां विच डोलदा, ज्युं घोड़ा लभ्भे राहां ।

छलछल करदियां कदे कदे तूं उच्चा शोर मचाउनैं
आपनी भाशा विच तूं सागर, दिल दी गल्ल सुणाउनैं ।

तेरे-मेरे दिल दी गहराई विच ए कोई बंधन
ताहीयों समझ जावां मैं तेरे सारे रूप जो बदलन ।

की कदे ना मेरे दिल विच खून उबाले खांदा
टकराके कौड़ियां जीवन-लहरां संग फिर फिरे पछतांदा ।

पर मगरों हौली हौली शांत तूं ही हो जावें
शकतीहीन हो ढालू तट्ट नूं तूंहीयों ना सहलावें ?

तेरी गहराई विच सागर तेरे राज़ छुपे ना होए ?
साडे दोहां दे सुख-दुक्ख दा रूप ना इको होए ?

पर वक्खरा इक, खास दर्द जो, मेरा, मैं सुणावां,
पी ना सक्कां सागर, खारा, जो मैं पीना चाहवां ।

6. हाजी-मुरात दा सिर

वढ्ढ्या प्या सिर वेख रिहा हां
लहू दियां नदियां वहन पईआं
वढ्ढो, मारो दा शोर मच्चे
किवें लोकी सोचन चैन दियां ।

तिक्खियां तेज़-धार तलवारां
उच्चियां-उच्चियां लहरावण
राहां टेढियां औझड़ उते
शेर-मुरीद गज्जदे जावन ।

लहू-गड़ुच्च सिर तों इह पुच्छ्या-
" किरपा कर के दस तां एह
सूरम्यां, सैं ग्या किस तर्हां
नाल तूं सत्त बेगान्यां दे ?"

" रक्खां भेद ना कदे लुका के
हाजी-मुरात दा सिर हां मैं
भटक्या सां तां वढ्ढ्या ग्या हां
एना दस रिहा हां मैं ।

राह गलत ते चल्ल्या सां मैं
मारिया होया घुमंड दा सां…"
भटक्या होया सिर देख रिहा सां
वढ्ढ्या प्या सी जो विचारा ।

पुरख पहाड़ां विच जो जंमदे
बेशक दूर दुराडे जाईए
होईए ज़िन्दा जां फिर मुर्दा
आखर मुड़ के एथे आईए ।

(हाजी-मुरात=दाग़िस्तानी सूरमा जो
वैरी नाल रल्या, जो उहदा सिर
वढ्ढ लै गए, पर दिल (धड़)
दाग़िस्तान ही रह ग्या ।)

7. तसादा दा कबरिसतान

सफ़ेद कफ़न नाल, हनेरे विच ढक्के,
प्यारे हमसाययो, कबरां विच हो दफ़न पए,
तुसीं ओ नेड़े, फिर की घर ना परतोगे
मुड़्या मैं घर, दूर दूर जा, किते किते ।

मेरे पिंड दे बेली बहुत ही घट्ट रहगे,
रिशतेदार हुन मेरे बाहले रहगे ना,
वड्डे वीर दी बेटी मेरी भतीजी वी,
सवागत करे, बुलाए चाचा कहके ना ।

हस्समुक्ख अल्लढ़ बच्चीए तेरे ते बीती की ?
लंघदे जांदे साल जिद्दां नदी वहे,
खतम होई पढ़ाई नाल दियां सखियां दी
पर तूं जित्थे एं ओथे कुझ ना कदी बचे ।

लग्गा मैनूं अजब, बेतुका बाहला ई,
एथे ना कोई जिय सभ सुन्नसान प्या,
ओथे जित्थे कबर ए मेरी बेली दी,
अचानक उहदा जुरना वाजा टुनक प्या ।

जिवें पुराने वेल्यां वांगूं ओदां ही,
खंजड़ी उहदे साथी दी वी गूंज पई,
मैनूं लग्गा जिद्दां किसे गुआंढी दी,
खुशी मनाउंदे पए ने उहदी शादी दी ।

नहीं, एथे जो रहन्दे शोर मचाउंदे नहीं,
कोई वी तां एथे दए जवाब ना,
कबरिसतान तसादा दा सुन्नसान ई,
अंतमघर ए इह मेरे पिंड वासियां दा ।

तूं वधदा जाएं तेरियां हद्दां फैल 'गियां,
तंग हुन्दा जांदा तेरा हर इक कोना ए,
है मैनूं पता कि इक दिन ऐसा आएगा,
जद आखर मैं वी एथे आ के सौना ए ।

