प्रथम आयाम : महादेवी वर्मा

Pratham Aayam : Mahadevi Verma

1. ठाकुर जी

ठंडे पानी से नहलातीं,
ठंडा चंदन इन्हें लगातीं,
इनका भोग हमें दे जातीं,
फिर भी कभी नहीं बोले हैं।
माँ के ठाकुर जी भोले हैं।
(यह तुकबंदी उस समय की है जब
महादेवी जी की अवस्था छः वर्ष की थी)

2. बया

बया हमारी चिड़िया रानी।

तिनके लाकर महल बनाती,
ऊँची डालों पर लटकाती,
खेतों से फिर दाना लाती
नदियों से भर लाती पानी।

तुझको दूर न जाने देंगे,
दानों से आँगन भर देंगे,
और हौज में भर देंगे हम
मीठा-मीठा पानी।

फिर अंडे सेयेगी तू जब,
निकलेंगे नन्हें बच्चे तब
हम आकर बारी-बारी से
कर लेंगे उनकी निगरानी।

फिर जब उनके पर निकलेंगे,
उड़ जायेंगे, बया बनेंगे
हम सब तेरे पास रहेंगे
तू रोना मत चिड़िया रानी।
बया हमारी चिड़िया रानी।

3. दीन भारतवर्ष

सिरमौर सा तुझको रचा था
विश्व में करतार ने,
आकृष्ट था सब को किया
तेरे, मधुर व्यवहार ने।
नव शिष्य तेरे मध्य भारत
नित्य आते थे चले,
जैसे सुमन की गंध से
अलिवृन्द आ-आकर मिले।
वह युग कहाँ अब खो गया वे देव वे देवी नहीं,

ऐसी परीक्षा भाग्य ने
किस देश की ली थी कहीं।
जिस कुंज वन में कोकिला के
गान सुनते थे भले,
रव है उलूकों का वहाँ
क्या भाग्य हैं अपने जले।

अवतार प्रभु लेते रहे
अवतार ले फिर आइए,
इस दीन भारतवर्ष को
फिर पुण्य भूमि बनाइए।
यह महादेवी जी के बचपन की रचना है।

4. देशगीत : मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला

मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!

जो ज्वाला नभ में बिजली है,
जिससे रवि-शशि ज्योति जली है,
तारों में बन जाती है,
शीतलतादायक उजियाला!
मस्तक ...

फूलों में जिसकी लाली है,
धरती में जो हरियाली है,
जिससे तप-तप कर सागर-जल
बनता श्याम घटाओं वाला!
मस्तक ...

कृष्ण जिसे वंशी में गाते,
राम धनुष-टंकार बनाते,
जिसे बुद्ध ने आँखों में भर
बाँटी थी अमृत की हाला!
मस्तक ...

जब ज्वाला से प्राण तपेंगे,
तभी मुक्ति के स्वप्न ढलेंगे,
उसको छू कर मृत साँसें भी
होंगी चिनगारी की माला!
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!

5. ध्वज गीत: विजयनी तेरी पताका!

विजयनी तेरी पताका!

तू नहीं है वस्त्र तू तो
मातृ भू का ह्रदय ही है,
प्रेममय है नित्य तू
हमको सदा देती अभय है,
कर्म का दिन भी सदा
विश्राम की भी शान्त राका।
विजयनी तेरी पताका!

तू उडे तो रुक नहीं
सकता हमारा विजय रथ है
मुक्ति ही तेरी हमारे
लक्ष्य का आलोक पथ है
आँधियों से मिटा कब
तूने अमिट जो चित्र आँका!
विजयनी तेरी पताका!

छाँह में तेरी मिले शिव
और वह कन्याकुमारी,
निकट आ जाती पुरी के
द्वारिका नगरी हमारी,
पंचनद से मिल रहा है
आज तो बंगाल बाँका!
विजयनी तेरी पताका!

6. इन सपनों के पंख न काटो

इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो?

सौरभ उड जाता है नभ में
फिर वह लौ कहाँ आता है?
धूलि में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड पाता है?
अग्नि सदा धरती पर जलती
धूम गगन में मँडराता है।
सपनों में दोनों ही गति है
उडकर आँखों में ही आता है।
इसका आरोहण मत रोको
इसका अवरोहण मत बाँधो।

मुक्त गगन में विचरण कर यह
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रंग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।
स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प
भूमि को सिखलायेगा।
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो?
इन सपनों के पोख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो।

7. देशगीत : अनुरागमयी वरदानमयी

अनुरागमयी वरदानमयी
भारत जननी भारत माता!

