Bhakt Surdas Ji
भक्त सूरदास जी
भक्त सूरदास जी (१४७८ ईस्वी?-१५८०ईस्वी?) प्रसिद्ध संत, कवि और संगीतकार थे।
कहा जाता है कि वह जन्मांध थे। सूरदास हिन्दी साहित्य में भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के
कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं। वह श्री वल्लभाचार्य जी के आठ शिष्यों में से थे। उनके
इन सभी शिष्यों को अष्टछाप के नाम से जाना जाता है। संत सूरदास जी की काव्य रचनायें सूरसागर,
सूरसारावली, नल-दमयन्ती, ब्याहलो और साहित्य-लहरी हैं। नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित
हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के १६ ग्रन्थों का उल्लेख है। इनमें सूरसागर,
सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला,
भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। उन की
रचना हिंदी बोली की उपबोली ब्रज भाषा में है।
भक्त सूरदास जी की काव्य रचनायें
प्रसिद्ध पद/रचनाएँ भक्त सूरदास जी
अजहूँ चेति अचेत सबै दिन गए विषय के हेत
अति सूख सुरत किये ललना संग
अद्भुत एक अनुपम बाग
अब कै माधव, मोहिं उधारि
अब मैं जानी देह बुढ़ानी
अब या तनुहिं राखि कहा कीजै
अबिगत गति कछु कहति न आवै
अरी तुम कोन हो री बन में फूलवा बीनन हारी
अंखियां हरि–दरसन की प्यासी
आई छाक बुलाये स्याम
आछो गात अकारथ गार्यो
आजु मैं गाई चरावन जैहों
आजु हौं एक-एक करि टरिहौं
आनि सँजोग परै भावी काहू सौं न टरै
उपमा हरि तनु देखि लजानी
ऊधो, कर्मन की गति न्यारी
ऊधो,तुम हो अति बड़भागी
उधो, मन न भए दस बीस
ऊधो, मन माने की बात
ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं
ऊधो, हम लायक सिख दीजै
ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे
ऐसी प्रीति की बलि जाऊं
ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी ऐसी भक्ति
ऐसे संतनकी सेवा
ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै
ऐसो पूत देवकी जायो
औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले
क्यौरे निंदभर सोया मुसाफर क्यौरे निंदभर सोया
कन्हैया हालरू रे
कनक रति मनि पालनौ, गढ्यो काम सुतहार
कब तुम मोसो पतित उधारो
कमलापती भगवान
कहन लागे मोहन मैया मैया
कहावत ऐसे दानी दानि
कहां लौं कहिए ब्रज की बात
कहां लौं बरनौं सुंदरताई
कहियौ जसुमति की आसीस
कहियौ, नंद कठोर भये
काना कुबजा संग रिझोरे
कायकूं बहार परी
काहू जोगीकी नजर लागी है
कीजै प्रभु अपने बिरद की लाज
कुंवर जल लोचन भरि भरि लैत
केत्ते गये जखमार भजनबिना
कोण गती ब्रिजनाथ
खीझत जात माखन खात
खेलत नंद-आंगन गोविन्द
खेलिया आंगनमें छगन मगन किजिये कलेवा
ग्वालिन मेरी गेंद चुराई
गिरि जनि गिरै स्याम के कर तैं
गोपालहिं माखन खान दै
चरन कमल बंदौ हरिराई
चली ब्रज घर घरनि यह बात
चिरजीयो होरी को रसिया चिरजीयो
चोरी मोरी गेंदया मैं कैशी जाऊं पाणीया
छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा
जनम अकारथ खोइसि
जनम सब बातनमें बित गयोरे
जमुनाके तीर बन्सरी बजावे कानो
जयजय नारायण ब्रह्मपरायण श्रीपती कमलाकांत
जय जय श्री बालमुकुंदा
जसुमति दौरि लिये हरि कनियां
जसोदा कहाँ लौं कीजै कानि
जसोदा, तेरो भलो हियो है माई
जसोदा हरि पालनैं झुलावै
जागिए ब्रजराज कुंवर कमल-कुसुम फूले
जागो पीतम प्यारा लाल तुम जागो बन्सिवाला
जापर दीनानाथ ढरै
जो आजु पै हरिहिं न शस्त्र गहाऊं
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै
जो तुम सुनहु जसोदा गोरी
जौ बिधिना अपबस करि पाऊं
जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत
तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग
तबतें बहुरि न कोऊ आयौ
तबमें जानकीनाथ कहो
तिहारो दरस मोहे भावे श्री यमुना जी
तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान
तुमको कमलनयन कबी गलत
तुम मेरी राखो लाज हरि
दरसन बिना तरसत मोरी अखियां
दृढ इन चरण कैरो भरोसो
दियौ अभय पद ठाऊँ
देख देख एक बाला जोगी द्वारे मेरे आया हो
देखे मैं छबी आज अति बिचित्र हरिकी
देखो ऐसो हरी सुभाव देखो ऐसो हरी सुभाव
देखो माई ये बडभागी मोर
देखो माई हलधर गिरधर जोरी
देखो री हरि भोजन खात
दोउ भैया मांगत मैया पें देरी मैया दधि माखन रोटी
धनि यह वृन्दावन की रैनु
धोखैं ही धोखैं डहकायौ
नटवर वेष काछे स्याम
नंद दुवारे एक जोगी आयो शिंगी नाद बजायो
नाथ, अनाथन की सुधि लीजै
नाम महिमा ऐसी जु जानो
नारी दूरत बयाना रतनारे
निरखि स्याम हलधर मुसुकानैं
निरगुन कौन देश कौ बासी
निसिदिन बरसत नैन हमारे
नीके रहियौ जसुमति मैया
नेक चलो नंदरानी उहां लगी नेक चलो नंदारानी
नेननमें लागि रहै गोपाळ नेननमें
नैन भये बोहित के काग
मधुकर! स्याम हमारे चोर
मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी
मैया! मैं नहिं माखन खायो
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो
मैया री मैं चंद लहौंगौ
राखी बांधत जसोदा मैया
Bhakt Surdas Ji Ki Rachnayen
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