लै जान राहां किते वी सानूं, आखर तां,
हशर ए सभ दा इको मिलदियां सभ इथे,
पर तसादा दे कुझ लोकां दियां कबरां,
नज़र ना आउंदियां मैनूं लभ्भ्यां वी किते ।

नौजवान वी, बुढ्ढे वीर सिपाही वी,
सौन हनेरी कबरीं घर तों दूर जा,
पता न्ही कित्थे हसन कित्थे महमूद ए,
पुत्त-पोतरे मोए किधरे दूर जा ।

तुसीं वीरनो कित्थे गए शहीद हो,
नाल तुहाडे मेल न्ही होना पता है इह,
पर तुहाडियां कबरां विच तसादा ए,
मिलदियां नहीयों दुखी करेंदा हाल इह ।

दूर किते जा गोली वज्जी सीने ते,
पिंडों दूर, ज़खमी हो मर गए किते,
कबरां तेरियां कबरिसतान तसादा दे,
फैलियां किन्नियां दूर दूर परे किते ।

ठंढियां थावां, हुन तां गर्म परदेसां ते,
वर्हदी अग्ग, जित्थे हिम-तुफान चले,
लोकी अउंदे लै के फुल्ल प्यारां दे,
शरधा वाले सीस, उह झुकान पए ।

8. सारस

कदे कदे लगदै उह सूरे,
रत्ती भों तों जो मुड़ ना आए,
मरे नहीं बण सारे सारस,
उड्डे गगनीं, उन्हां खंभ फैलाए ।

उन्हां ही दिनां तों, बीते युग्ग तों,
उड्डदे गगनीं, वाजां गूंजण,
की एसे कारन अक्खां चुप्प रहके,
भारे मन नाल नीला नभ तक्कन ।

अज्ज शाम ज्युं घिरन हनेरे,
धुन्द विच वेखां सारस उड्डदे,
फौज बना इन्सानां वांगूं,
ज्युं सन चलदे धरती उते ।

उड्डन, लंमियां मंज़लां तैय करदे,
ते ज्युं बोलन नांय किसे दे,
शायद एसे बोली दे नाल,
शबद असाडी बोली दे मिलदे ।

थक्के थक्के सारस उड्डदे जांदे,
धुन्द विच्च वी, जदों दिन ढलदा,
उन्हां दी तिकोन' च जो खाली थां ए,
मेरे लई ए मैनूं लग्गदा ।

सारस-दल नाल उड्ड जावांगा,
नीले-गगनीं, उह दिन आएगा,
धरत ते पिछे रह ग्यां नूं,
सारसां वांगूं मारांगा वाजां ।

9. खंजर अते कुमज़

इक गभ्भरू दर्ररे दे पिछे
रहन्दा सी परबत दे उत्ते
अंजीर दा रुक्ख ते दूजा खंजर
बस्स, इही सन उहदा कुल्ल ज़र ।

इक सी बक्करी उहदे कोल
रोज़ चरावे जा के बण
इक दिन किसे खान दी बेटी
वस्स गई आ के उहदे मन ।

उह गभ्भरू सी शेर स्याणा
डोले लई किहा खान नूं जा के
हस्स्या खान गभ्भरू दी सुन के
दिता जुआब साफ़ उलटा के ।

"इक रुक्ख ते खंजर दा मालक
जाह, मूंह धो रक्ख आपना जा के ।
कढ्ढ्या कर धार बक्करी दी
'राम नाल आपने घर जा के ।"

धी दित्ती उस खान ने उहनूं
कोल जेहदे सन ढेरां मोहरां ।
चरदियां रहन चरांदां अन्दर
भेड बक्करियां इज्जड़ ढेरां ।

ग़मां विच डुब्ब ग्या उह गभ्भरू
दिल दा चूरा चूरा होया ।
बिरह-तड़प विच तड़प के उहने
खंजर हत्थ विच चुक्क ल्या ।

पहलों उहने बक्करी वढ्ढी
वढ्ढ दित्ता फिर रुक्ख उह जा के ।
जेहनूं प्यार नाल सी लायआ
कीता वड्डा सिंज सिंजा के ।

रुक्ख दा उस कुमुज़ बणायआ
बना के कीता वाजा त्यार ।
बकरी दियां उस लै के आदरां
उते चढ़ाई तार ।

वाजे दी ज्युं तार उस छेड़ी
सुर इक ऐसा निकल्या
धरम गरंथ दा शबद ज्युं होवे
होवे ज्युं कोई सुरग-कला ।

इह महबूबा होए ना बुढ्ढी
है उदों तों उहदे कोल
कुमुज़ ते खंजर दो खज़ाने
बस इही ने जेहदे कोल ।

