पदावली : संत मीरा बाई (भाग-7)

Padavali : Sant Meera Bai (Part-7)

1. यहि बिधि भक्ति कैसे होय

यहि बिधि भक्ति कैसे होय।।टेक।।
मन की मैल हियतें न छूटी, दियो तिलक सिर धोय।
काम कूकर लोभ डोरी, बाँधि मौहि चण्डाल।
क्रोध कसाई रहत घट में, कैसे मिले गोपाल।
बिलार विषया लालची रे, ताहि भोजन देत।
दीन हीन ह्व छुपा रत से, राम नाम न लेत।
आपहिं आप पुजाय के रे, फूले अंग न समात।
अभिमान टीले किये बहु कहु, जल कहाँ ठहरात।
जो तेरे हिय अन्तर की जानै, तासी कपट न बनै।
हिरदे हरि को नम न आवै, सुख तै मनिया गनै।
हरि हितु से हेत कर, संसार आसा त्याग।
दास मीराँ लाल गिरधर सहज कर वैराग।।

(यहि विधि=इस प्रकार से, मैल=पाप, हियतें=
हृदय से,मन से, काम=वासना, कूकर=कुत्ता,
चण्डाल=क्रूर,निष्ठुर, घट=हृदय, बिलार=बिलाव,
आपहि आप पुजाय के=अपनी पूजा स्वयं करके,
अहं भावना से, फूले अंग न समात=बहुत अधिक
प्रसन्न होता है, बहु=बहुत, कहु=कहो, अन्तर की=
अन्दर की, मनिय=माला के दाने, हरि-हितु=
हरिभक्त, हेत=प्रेम, सहज=धार्मिक क्षेत्र में,
निर्गुण सन्तों के अनुसार सहज शब्द का अर्थ
है सहजाचरण और सदाचरण)

2. या तो रंग धत्तां लग्यो ए माय

या तो रंग धत्तां लग्यो ए माय।।टेक।।
पिया पियाला अगर रस का चढ़ गई घूम घूमाय।
वो तो अमल म्हांरों कबहुं न उतरे, कोट करो न उपाय।
सांप पिटारो राणाजी भेज्यो, द्यो मेड़तणी गल डार।
हंस हंस मीरां कंठ लगायो, यो तो म्हाँरे नौसर हार।
विष का प्यालो राणो जी मेल्यो, द्यो मेड़तणी ने पाय।
कर चरणामृत पी गई रे, गुण गोविन्द रा गाय।
पिया पियाला नाम का रे, और न रंग सोहाय।
मीराँ कहे प्रभु गिरधरनागर, काचो रंग उड़ जाय।।

(धत्तां=खूब,अधिक, घूमाय=चक्कर देकर, अमल=
नशा, कोट=कोटि,करोड़,असंख्य, द्यो=दिया, मेड़तणी=
मेड़ते की लड़की,मीरां, नौसर=नौ लड़ियों का, काचो=
कच्चा)

3. या ब्रज में कछु देख्यो री टोना

या ब्रज में कछु देख्यो री टोना॥

लै मटकी सिर चली गुजरिया, आगे मिले बाबा नंदजी के छोना।
दधिको नाम बिसरि गयो प्यारी, लेलेहु री कोउ स्याम सलोना॥

बिंद्राबनकी कुंज गलिन में, आंख लगाय गयो मनमोहना।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सुंदर स्याम सुधर रसलौना॥

(टोना=जादू, छोना=पुत्र)

4. या मोहन के रूप लुभानी

या मोहन के रूप लुभानी।
सुंदर बदन कमलदल लोचन, बांकी चितवन मंद मुसकानी॥
जमना के नीरे तीरे धेनु चरावै, बंसी में गावै मीठी बानी।
तन मन धन गिरधर पर बारूं, चरणकंवल मीरा लपटानी॥

(दल=पंखुड़ी,बांकी=टेढ़ी, नीरे=निकट)

5. ये ब्रिजराजकूं अर्ज मेरी

ये ब्रिजराजकूं अर्ज मेरी। जैसी राम हमारी॥टेक॥
मोर मुगुट श्रीछत्र बिराजे। कुंडलकी छब न्यारी॥१॥
हारी हारी पगया केशरी जामा। उपर फुल हाजारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारी॥३॥

