Giridhar Kavirai
गिरिधर कविराय
गिरिधर कविराय (उन्नीसवीं सदी) ने नीति, वैराग्य और आध्यात्मिक विषयों पर कुण्डलियों
की रचना की है । यह माना जाता है कि वह पंजाब के रहने वाले थे परंतु बाद में
इलाहाबाद के नज़दीक रहने लगे । यह भी कहा जाता है कि जिन कुण्डलियों में साईं की छाप है,
वह उन की पत्नी की लिखीं हुई हैं।
कुण्डलियाँ (लोक-नीति) गिरिधर कविराय
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम
गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय
चिंता ज्वाल सरीर की, दाह लगे न बुझाय
जाको धन, धरती हरी, ताहि न लीजै संग
जानो नहीं जिस गाँव में, कहा बूझनो नाम
झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय
दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान
पानी बाढो नाव में, घर में बाढो दाम
बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ
रहिये लटपट काटि दिन, बरु घामें मां सोय
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग
साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिये कोइ
साईं अपने भ्रात को, कबहुं न दीजै त्रास
साईं अवसर के परे, को न सहै दु:ख द्वंद
साईं घोड़े आछतहि गदहन आयो राज
साईं तहां न जाइये जहां न आपु सुहाय
साईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज
साईं, बैर न कीजिए, गुरु, पंडित, कवि, यार
साईं सब संसार में, मतलब को व्यवहार
साईं सुआ प्रवीन गति वाणी वदन विचित्त
सोना लादन पिय गए, सूना करि गए देस
हुक्का बांध्यौ फैंट में नै गहि लीनी हाथ
कुण्डलियाँ (ज्ञान-वैराग्य) गिरिधर कविराय
तुही शुद्ध परमात्मा, तुही सच्चिदानंद
बेड़ा तू, दरियाव तू, तुही वार, तुहि पार
राम तुही, तुहि कृष्ण है, तुहि देवन को देव
मालिक अपना आप तू, तुव नहिं मालिक अन्य
करै कृपा जिस पुरुष पर, अतिसय करके राम
कीजै ऐसी कथा मत, निष्फल कथनी जोय
रहनी सदा इकंत को, पुनि भजनो भगवंत
बहता पानी निर्मला, पड़ा गंध सो होय
जैसा-कैसा अन्न ले, भिक्षु करै आहार
भिक्षा खावै मांगकै, रहै जहां-तहं सोय
भिक्षु, बालक, भारजा, पुनि भूपति यह चार
देही सदा अरोग है, देह रोगमय चीन
पासी जब लग मजब की, तबलग होत न ज्ञान
गढ़े अविद्या ने रचे, हाथी डूब अनंत
जैसा यह मन भूत है, और न दुतीय वैताल