पिंड सदा ही धुन्द च घिरिया
उतांह, चट्टानां उत्ते
कुमुज़ ते खंजर लटक रहे ने
नालो नाल ही उत्थे ।

10. अग्ग

पत्थर नाल पत्थर टकराओ-निकलेगी उन्हां विचों चिंग्याड़ी ।
दो चट्टानां नूं टकराओ-निकलेगी उन्हां विचों चिंग्याड़ी ।
तली नाल तली टकराओ-निकलेगी उन्हां विचों चिंग्याड़ी ।
शबद नाल शबद टकराओ-निकलेगी उन्हां विचों चिंग्याड़ी ।
ज़ुरने दे तारां नूं छेड़ो-निकलेगी उन्हां विचों चिंग्याड़ी ।
वादक, गायक दियां अक्खां विच झाको, लभ्भेगी चिंग्याड़ी ।

(ज़ुरना=एक साज़)

11. सागर दी सुणो

सागर आपनी गल्ल कहे तुसीं धारी मौन रहो
आपणियां खुशियां ते ना आपने दिल दा दर्द कहो ।
उह महां कवी दांते वी उस रात मूक सी रहन्दा,
किते पास जद उहदे नीला सागर कदे सी वहन्दा ।
सागर-तट ते भीड़ होवे जां होवे सुन्नमसाण,
मूंह 'चों शबद ना इक वी कढ्ढो सागर नूं दियो गान ।
उह गल्लां दे फन दा माहर, पुशकिन वी चुप रहन्दा,
जद-जद सागर आपने दिल दी कहन्दा ।

12. सागर नाल गल्लां

'सागर मैनूं इह तां दस्स देह, क्युं तेरे जल खारे ?'
'क्युं जो लोकां दे मिले ने इस विच हंझू खारे ।'
'सागर मैनूं इह तां दस्स देह, किन रूप संवारिया तेरा ?'
'मूंग्यां अते मोतियां ने ही रूप निखारिया मेरा ।'
'सागर मैनूं इह तां दस्स देह, क्युं तूं एना बेहबल ?'
'क्युंकि भंवरां विच ने डुग्ग गए किन्ने ही सूरे बीरबल ।
कुझ ने चाहआ, सुपन वेख्या, मिट्ठा कर देनै जल खारा
बाकी मूंगे लभ्भन निकले दिल विच चाय प्यारा !'

13. घट्ट हो पर तुच्छ ना समझो

सिर विदवान पती हिलावे दुक्ख विच व्याकुल हो के,
कवी, लेखक संताप भोगदे दिल विच दर्द संजोके ।
दुक्ख इन्हां नूं इहीयो है कि कासपी तट तों हटदा जाए,
हुन्दी जाए घट्ट गहराई इह नीवां हुन्दा जाए ।
इह बकवास है सारी मैनूं कदे कदे इंज लगदा,
बुढ्ढा कासपी घट्ट डूंघा हो'जे हो कदे नहीं सकदा,
तुच्छ हो रहे कुझ लोकां दे दिल इहीयो ही डर मैनूं,
बाकी सभ चीज़ां तों ज़्यादा, चिंतत व्याकुल करदा ।

14. पहाड़ी गीत दा जनम

लोकां दे सुपन्यां विच्चों इहने जनम ल्या ।
पर ना कोई जाणे, कदों कित्थे इहने जनम ल्या ।
जाणों चौड़ी छाती अन्दर इह सी पिघल्या,
गर्म खून दियां वहणियां अन्दर सी इह उबल्या ।

इह सी गगन दे तारियां कोलों धरत दे उते आया ।
दाग़िस्तानी पिंडां दे लोकां खूब ही इहनूं गायआ ।
उस तों पहलां जदों किसे ने तैनूं इह सुणायऐ ।
पुशतां सैआं तों लोकां ने सुण्या अते सुणायऐ ।

15. मां दी लोरी पुत्त लई

1

मेरे लाल तूं वड्डा हो के शकतीवान हो जावेंगा ।
खूनी बघ्याड़ां दे दन्दों कढ्ढ के मास ल्यावेंगा ।

होवेंगा जद लाल तूं वड्डा, फुरती ऐसी आएगी,
चीते दे पंज्यां दे विचों पंछी कढ्ढ ल्याएगी ।

होवेंगा जद लाल तूं वड्डा, फन तैनूं सभ आवणगे,
वड्ड्यां दी गल्ल मन्नेगा तूं, मीत बहुत बण जावणगे ।

होवेंगा जद लाल तूं वड्डा, समझदार बण जावेंगा,
तंग पंघूड़ा हो जावन ते, ला के खंभ उड्ड जावेंगा ।