6. रटता क्यौं नहीं रे हरिनाम

रटता क्यौं नहीं रे हरिनाम। तेरे कोडी लगे नही दाम॥
नरदेहीं स्मरणकूं दिनी। बिन सुमरे वे काम॥१॥
बालपणें हंस खेल गुमायो। तरुण भये बस काम॥२॥
पाव दिया तोये तिरथ करने। हाथ दिया कर दान॥३॥
नैन दिया तोये दरशन करने। श्रवन दिया सुन ज्ञान॥४॥
दांत दिया तेरे मुखकी शोभा। जीभ दिई भज राम॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। है जीवनको काम॥६॥

7. रमईया बिन यो जिवडो दुख पावै

रमईया बिन यो जिवडो दुख पावै।
कहो कुण धीर बंधावै॥
यो संसार कुबुधि को भांडो, साध संगत नहीं भावै।
राम-नाम की निंद्या ठाणै, करम ही करम कुमावै॥
राम-नाम बिन मुकति न पावै, फिर चौरासी जावै।
साध संगत में कबहुं न जावै, मूरख जनम गुमावै॥
मीरा प्रभु गिरधर के सरणै, जीव परमपद पावै॥

(जिवड़ो=जीव, कुबुधि=दुर्बुद्धि, भांडो=बर्तन, कुमावै=
कमाता है, चौरासी=चौरासी लाख योनियां)

8. रमईया मेरे तोही सूं लागी नेह

रमईया मेरे तोही सूं लागी नेह।।टेक।।
लागी प्रीत जिन तोड़ै रे वाला, अधिकौ कीजै नेह।
जै हूँ ऐसी जानती रे बाला, प्रीत कीयाँ दुष होय।
नगर ढँढोरो फेरती रे, प्रीत करो मत कोय।
वीर न षाजे आरी रे, मूरष न कीजै मिन्त।
षिण तात षिण सीतला रे, षिण वैरी षिण मिन्त।
प्रीत करै ते बाबरा रे, करि तोड़ै ते कूर।
प्रीत निभावण दल के षभण, ते कोई बिरला सूर।
तम गजगीरी कों चूँतरौरे, हम बालू की भीत।
अब तो म्याँ कैसे ब्रणै रै, पूरब जनम की प्रीत।
एकै थाणे रोपिया रे, इक आँबो इक बूल।
बाकौ रस नीकौ लगै रै, बाकी भागे सूल।
ज्यूं डूगर का बाहला रे, यूँ ओछा तणा स्नेह।
बहता बहेजी उतावरा रे, वे तो सटक बतावे छेह।
आयो साँवण भादवा रे, बोलण लागा मोर।
मीराँ कूँ हरिजन मिल्या रे, ले गया पवन झकोर।।

(नेह=प्रेम, बाला=वाल्हा,प्रियतम, दुष=दुख, ढंढोरों
फेरती=ढोल बजा बजाकर कहती, मूरष=मूर्ख,
मिन्त=मित,मित्र, षिण=क्षण, ताता=गर्म, कूर=क्रूर,
निठूर, षभण=बंधन,बाधाएं, गजगोरी कों चूंततौरे=
सुद्दढ़ चबूतरा, थाणे=स्थान पर, आँबों=आम, बूल=
बूबल, नीको=अच्छा, सूल=शूल,काँटे, डूंगर=ऊंचाई,
बाहला=बहने वाले स्त्रोत, सटक बतावे छेह=शीघ्र
ही नष्ट कर देता है,तोड़ देता है)

9. राजा थारे कुबजाही मन मानी

राजा थारे कुबजाही मन मानी। म्हांसु आ बोलना॥टेक॥
रसकोबी हरि छेला हारियो बनसीवाला जादु लाया।
भुलगई सुद सारी॥१॥
तुम उधो हरिसो जाय कैहीयो। कछु नही चूक हमारी॥२॥
मिराके प्रभु गिरिधर नागर। चरण कमल उरधारी॥३॥

10. राणा जी अब न रहूंगी तोर हठ की

राणा जी...हे राणा जी
राणा जी अब न रहूंगी तोर हठ की

साधु संग मोहे प्यारा लागे
लाज गई घूंघट की
हार सिंगार सभी ल्यो अपना
चूड़ी कर की पटकी