मस्तक पर शोभित शतदल सा
यह हिमगिरि है, शोभा पाता,
नीलम-मोती की माला सा
गंगा-यमुना जल लहराता,
वात्सल्यमयी तू स्नेहमयी
भारत जननी भारत माता।

धानी दुकूल यह फूलों की-
बूटी से सज्जित फहराता,
पोंछने स्वेद की बूँदे ही
यह मलय पवन फिर-फिर आता।
सौंदर्यमयी श्रृंगारमयी
भारत जननी भारत माता।

सूरज की झारी औ किरणों
की गूँथी लेकर मालायें,
तेरे पग पूजन को आतीं
सागर लहरों की बालाएँ।
तू तपोमयी तू सिद्धमयी
भारत जननी भारत माता!

8. कहाँ गया वह श्यामल बादल!

कहाँ गया वह श्यामल बादल।

जनक मिला था जिसको सागर,
सुधा सुधाकर मिले सहोदर,
चढा सोम के उच्चशिखर तक
वात सङ्ग चञ्चल। !
कहाँ गया वह श्यामल बादल।

इन्द्रधनुष परिधान श्याम तन,
किरणों के पहने आभूषण,
पलकों में अगणित सपने ले
विद्युत् के झलमल।
कहाँ गया वह श्यामल बादल।

तृषित धरा ने इसे पुकारा,
विकल दृष्ठि से इसे निहारा,
उतर पडा वह भू पर लेकर
उर में करुणा नयनों में जल।
कहाँ गया वह श्यामल बादल

9. खारे क्यों रहे सिंधु

होती है न प्राण की प्रतिष्ठा न वेदी पर
देवता का विग्रह जबखण्डित हो जाता है।

वृन्त से झड़कर जो फूल सूख जाता है,
उसको कब माली माला में गूँथ पाता है?

लेकर बुझा दीप कौन भक्त ऐसा है
कौन उससे पूजा की आरती सजाता है?

मानव की अपनी उद्देश्यहीन यात्रा पर
टूटे सपनों का भार ढोता थक जाता है।

मोती रचती है सीप मूँगे हैं, माणिक हैं
वैभव तुम्हारा रत्नाकर कहलाता है।

दिनकर किरणों से अभिनन्दन करता है नित्य
चन्द्रमा भी चाँदनी से चन्दन लगाता है।

निर्झर नद-नदियों का स्नेह तरल मीठा जल
तुझको समर्पित हो तुझ में मिल जाता है।

कौन सी कृपणता है खारे क्यों रहे सिंधु!
याचक क्यों एक घूँट तुझसे न पाता है?

10. बारहमासा

(१)
मां कहती अषाढ़ आया है
काले काले मेघ घिर रहे,
रिमझिम बून्दें बरस रही हैं
मोर नाचते हुए फिर रहे।

(२)
फिर यह तो सावन के दिन हैं
राखी भी आई चमकीली,
नन्हे को राखी बाँधी है
मां ने दी है चुन्नी नीली।

(३)
भादों ने बिजली चमका कर
गरज गरज कर हमें डराया,
क्या हमने चांई मांई कर
इसीलिए था इसे बुलाया ।

(४)
गन्ने चटका चटका कर मां
किन देवों को जगा रही है,
ये कुंवार तक सोते रहते
क्या इनको कुछ काम नहीं है ।

(५)
दिये तेल सब रामा लाया
हमने मिल बत्तियां बनाईं
कातिक में लक्ष्मी की पूजा
करके दीपावली जलाई

(६)
माँ कहती अगहन के दिन हैं
खेलो पर तुम दूर न जाना
हमको तो अपनी चिड़ियों की
खोज खबर है लेकर आना ।

(७)
पूस मास में सिली रजाई
निक्की रोजी बैठे छिप कर
रामा देख इन्हें पाएगा
कर देगा इन सबको बाहर ।

(८)
माघ मास सर्दी के दिन हैं
नहा नहा हम कांपे थर थर,
पर ठाकुर जी कभी न काँपे
उन्हें नहीं क्या सर्दी का डर ?