मैं ही जनम ए दित्ता तैनूं, मेरा पुत्त रहेंगा तूं,
जेहदा बणेंगा तूं जुआई, उहनूं सस्स कहेंगा तूं ।

जदों जुआन होवेंगा पुत्तरा, सोहनी वहुटी ल्यावेंगा,
प्यारे देश, वतन दी खातर, मधुर तराने गावेंगा ।

2

खुशक, गर्म मौसम विच बरखा - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
बरसाती गर्मी विच सूरज - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
बुल्ह शहदों वी मिट्ठे मिट्ठे - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
स्याह अंगूरां जेहियां अक्खां - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
नांय वी शहद तों वध के मिट्ठा - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
चैन नैणां नूं जो मुक्ख देवे - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
ज्युंदा दिल जो धड़क रिहा ए - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
धड़के दिल दी चाबी वांगूं - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
सन्दूक जो चांदी नाल ए मढ़आ - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।
सन्दूक जो सोने नाल ए भरिया - मेरे बच्चे, तूं एं उह ।

3

अजे निरा धागे दा गोला, इक दिन गोली बण जावेंगा ।
तोड़ेंगा तूं परबत, पत्थर, भारी हथौड़ा बण जावेंगा ।
तीर बणेंगा इक दिन ऐसा, ऐन निशाने जावेंगा ।
नाच होवेगा तेरा दिलकश, मधुर तराने गावेंगा ।
आपने हर इक हानी नालों, दौड़ां तेज़ लगावेंगा ।
घुड़ दौड़ां विच हर इक ताईं, पिच्छे छड्ड तूं जावेंगा ।
वादी विचों तेज़ दौड़ांदा, घोड़ा तूं लै जावेंगा ।
बन के बद्दल अम्बर पहुंचे, ऐसी धूड़ उडावेंगा ।

16. मां दी लोरी धी लई

1

सोन सुनहरे, धागे दे गोले जेही - धी मेरी ए ।
चांदी वन्ने, चमचम करदे, फीते जेही - धी मेरी ए ।
उच्चे परबत उत्ते जो चमके, उस चन्न जेही - धी मेरी ए ।
परबत उत्ते जो कुद्दे टप्पे, उस बक्करी जेही - धी मेरी ए ।

कायर, बुज़दिल, जाह दूर हो जा,
मिले ना किसे कायर ताईं – इह मेरी धी ।
झेंपू बूहे ना आईं साडे,
मिले ना किसे वी झेंपू ताईं – इह मेरी धी ।

बसंती फुल्लां जेही सोहनी - धी मेरी ए ।
बसंती फुल्लां दी माला जेही - धी मेरी ए ।
हरे मखमली घाह जेही कोमल - धी मेरी ए ।

इज्जड़ तिन्न भेडां दे भेजें,
ना धी दे भरवट्टे दा वी वाल दियां ।
थैलियां तिन्न सोने दियां भेजें,
ना धी दी गल्ल्ह नूं छोहन दियां ।
थैलियां तिन्न दे बदले विच वी
ना धी दी गल्ल्ह दा जलाल दियां ।
काले कां नूं धी ना देवां,
ना देवां मोर दियालू नूं ।
तूं एं धीए-तितली मेरी
नन्न्ही मुन्नी सारस मेरी ।

2

मार के डंडा चीता सुट्टे,
धी उसे नूं दे देवां ।
मार के मुक्का पत्थर भन्ने,
धी उसे नूं दे देवां ।
मार कोरड़े गढ़ां नूं जित्ते,
धी उसे नूं दे देवां ।
वांग पनीर जो चन्न नूं चीरे,
धी उसे नूं दे देवां ।
रोके नदी दे वहना नूं जो,
धी उसे नूं दे देवां ।
तारे फुल्लां वांगूं तोड़े,
धी उसे नूं दे देवां ।
बन्न्हे खंभ पौन दे जेहड़ा,
धी उसे नूं दे देवां ।
लाल सेब जेहियां गल्ल्हां वाली,
तूं एं मेरी प्यारी धी ।

3

जदों किते वी खिड़दी ए कोई कली,
पहलों उस तों खिड़ जांदी ए मेरी धी ।

नदियां जद तक उछलन भर भर पाणियां,
आपनी धी लई गुन्दां सुन्दर वेणियां ।

धरती उत्ते बर्फ़ अजे तक्क नहीं आई,
आए किन्ने लोक लै के कुड़माई ।

कुड़माई मेरी धी दी लै के जो आवण
भरिया शहद दा पीपा लै के उह आवन ।
लै आउन लेले भेडां बक्करियां,
है कुड़ी दा बाप, असीं इह दस्सदियां ।