महल किला राणा मोहे न भाए
सारी रेसम पट की
राणा जी... हे राणा जी
जब न रहूंगी तोर हठ की

भई दीवानी मीरा डोले
केस लटा सब छिटकी
राणा जी... हे राणा जी!
अब न रहूंगी तोर हठ की।

पाठांतर
राणा जी! अब न रहूँगी तोरी हटकी ।।टेक।।
साध संग मोहि प्यारा लागै, लाज गई घूँघट की।
पीहर मेड़ता छोड़ा आपण, सुरत निरत दोऊ चटकी।
सतगुरू मुकुर दिखाया घट का, नाचूँगी दे दे चुटकी।
हार सिंगार सभी ल्यो अपना, चूड़ा कर की पटकी।
मेरा सुहाग अब मोकूँ दरसा, और व जाते घट की।
महल किलां राणा मोंहि न चाहिए, सारी रेशम पट की।
हुई दिवानी मीरां डोलै, केस लटा सब छिटकी।।

(हटकी=रोकी हुई, साध=साधु, सुरत-निरत=स्मरण
और नृत्य,सन्त-मत की प्रमुख साधना के दो अंग,
मुकुर=शीशा, घट=हृदय, पट=कपड़ा)

11. राणाजी, थे क्यांने राखो म्हांसूं बैर

राणाजी, थें क्यांने राखो म्हांसूं बैर।

थे तो राणाजी म्हांने इसड़ा लागो, ज्यूं बृच्छन में कैर।
महल अटारी हम सब त्याग्या, त्याग्यो थारो बसनो सैर॥

काजल टीकी राणा हम सब त्याग्या, भगती-चादर पैर।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर इमरित कर दियो झैर॥

पाठांतर
राणाजी थें क्यांने राखों म्हाँसू बैर।।टेक।।
थें तो राणाजी म्हाँने इसड़ा लागो ज्यों ब्रच्छन में कैर।
महल अटारी हम सब त्यागा, त्याग्यो थारो बसनो सहर।
कागज टीकी राणा हम सब त्यागा भगवीं चादर पहर।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, इमरित कर दियो जहर।।

(थें=तुमने, क्यांने=क्योंकर,किस प्रकार, म्हांसू=मुझसे,
इसड़ा=इस प्रकार, कैर=करील, सहर=शहर,नगर, कागज=
काजल, इमरित=अमृत)

12. राणाजी थें जहर दियो म्हे जाणी

राणाजी थें जहर दियो म्हे जाणी।।टेक।।
जैसे कञ्चन दहत अगनि से, निकसत बाराबाणी।
लोकलाज कुल काण जगत की, दृढ बहाय जस वाणी।
अपणे घर का परदा करले, में अबला बौराणी।
तरकस तीर लग्यो मेरे हियरे, गरक ग्यो सनकाणी।
सब संतत पर तन मन वारो, चरण केवल लपटाणी।
मीराँ की प्रभु राखि लई है दासी आपणी जाणी।।

(कञ्चन=सोना, अगिन=अग्नि,आग, बाराबाणी=
अत्यन्त दमक वाला, बौराणी=पागल, गरक गयो=
गहरा लग गया, सनकाणी=पागल हो गई,कानी
समेत,पूरा)

13. राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी

राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी।।टेक।।
कोई निन्दो कोई बिन्दो, मैं चलूँगी चाल अपूठी।
साँकड़ली सेर्यां जन मिलिया कर्यूं कर फिरूँ अपूठी।
सत सँगति सा ग्यान सुणैछी तुरजन लोगाँ ने दीठी।
मीराँ रो प्रभु गिरधरनागर, दुरजन जलो जा अंगीठी।।

(म्हांने=मुझको, या=कृष्ण प्रेम के सम्बन्धित, बिन्दो=
विनती करना, प्रशंसा करना, अपूठी=उल्टी, सांकलड़ी=
संकरी, सेर्यां=गली, जन=गुरू, अपूठी=वापिस, दीठी=देखी)

14. राणाजी, म्हांरी प्रीति पुरबली मैं कांई करूं

राणाजी, म्हांरी प्रीति पुरबली मैं कांई करूं॥

राम नाम बिन नहीं आवड़े, हिबड़ो झोला खाय।
भोजनिया नहीं भावे म्हांने, नींदडलीं नहिं आय॥