(९)
फागुन आया होली खेली
गुझियां खाईं जन्म मनाया,
क्या मैं पेट चीर कर निकली
या तारों से मुझे बुलाया ।

(१०)
चेत आ गया चैती गाओ
माँ कहती बसन्त आया है,
नये नये फूलों पत्तों से
बाग हमारा लहराया है ।

(११)
अब बैशाख आ गई गर्मी
खेलेंगे हम फव्वारों से,
बादल अब न आएँगे हमको
ठंडा करने बौछारों से।

(१२)
मां कहती अब जेठ तपेगा
निकलो मत घर बाहर दिन में,
हम कहते गौरइयां प्यासी
पानी तो रख दें आँगन में ।

बाबू जी कहते हैं इनको
नया बरस है पढ़ने भेजो,
माँ कहतीं ये तो छोटे हैं
इन्हें प्यार से यहीं सहेजो।

हम गुपचुप गुपचुप कहते हैं
हमने तो सब पढ़ डाला है,
और पढ़ाएगा क्या कोई
पंडित कहां कहां जाता है ?

11. फूलिहौ

बाँधे मयूख की डोरिन से किशलय के हिंडोरन में नित झूलिहौ,
शीतल मंद समीर तुम्हें दुलरायहै अंक लगाय कबूलिहौ,
रीझिहौं भौंर के गायन पै, तितलीन के नर्तन पै पुनि भूलिहौ;
फूल तुम्हें कहिहैँ हम तो जब कांटन में धँसिकै हंसि फूलिहौ !

12. बोलिहै नाहीं

मंदिर के पट खोलत का यह देवता तो दृग खोलिहै नाहीं,
अक्षत फूल चढ़ाउ भले हर्षाय कबौं अनुकूलिहै नाहीं,
बेर हजारन शंखहिं फूंक पै जागिहै ना अरु डोलिहै नाहीं,
प्राणन में नित बोलत है पुनि मंदिर में यह बोलिहै नाहीं !
आँसुन सो अभिषेक कियो पुतरी में निराजन ज्योति जराई,
साँसन मैं गुहिके सपने इक फूलन माल गरे पहराई,
तीनहु लोक के ठाकुर तो अपनी रचना में गए हैं हिराई,
पीर की मूरत ही हमने अब तो मन मंदिर में ठहराई !

13. रचि के सहस्र रश्मि

रचि के सहस्र रश्मि लोकन प्रकाशित करि
तमहू को बन्दी करि किरनन के घेरे में,
चन्द्रमा रच्यो है अरु तोरे हू असंख्य रचे
राति उजियारी भई दिसन के फेरे में,
व्योम पंथहू में रंग-सरिता बहाय डारी
अनगिन आलोक रूप फैलत सबेरे में,
कैसे हो विराट अरु कैसे तुम ज्योति रूप
दीपक असंख्य बारि बैठे हो अंधेरे में !

14. जाल परे अरुझे सुरझै नहिं

जाल परे अरुझे सुरझै नहिं ये मृग आज, बेहाल परे हैं,
मातु के अंक में छौना परे हैं मृगी मुख पै मृग कण्ठ धरे हैं,
तान पै ध्यान अबहुं इनको नहिं मरतेहु बार विसास मरे हैं,
चितवन में बिसमय इनके बड़री अँखियान से आँसु ढरे हैं !

15. क्रांति गीत

(1)
कंठ में जहाँ था मणि-मुक्ता-रुद्राक्ष हार
शोभित उसी में नर मुंडों की माला है!
वरदानी कर में जो मंगल घट पूर्ण रहा
उसमें अब रक्त भरा खप्पर का प्याला है !
चितवन में जहाँ कभी गंगा की धारा थी
आज उन्हें आँखों में भस्मकरी ज्वाला है !
जन्म दिया जिनको अब उनके हित काल बनी
आदिशक्ति काली ! अब कौन रखवाला है !

(२)
जन्म दिया प्राण दिये मुक्ति का विवेक दिया
तू ने ही इनको वात्सल्य-रस-पाला है ।
तेरे ये उपासक हैं तेरे ही दुलारे हैं
तू ने ही दिखाया इन्हें पंथ यह निराला है ।
माता तू इनकी अतुलित बल धारिणि है,
तुझको हरा दे यह कौन शक्तिवाला है ।
मातृ भूमि ! तू ही जब इनको बचाती नहीं
मुक्ति कामियों का फिर कौन पक्षवाला है ।

(क्रांतिकारियों के परिचय के उपरांत लिखित)

16. खुदी न गई

बिन बोये हुए बिन सींचे हुए; न उगा अंकुर नहिं फूल खिला,
नहिं बाती संजई न तेल भरा, न उजाला हुआ नहिं दीप जला,
तुमने न वियोग की पीर सही नहिं खोजने आकुल प्राण चला !
तुम आपको भूल सके न कभी जो खुदी न गई तो खुदा न मिला !

(इस रचना पर अभी काम चल रहा है )

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