भेजन पिता दे कोल, जो घोड़े हवा समान,
करन पिता दा एदां, उह इज़्ज़त ते मान ।



इस तों पहलों कि सरघी वेले, पंछी गीत सुणाए ।
खेतां बन्ने मेरी धी दा कोई मन परचाए ।

इस तों पहलों, कि दूर दुराडे, कोई कोइल कूके जंगलीं ।
खेडे-कुद्दे विच चरांदां मौज करे उह मन दी ।

जद तक नाल दियां मुट्यारां निकलणगियां सजके ।
मेरी धी तां लै आवेगी, चश्मे तों पानी भर के ।

17. हाजी-मुरात दी लोरी

1

मुक्खड़े 'ते मुस्कान ल्या के,
सुन, पुत्तरा मैं गीत सुणावां ।
इक सूरमे दा इह किस्सा,
सूरे पुत्तर ताईं सुणावां ।

मान बड़े नाल खड़ग आपणी,
लक्क दे नाल उह बन्न्हदा सी ।
सरपट घोड़े उते उच्छल,
वस्स विच उहनूं करदा सी ।

तेज़ पहाड़ी नदियां वांगूं,
हद्दां लंघदा जांदा सी ।
उच्चियां परबत दियां कतारां,
नाल खड़ग दे वढ्ढदा जांदा सी ।

सदी पुराने शाह बलूत नूं,
इको हत्थ नाल उह मोड़े ।
उहो जेहा ही बणें सूरमा,
संग सूरियां जा जोड़े ।

2

(इह गीत उस समें दा है जदों उह
वैरी नाल जा रल्या सी)

तूं पहाड़ां उत्तों, खड्डां विच छालां मारियां,
घबराहट कदे वी छोही, तेरे मन दे ताईं ना ।
पर जिन्नां नीवां जा के, हुन तूं डिग ग्या एं,
उथों कदे वी मुड़ के, घर नूं वापस आईं ना ।

तेरे पहाड़ां उते, जद जद वी हमले होए,
राह तेरा रोक ना सक्के, काले शाह हनेरे,
तूं बणिऐं जा के आपे, दुश्मन दा शिकार,
कदे ना मुड़ के आईं, एधर घर नूं मेरे ।

मैं मां हां, मेरे दिन वी, हुन तों होए काले,
कड़वाहट, सुन्नेपन दे फैले संघने साए,
फौलादी पंज्यां विचों, फांसी फन्दियां विचों,
कदे ना कोई निकले, वापस घर नूं आए ।

ज़ार, शामील दे ताईं, नफ़रत जे कोई करदै,
समझ आ जावे इह गल्ल, हर इक नूं सभनां ताईं,
पर तूं निरादर कीतै, एहनां परबतां दा,
हुन कदे वी मुड़ के, तूं वापस घर ना आईं ।

3

(इह गीत उस वेले दा है जदों उह दुश्मणां
नूं छड्ड के आउन वेले मारिया ग्या)

चल्ले खड़ग दे वार भरपूर उहदे,
सिर धड़ ते नहीं रिहा उहदे,
कोई जंग दा भेड़ जां जुगत बन्दी,
हुन्दी कदे ना सी बिनां उहदे ।

इह फज़ूल ए सड़क दे किसे कंढे,
दफन सिर तों बिनां ए धड़ उहदा ।
किल्यां, जंगां विच हत्थ ते पए मोढे,
किवें छड्डांगे असीं भी लड़ उहदा ।

पुच्छो खंजर ते आपनी खड़ग ताईं,
भला हाजी हुन किते रिहा नहींयों ?
भला मुशक बारूद दी परबतां 'चों,
कितों आवे जां उड्डदा धूंआं नहींयों ?

वांग गरुड़ दे उड्ड के चोटियां ते,
उहदा नांय ग्या अंत नूं धुन्दलायआ ।
वल सभ शमशीरां कर देन सिद्धे,
लाह देणगियां धब्बा जो खुद लायआ ।

18. गीत लै आणे

पैंडे पैन तों पहलां पांधी
की रस्ते लई नाल विचारे ?
कुझ पीणा, कुझ खाना लैंदा
पर, मेरे महमान प्यारे

आ, साडे सिर मत्थे उत्ते,
सभ कासे दा फिकर हटाई
पीना तैनूं असीं दियांगे
खाना कोई परबत दी जाई ।

पैंडे पैन तों पहलां पांधी
की रस्ते लई नाल विचारे ?
तेज़ धार खंजर इक लैंदा ।
पर, मेरे महमान प्यारे

सभ, परबत-राहां उत्ते,
तेरे सनमान च नैन विछाउंदे ।
जे इक खंजर वार करे तां
सौ खंजर राखी लई आउंदे ।