विष को प्यालो भेजियो जी, `जाओ मीरा पास,'
कर चरणामृत पी गई, म्हारे गोविन्द रे बिसवास॥

बिषको प्यालो पीं गई जीं,भजन करो राठौर,
थांरी मीरा ना मरूं, म्हारो राखणवालो और॥

छापा तिलक लगाइया जीं, मन में निश्चै धार,
रामजी काज संवारियाजी, म्हांने भावै गरदन मार॥

पेट्यां बासक भेजियो जी, यो छै मोतींडारो हार,
नाग गले में पहिरियो, म्हारे महलां भयो उजियार॥

राठोडांरीं धीयड़ी दी, सींसाद्यो रे साथ।
ले जाती बैकुंठकूं म्हांरा नेक न मानी बात॥

मीरा दासी श्याम की जी, स्याम गरीबनिवाज।
जन मीरा की राखज्यो कोइ, बांह गहेकी लाज॥

15. राणाजी, म्हे तो गोविन्द का गुण गास्यां

राणाजी, म्हे तो गोविन्द का गुण गास्यां।
चरणामृत को नेम हमारे, नित उठ दरसण जास्यां॥
हरि मंदर में निरत करास्यां, घूंघरियां धमकास्यां।
राम नाम का झाझ चलास्यां भवसागर तर जास्यां॥

यह संसार बाड़ का कांटा ज्या संगत नहीं जास्यां।
मीरा कहै प्रभु गिरधर नागर निरख परख गुण गास्यां॥

16. राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी

राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी,
म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्याँ हे माय।।
राणोजी रूठे तो अपने देश रखासी,
म्हे तो हरि रूठ्यां रूठे जास्याँ हे माय।
लोक-लाजकी काण न राखाँ,
म्हे तो निर्भय निशान गुरास्याँ हे माय।
राम नाम की जहाज चलास्याँ,
म्हे तो भवसागर तिर जास्याँ हे माय।
हरिमंदिर में निरत करास्याँ,
म्हे तो घूघरिया छमकास्याँ हे माय।
चरणामृत को नेम हमारो,
म्हे तो नित उठ दर्शण जास्याँ हे माय।
मीरा गिरधर शरण सांवल के,
म्हे ते चरण-कमल लिपरास्यां हे माय।

17. राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको

राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको॥टेक॥
ब्रिंदाबनमें तुलसीको वडलो जाको पानचरीको॥१॥
ब्रिंदावनमें धेनु बहोत है भोजन दूध दहींको॥२॥
ब्रिंदावनमें रास रची है दरशन कृष्णजीको॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर हरिबिना सब रंग फिको॥४॥

18. राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी

राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी।
ये बनसीमें मेरा प्रान बसत है वो बनसी गई चोरी॥१॥
ना सोनेकी बन्सी न रुपेकी। हरहर बांसकी पेरी॥२॥
घडी एक मुखमें घडी एक करमें। घडी एक अधर धरी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलपर वारी। राधा प्यारी दे०॥४॥

19. राधे तोरे नयनमों जदुबीर

राधे तोरे नयनमों जदुबीर॥टेक॥
आदी आदी रातमों बाल चमके। झीरमीर बरसत नीर॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडल झलकत हीर॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल शीर॥३॥

20. राधे देवो बांसरी मोरी

राधे देवो बांसरी मोरी। मुरली हमारी॥टेक॥
पान पात सब ब्रिंदावन धुंडयो। कुंजगलीनमों सब हेरी॥१॥
बांसरी बिन मोहे कल न परहे। पया लागत तोरी॥२॥
काहेसुं गावूं काहेंसुं बजाऊं। काहेसुं लाऊं गवा घहेरी॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकी मैं तो चित्त चोरी॥४॥