पैंडे पैन तों पहलां पांधी
की रस्ते लई नाल विचारे ?
गीत, जो पैंडा सौखा कर दए ।
पर, मेरे महमान प्यारे

परबतां विच अणगिनत पए ने
साडे कोल वी अदभुत गाने ।
पर किहड़ा इह बोझ ए भारा
बेशक तुसीं वी नाल लै आने ।

19. मां-बोली

सुपने बड़ी विचितर दुनियां हुन्दे ने ।
अज्ज सुपने विच देखां-मैं मरिया होया ।
सिखर दुपहरे दाग़िस्तान दी वादी विच
सीने गोली खाधी, मैं निरजिन्द प्या ।

कोलों दी रौला पाउंदी इक नदी वहे ।
अज्ज किसे नूं चेता, ना ही लोड़ मेरी ।
जिस धरती तों जंम्या, अज्ज उडीक रिहा,
कद बण जावां मैं ओसे दी इक ढेरी ।

मैं अंतम साहां 'ते, किसे नूं पता नहीं,
ना कोई अज्ज विदा कहन ही आएगा ।
सिरफ किते असमानी चील्हां चीकदियां,
हरणियां नूं बेवस किते हउका आइगा ।

ना कोई मेरी मढ़ी ते आ के रोइगा,
कि तुर ग्या मैं, जद सी जीवन दी सिखर दुपहर,
ना मां, ना कोई बोली, ना कोई चन्नमुखी,
ना कोई होर, ते ना ही कोई वी नौहागर ।

मैं इंझ प्या निसत्ता सां दम तोड़ रिहा,
अचनचेत मेरे कन्नीं कोई 'वाज पई ।
दो बन्दे नेड़े सन आ रहे; उहनां विच
मेरी मां-बोली विच चरचा चल्ल रही ।

सिखर दुपहरे दाग़िस्तान दी वादी विच,
मैं दम तोड़ां, पर उह गल्लीं मसत, वैली,
किसे हसन दी खचर-विदिया दियां, जां कोई
चार-सौ-वीह दियां जो कीती सी किसे अली ।

अधमोया, मैं मां-बोली दी धुनी सुणी,
जान पई; ते इस चानन दी आई घड़ी,
कि मेरे दुक्खां दा दारू मां-बोली,
ना कोई वैद हकीम, ना कोई जादूगरी ।

इकना दा दुख हरन पराईआं बोलियां वी,
पर मैं उहनां विच नहीं कुझ गा सकदा ।
कूच-त्यारी अज्ज करां जे मैं जाणां,
कल्ल नूं काल मेरी बोली नूं खा सकदा ।

उस लई मेरे दिल विच सदा ही कसक रहे ।
जो कहन्दे ने निरधन इसनूं कहन दियो ।
बेशक महांसभा दे मंच ते ना गूंजे,
मेरी मां-बोली, मेरे लई रहन दियो ।

की महमूद नूं समझन लई मेरे वारस,
उसदे उलथे ही सचमुच पढ़न पढ़ाउणगे ?
की सचमुच मैं हां उस अंतम टोली 'चों
जो अवार बोली विच लिखणगे, गाउणगे ?

मैनूं प्यारा जीवन ते दुनियां सारी,
इसदी हर नुक्कर तों मैं घोली वारी:
सोवियतां दी भूमी पर सभ तों प्यारी,
जिसनूं मां-बोली विच गावां उमर सारी ।

सखालीन ते बालटिक तक्क-फुल्लां लद्दी
ते सवतंतर प्यारी इस सभ धरती ते,
मैं तन, मन, धन, सभ वारां, जे लोड़ पवे:
कबर बने पर मेरी दूर ना आऊल तों ।

तां कि आऊल दे नेड़े मेरी कबर उत्ते
कदी कदी फिर लग्गे सभा अवारां दी,
जो मां-बोली विच याद करन हमवतन रसूल-
तसादा दे हमज़ात दा जो बेटा सी ।

20. कविता

पहलां कंम ते कंम तों बाअद आए आराम ।
सैना कूच करे, फिर दस मिंट लई विशराम ।
तूं मेरे लई दोवें-कूच अते विशराम
तूं मेरे लई दोवें-मेहनत अते आराम

तूं लोरी सैं, जिस सी मैनूं सहलायआ ।
बीरता अते बहार दे सुपन च तेरी छायआ ।
प्यार मेरे दी तूं हाणी; ते प्यार मेरा
जनम्या सी जद मैं सां दुनियां ते आया ।

बच्चा सां तां, लगदा सी, तूं मां मेरी
हुन तूं ज्युं महबूब; ते जद बुढ्ढा होया,
तां तूं ख़्याल रखेंगी प्यारी धी वांगूं
चमकेंगी बण याद तूं, जद मैं ना रिहा ।