21. राम नाम मेरे मन बसियो

राम नाम मेरे मन बसियो, रसियो राम रिझाऊं ए माय।
मैं मंदभागण परम अभागण, कीरत कैसे गाऊं ए माय॥
बिरह पिंजरकी बाड़ सखी री, उठकर जी हुलसाऊं ए माय।
मनकूं मार सजूं सतगुरसूं, दुरमत दूर गमाऊं ए माय॥
डंको नाम सुरतकी डोरी, कड़ियां प्रेम चढ़ाऊं ए माय।
प्रेम को ढोल बन्यो अति भारी, मगन होय गुण गाऊं ए माय॥
तन करूं ताल मन करूं ढफली, सोती सुरति जगाऊं ए माय।
निरत करूं मैं प्रीतम आगे, तो प्रीतम पद पाऊं ए माय॥
मो अबलापर किरपा कीज्यौ, गुण गोविन्दका गाऊं ए माय।
मीराके प्रभु गिरधर नागर, रज चरणनकी पाऊं ए माय॥

(हुलसाऊं=मन बहलाऊंगी, गमाऊं=गवां दूं,खो दूं, डंको=डंका,
कड़ियां=ढोल की डोरियां, मोरचंग=मुंह से बजाने का एक
बाजा,मुंहचंग, रज=धूल)

22. राम-नाम-रस पीजै

राम-नाम-रस पीजै।
मनवा! राम-नाम-रस पीजै।
तजि कुसंग सतसंग बैठि नित, हरि-चर्चा सुणि लीजै।
काम क्रोध मद मोह लोभ कूं, चित से बाहय दीजै।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, ता के रंग में भीजै।

23. राम बिन निंद न आवे

राम बिन निंद न आवे। बिरह सतावे प्रेमकी आच ठुरावे॥टेक॥
पियाकी जोतबिन मो दर आंधारो दीपक कदायन आवे।
पियाजीबिना मो सेज न आलुनी जाननरे ए बिहावे।
कबु घर आवे घर आवे॥१॥
दादर मोर पपीया बोले कोयल सबद सुनावे।
गुमट घटा ओल रहगई दमक चमक दुरावे। नैन भर आवें॥२॥
काहां करूं कितना उसखेरू बदन कोई न बनावे।
बिरह नाग मेरि काया डसी हो। लहर लहर जीव जावे जडी घस लावे॥३॥
कहोरी सखी सहली सजनी पियाजीनें आने मिलावे।
मीराके प्रभु कबरी मिलेगे मोहनमो मन भावे। कबहूं हस हस बतलावे॥४॥

24. राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री

राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।

25. राम मिलण रो घणो उमावो, नित उठ जोऊं बाटड़ियाँ

राम मिलण रो घणो उमावो, नित उठ जोऊं बाटड़ियाँ।
दरस बिना मोहि कछु न सुहावै, जक न पड़त है आँखड़ियाँ॥

तड़फत तड़फत बहु दिन बीते, पड़ी बिरह की फांसड़ियाँ।
अब तो बेग दया कर प्यारा, मैं छूं थारी दासड़ियाँ॥

नैण दुखी दरसणकूं तरसैं, नाभि न बैठें सांसड़ियाँ।
रात-दिवस हिय आरत मेरो, कब हरि राखै पासड़ियाँ॥

लगी लगन छूटणकी नाहीं, अब क्यूं कीजै आँटड़ियाँ।
मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, पूरो मनकी आसड़ियाँ॥

26. राम सनेही साबरियो

राम सनेही साबरियो, म्हांरी नगरी में उतर्यो आय।।टेक।।
प्राण जाय पणि प्रीत न छांडूं रहीं चरण लपटाय।
सपत दीप की दे परकरमा, हरि हरी में रहौ समाय।
तीन लोक झोली में डारै, धरती ही कियो निपाय।
मीरां के प्रभु हरि अबिनासी, रहौ चरण लपटाय।।

(पणि=परन्तु,तथापि, सपत=सप्त, परकरमा=
परिक्रमा)

27. री, मेरे पार निकस गया सतगुर मार्‌या तीर

री, मेरे पार निकस गया सतगुर मार्‌या तीर।
बिरह-भाल लगी उर अंदर, व्याकुल भया सरीर॥

इत उत चित्त चलै नहिं कबहूं, डारी प्रेम-जंजीर।
कै जाणै मेरो प्रीतम प्यारो, और न जाणै पीर॥

कहा करूं मेरों बस नहिं सजनी, नैन झरत दोउ नीर।
मीरा कहै प्रभु तुम मिलियां बिन प्राण धरत नहिं धीर॥