कदी कदी जापे तूं कोई अपहुंच सिखर
कदी तूं जापें सहकदा पंछी, रख्या घर ।
तूं खंभ बणें मिरे, मैं जद उड्डना चाहां
तूं मेरा हथ्यार बणें जद युध करां ।
सिवाए चैन दे, कविता ! तूं सभ कुझ मेरी,
वफादार परेमी वांग सेवा करां तेरी ।

किथे कंम दा अंत, ते किथे शुरू आराम ?
किथे कूच ते किथे दस मिंट दा विशराम ?
तूं मेरे लई दोवें-कूच अते विशराम
तूं मेरे लई दोवें-मेहनत अते आराम

21. कविता

तेरे बाझों इह दुनियां है, ज्युं कोई गुफ़ा हनेरी ।
चानन जिसदी समझ ना आए, सूरज चीज़ पराई ।
जां आकाश जित्थे कोई तारा, पाए कदे ना फेरी ।
जां फिर प्यार जिन्हे गलवकड़ी, ना कोई चुंमन हंढाई ।

तेरे बाझों इह दुनियां, ज्युं सागर बिनां नीलत्तन
ठंडा यक्ख, ना जेहड़ा आपनी अज़ली चमक दिखावे ।
जां फिर बाग़ ना जिथे उग्गे कोई फुल्ल कोई घाह दा तिण
ना कोई बिंडा राग अलापे, ना कोई बुलबुल गावे ।

तेरे बिन रुक्ख सदा खड़ोते, रुंड-मरुंड, उदास,
सदा नवम्बर-कदी ना आए हुनाल, स्याल, बहार ।
लोक तेरे बिन निरधन, वहशी, जापन घोर निराश ।
ते तेरे बिन सक्खना होवे गीतां दा संसार ।

22. शामील-इक वीर-योधा

(शामील ज़ारशाही विरुद्ध दाग़िस्तान दा वीर योधा सी,
सरकार ने उसनूं कौमां विच फुट्ट पाउन वाला ऐलान दित्ता,
रसूल ने जोश विच शामील विरुद्ध कविता रची, इह कविता
उसे दा पछतावा है ।)

फिर उह ज़खम पुराना जेहड़ा आखर कदी ना भरिया,
दिल मेरे 'ते छुरी चलावे, ते अग्ग दे विच बाले ।
इह सी कथा कोई वड्ड्यां दी, इसनूं मैं बचपन तों
जाणां जिवें इह उनी होई सी उसदे नां दुआले ।

सी इह कथा जित्थे यथारथ दे विच गुझ्झी होई
जिसनूं बचपन विच सुणदा सां इकमन, इकचित हो के,
जद कि उसदे हुक़्म च चलदियां बहादर फौजां वांगूं
बद्दल संध्या दे तरदे सन घरां दे उत्ते हो के ।

सी इह गीत ग़मां दा जेहड़ा मां गायआ करदी सी ।
उसदियां निरमल अक्खां विच हंझू देंदे लिशकारे ।
अज्ज तक्क नहीं भुला सकदा मैं कि फिर किवें उन्हां तों
संध्या दी वादी विच बण जांदे सन शबनम-तारे ।

कंध नाल लग्गे फरेम ते सारे सकलिया नूं सी तकदा
बज़ुरग बहादर रणजोधा उह-फौजी वरदी पाई ।
खब्ब-हत्था सी उह-ते शसतर सज्जे पासे लटके
आप खड़ा किरपान दी मुट्ठ 'ते खब्बा हत्थ टिकाई ।

याद है मैनूं, जद उसने तस्वीर तों हेठां तकदे
दो मेरे वड्डे वीरे जंग लई विदा सी कीते ।
ते, तां जो उसदे नां उत्ते टैंक कोई बण सके,
भैन मेरी ने गानी ते बाज़ूबन्द सी दे दित्ते ।

ते मेरे प्यो ने वी कुझ चिर ही बस मरन तों पहलां,
कविता उस योधे बारे सी लिखी । पर हाए, कमबखती !
तद तक शामील बिनां कसूरों ऐवें ग्या कलखायआ
उसदे नां ते आ गई झूठी दन्दकथा दी सखती ।

अचनचेत इह स्ट्ट ना पैंदी तां फिर हो सकदा सी
प्यो मेरा कुझ होर ज्युंदा…मैं वी दोश-भ्याली पाई:
मन्न ग्या सभ कुझ, ते जलदी जेहे गीत झरीट्या मैं वी,
दोश-गान विच तूती आपनी दी मैं 'वाज रलाई ।

वड-वडेरे दी तलवार नूं, जिसने सदी चुथाई
बिन-थक्क्यां, जंग विच सी दुश्मन दे आहू लाहे,
मैं, भटके ने, मुंडपुने वाली कविता विच लिख्या,
उह हथ्यार कि जिसनूं केवल इक ग़द्दार ही पाए ।

भारी कदम ओसदे हुन रातां नूं साफ़ सुणींदे ।
बारी नाल लग्गा दिस्से ज्युं ही बत्ती बन्द होवे ।
आऊल अखूलगो दा उह रखिअक कहरी नज़रां वाला
गुनीब दा बुढ-स्याना फिर मेरे कोल आण खलोवे ।

उह आखे, "जंगां दे विच ते मच्चदे भांबड़ां दे विच,
बेहद डोहल्या खून सी मैं, ते बेहद्द दुख उठायआ ।
उुन्नीं घाउ सहे बलदे उहनां विच जिसम मेरे ने,
तूं, दुद्ध पींदे बच्चे, मैनूं वीहवां घाउ लगायआ ।

खंजरां तों ते गोलियां तों लग्गे मैं ज़खम सहे सी ।
पर तेरा डंग सभनां नालों तिगुनी पीड़ पुचावे-
क्युंकि किसे पहाड़ी तों इह पहला ज़खम सी लग्गा
होर कोई बेइज़ती ना शिद्दत विच इस तुल्ल आवे ।

हो सकदा है अज्ज जहाद दी लोड़ ना पवे तुहानूं ।
पर कदी इहनां परबतां दी उसने सी कीती राखी ।
हो सकदा है अज्ज मेरे शसतर हो गए पुराणे,
पर आज़ादी दी सेवा कीती दे इह ने साखी ।

मैं लड़्या जंगां बिन-थक्क्यां, परबत-जाए दे हठ नाल,
समां कदी ना मिल्या मैनूं गीतां ते जशनां दा ।
इंझ हुन्दा सी कि तुकबाज़ां नूं कोड़े सां लाउंदा,
कथाघाड़्यां नूं तक्क के मैनूं ताय सी चढ़ जांदा ।

शायद गलती 'ते सां जद उहनां नाल कीती सखती
आपना गर्म सुभाय काबू रक्खन दा नहीं सां आदी ।
पर तेरे जेहे होछे तुकबाज़ां नूं अज्ज वी देखां
तां लग्गे मैं उदों वी नहीं सी ग़लती खाधी ।"

सवेर होन तक्क खड़ा सिरहाने इंझ उह देवे गाल्हां,
साफ दिखाई देवे, भावें अद्धी रात हनेरा ।
पापाखे दे उत्ते चलमा कस्स के बन्न्हआ होया
ते महन्दी-रंगे दाहड़े वाला उह भरवां चेहरा ।

मैं निरुतर ! उसदे साहवें अते तुहाडे साहवें वी
मेरे लोको, मैं ना-मुआफ्योग गुनाह है कीता !
नायब इमाम दा सी इक डाढा हंढ्या होया सिपाही
हाजी मुरात सी नां, जिसने बेदावा सी लिख दित्ता ।

आपने आप ते शरमिन्दा, उस मुड़न दा फैसला कीता,
पर जा फस्या विच दलदल दे, दंड पूरा उस पायआ ।
मैं मुड़ जावां कोल इमाम दे ? क्या गल्ल हासोहीनी !
ना उह मेरा राह है ते ना ही हुन उह है समां रिहा ।

बिन-सोचे कीती रचना आपनी लई मैं शरमिन्दा,
सखत उनींदे झागां रातीं, इउं उसदा फल पावां ।
मैं चाहुन्दा हां इमाम नूं माफी दे लई अरज़ गुज़ारां
पर इसदे लई, मैं नहीं चाहुन्दा, दलदल विच फस जावां ।

तेग़ नाल लिखदा है जेहड़ा उह ना रंजश भुल्ले ।
की फायदा अरजोईआं दा जद ना कोई अरज़ कबूले ।
मेरी कच्च-उमरी कविता ने जो तुहमत सी लाई
सारी उमर रहांगा उसदा दिल 'ते बोझ उठाई ।

सुक्ख !...पर तूं ऐ कौम मेरी ! मेरी भुल्ल बखशीं मैनूं,
बिन-सीमा आखर जीवन भर प्यार कीता मैं तैनूं ?
मेरी मां-भूमी ! देखीं ना कवी नूं एस नज़र नाल,
ज्युं कोई मां शरमिन्दा होवे पुत्त दे बुरे हशर नाल ।

(सकलिया=झुग्गी, आऊल=पिंड)

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