पाठांतर
री मेरे पार निकस गया सतगुर मारह्ह्या तीर।
बिरह-अनल लगी उर अन्तरि व्याकुल भया सरीर।।
इत उत चित्त चलै नहिं कबहूं डारी प्रेम-जंजीर।
कै जाणै मेरो प्रीतम प्यारो और न जाणै पीर।।
कहा करूं मेरों बस नहिं सजनी नैन झरत दो नीर।
मीरा कहै प्रभु तुम मिलियां बिन प्राण धरत नहिं धीर।।

(री=अरी,सखी, पार=आर-पार, तीर-मारह्ह्या=रहस्य
के शब्द द्वारा इशारे से बता दिया, चलै नहिं=
विचलित नहीं होता है, डारी=डाल दी, नीर=जल,आंसुं,
निकस गयाँ=निकल गया, अनल=आग, अन्तरि=हृदय,
में, काई=कोई)

28. री म्हाँ बैठ्याँ जागाँ, जगत सब सोवाँ

री म्हाँ बैठ्याँ जागाँ, जगत सब सोवाँ।।टेक।।
बिरहण बैठ्याँ रंगमहल माँ, णेणा लड्या पोवाँ।
इक बिरहणि हम ऐसी देखी, अँसुवन की माला पोवै।
ताराँ गणताँ रेण बिहानाँ, सुख घड़ियारी जोवाँ ।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, मिल बिछड़याँ णा होवाँ।।

(णेणा लड़ना=आँखें लड़ गई,प्रेम हो गया, पोवै=
पिरोना,बनाना, रेण=रात, जोवाँ=प्रतीक्षा करना)

29. रूप देखश अटकी, तेरा रूप देख अटकी

रूप देखश अटकी, तेरा रूप देख अटकी ।।टेक।।
देह तें विदेह भई, ढुरि परि सिर भटकी।
माता-पिता भ्रात बंधु, सब हो मिल अटकी।
हिरदा ते टरत नाहिं मुरति नागर नट की।
प्रगट भयो पूरन नेह लोक जाने भटकी।
मीराँ प्रभु गिरिधर बिन, कौन लहे घटकी।।

(बिदेह=देह-विहीन, ढुरि परि=गिर गई,
हटकी=रोकी, नागर नट=श्रीकृष्ण, भटकी=
भटक गई, लहे=जाने, घटकी=हृदय की)

30. रे सांवलिया म्हारे आज रंगीली गणगोर

रे सांवलिया म्हारे आज रंगीली गणगोर; छै जी।।टेक।।
काली पील बदली में बिजली चमके, मेघ घटा घनघोर छै जी।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल कर रही सोर छै जी।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर, चरणां में म्हारी जोर, छै जी।।

(रंगील=रंगभरी, गणगोर=चैत्रशुक्ला तृतीया को होने वाला,
गौरी व्रत का त्यौहार, छै=है, जोर=दृढ़ विश्वास)

31. रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री

रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री।
होली खेल्या स्याम संग रंग सूं भरी, री ।।टेक।।
उड़त गलाल लाल बादला रो रंग लाल, पिचकां उड़ावां।
रंग-रंग री झरी, री।
चोवा चन्दण अरगजा म्हा, केसर णो गागर भरी री।
मीरां दासी गिरधरनागर, चेरी चरण धरी री।।

(राग=प्रेम, गागर=मटका, चेरी=चेली, दासी,
धरी=पड़ी हुई)

32. रंगेलो राणो कई करसो मारो राज्य

रंगेलो राणो कई करसो मारो राज्य।
हूं तो छांडी छांडी कुलनी लाज॥टेक॥
पग बांधीनें घुंगरा हातमों छीनी सतार।
आपने ठाकूरजीके मंदिर नाचुं वो हरी जागे दिनानाथ॥१॥
बिखको प्यालो राणाजीने भेजो कैं दिजे मिराबाई हात।
कर चरणामृत पीगई मीराबाई ठाकुरको प्रसाद॥ रंगेलो०॥२॥
सापरो पेटारो राणाजीनें भेजों दासाजीने हात।
सापरो उपाडीनें गलामों डारयो हो गयो चंदन हार।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तूं मारो भरतार॥३॥

33. लगन का नाँव न लीजै री भोली

लगन का नाँव न लीजै री भोली ।
लगन लगी कौ पैडो ही न्यारो, पाँव धरत तन छीजै।
जै तूं लगन लगाई चावै, तौ सीस की आसन कीजै।
लगन लगी जैसे पतंग दीप से, वारि फेर तन दीजै।
लगन लगई जैसे मिरघे नाद से, सनमुख होय सिर दीजै।
लगन लगई जैसे चकोर चन्दा से, अगनी भक्षण कीजै।
लगन लगी जैसे जल मछीयन से, बिछड़त तनही दीजै।
लगन लगी जैसे पुसप भंवर से फूलन बीच रहीजै।
मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर, चरण कँबल चित दीजै।।

(लगन=प्रेम, नाँव=नाम, भोली=हे भोली सखी,
पैडो=मार्ग, छीजै=क्षीण हो जाता है, चावै=चाहती है,
सीस की आसन कीजै=सीस काटकर उस पर अपना
आसन लगाना, बारि फेर=चारों और चक्कर लगाकर,
तन दीजै=प्राण त्याग लगाना, मिरघे=मृग, नाद=
संगीत, अगनी भक्षण कीजै=आग खाता है, पुसप=
पुष्प,फूल, भँवर=भौरा)

34. लटपटी पेचा बांधा राज

लटपटी पेचा बांधा राज॥टेक॥
सास बुरी घर ननंद हाटेली। तुमसे आठे कियो काज॥१॥
निसीदन मोहिके कलन परत है। बनसीनें सार्‍यो काज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधन नागर। चरन कमल सिरताज॥३॥

35. लक्ष्मण धीरे चलो मैं हारी

लक्ष्मण धीरे चलो मैं हारी॥टेक॥
रामलक्ष्मण दोनों भीतर। बीचमें सीता प्यारी॥१॥
चलत चलत मोहे छाली पड गये। तुम जीते मैं हारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारी॥३॥

36. लागी मोहिं नाम-खुमारी हो

लागी मोहिं नाम-खुमारी हो॥
रिमझिम बरसै मेहड़ा भीजै तन सारी हो।
चहुंदिस दमकै दामणी गरजै घन भारी हो॥
सतगुर भेद बताया खोली भरम-किंवारी हो।
सब घट दीसै आतमा सबहीसूं न्यारी हो॥
दीपग जोऊं ग्यानका चढूं अगम अटारी हो।
मीरा दासी रामकी इमरत बलिहारी हो॥

(खुमारी=हल्का नशा, मेहड़ा=मेघ, सारी=
सारा अंग,साड़ी, भरम-किंवारी=भ्रांतिरूपी
किवाड़, दीपग=दीपक, जोऊं=जलाती हूं,
अटारी=ऊंचा स्थान,परमपद, इमरत=अमृत)

37. लागी सोही जाणै, कठण लगन दी पीर

लागी सोही जाणै, कठण लगन दी पीर।।टेक।।
विपत पड्याँ कोई निकटि न आवै, सुख में, सब को सीर।
बाहरि घाव कछू नहिं दीसै, रोम रोम दी पीर।
जन मीराँ गिरधर के उपर, सदकै करूँ सरीर।।

(कठण=कठिन, लगण दी=प्रेम की, पीर=पीड़ा,
सीर=हिस्सा दीसै=दिखाई देता है, सदकै=न्यौछावर)

38. लेताँ लेताँ राम नाम रे

लेताँ लेताँ राम नाम रे, लोकड़ियाँ तो लाजाँ मरे छै।।टेक।।
हरि मंदरि जाताँ पांवलिया रे दूखे, फिर आवे सारो गाम रे।
झगड़ो थाँय त्याँ दौड़ी न जाय रे मूको रे घर ना काम रे।
भाड भवैया गणिका नित करताँ, बेसी रहें चारे जाम रे।
मीराँना प्रभु गिरधरनागर चरण कमल चित हाम रे।।

(लोकड़ियाँ=संसार के लोग, पाँवलिया=पैर, फिर आवै=
घूम आवे, थाय=हो, त्यां=तहाँ,वहाँ, दोड़ी ने=दौड़कर,
मूकीने=छोड़कर, घर ना=घर का, भांड=विदूषक,मसखरे,
भवैया=नर्तक,नाच करने वाला, नित्य=नृत्य, बेसी रहें=
बैठा रहे, जाम=याम,प्रहर,घड़ी)

39. वस्याँ म्हारे णेणण माँ नँदलाल

वस्याँ म्हारे णेणण माँ नँदलाल ।।टेक।।
मोर मुगट मकराकृत कुण्डल अरूण तिलक सोहाँ भाल।
मोहण मूरत साँवराँ सूरत णेणा बण्या बिसाल।
अधर सुधारस मुरली राजाँ उर बैजंती माल।
मीराँ प्रभु संताँ सुखदायाँ भक्त बछल गोपाल।।

(बस्याँ=बसो, णेणण माँ=नैनों में,आँखों में,
मकराकृत=मकर या मछली के आकार का,
अरूण=लाल, मोहण=मोहना,मोह लेने वाली,
साँवराँ=साँवली, बण्याँ=बने हुए हैं, सुधारस=
अमृत के रस के समान, राजाँ=राजती है,
सुशोभित होती है, उर=हृदय, बैजन्तीमाल=
बैजन्ती माला,जिसे कृष्ण पहना करते थे,
सुखदायाँ=सुख देने वाले, भक्त बछल=
भक्त-वत्सल, गोपाल=कृष्ण)

40. वारी-वारी हो राम हूँ वारी

वारी-वारी हो राम हूँ वारी, तुम आज्या गली हमारी।।टेक।।
तुम देख्याँ कल न पड़त है, जोऊँ बाट तुम्हारी।
कूण सखी सूं तुम रंग राते, हम सूँ अधिक पियारी।
किरपा कर मोहि दरसण दीज्यो, सब तकसीर बिसारी।
तुम सरणागत परमदयाला, भवजल तार मुरारी।
मीराँ दासी तुम चरण की, बार बार बलिहारी।।

(वारी-वारी=निछावर हो गई हूँ, आज्या=आ जाओ,
रंग राते=अनुरक्त हो गये हो, तकसीर=अपराध,
भवजल=भवसागर, तार=पार करो)

41. शरणागतकी लाज

शरणागतकी लाज।तुमकू शणागतकी लाज॥टेक॥
नाना पातक चीर मेलाय।पांचालीके काज॥१॥
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके।आगे चक्रधर जदुराज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर।दीनबंधु महाराज॥३॥

42. शाम बतावरे मुरलीवाला

शाम बतावरे मुरलीवाला॥टेक॥
मोर मुगुट पीताबंर शोभे। भाल तिलक गले मोहनमाला॥१॥
एक बन धुंडे सब बन धुंडे। काहां न पायो नंदलाला॥२॥
जोगन होऊंगी बैरागन होऊंगी। गले बीच वाऊंगी मृगछाला॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। माग लीयो प्रीयां प्रेमको माला॥४॥

43. शाम बन्सीवाला कन्हैया

शाम बन्सीवाला कन्हैया। मैं ना बोलूं तुजसेरे॥टेक॥
घर मेरा दूर घगरी मोरी भारी। पतली कमर लचकायरे॥१॥
सास नंनदके लाजसे मरत हूं। हमसे करत बलजोरी॥२॥
मीरा तुमसो बिगरी। चरणकमलकी उपासीरे॥३॥

44. शाम मुरली बजाई कुंजनमों

शाम मुरली बजाई कुंजनमों॥टेक॥
रामकली गुजरी गांधारी। लाल बिलावल भयरोमों॥१॥
मुरली सुनत मोरी सुदबुद खोई। भूल पडी घरदारोमों॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। वारी जाऊं तोरो चरननमों॥३॥

45. श्याम मोसूँ ऐंडो डोलै हो

श्याम मोसूँ ऐंडो डोलै हो।
औरन सूँ खेलै धमार, म्हासूँ मुखहुँ न बोले हो॥
म्हारी गलियाँ ना फिरे वाके, आँगन डोलै हो।
म्हारी अँगुली ना छुए वाकी, बहियाँ मरोरै हो॥
म्हारो अँचरा ना छुए वाको, घूँघट खोलै हो।
'मीरा' को प्रभु साँवरो, रंग रसिया डोलै हो॥

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